सूरतगढ़ (श्रीगंगानगर).देश के सबसे बड़े प्रांत राजस्थान के लोग आजादी के पहले से ही अपनी मातृभाषा राजस्थानी की मान्यता की मांग करते हुए संघर्ष कर रहे हैं. भाषाई आजादी की यह लड़ाई समय-समय पर विभिन्न चरणों से गुजरती रही है. हाल ही में श्रीगंगानगर जिले के सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री निहालचंद ने लोकसभा में शून्यकाल के दौरान राजस्थानी भाषा को 8वीं अनुसूची में शामिल करने की मांग रखी.
लंबे समय से भाषा की मान्यता आंदोलन से जुड़े केन्द्रीय अकादमी से पुस्कृत राजस्थानी साहित्यकार मनोज स्वामी ने बताया कि 25 अगस्त 2003 को राजस्थान सरकार द्वारा विधानसभा में सर्वसम्मति से संकल्प प्रस्ताव पास कर राजस्थानी भाषा को 8वीं अनुसूची में शामिल करने की मांग केंद्र सरकार को भेज रखी है. इसी प्रकार राजस्थानी भाषा को प्रदेश की राजभाषा घोषित करने प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में दिए जाने की मांग भी की जा रही है.
स्वामी ने बताया कि केंद्र की भाजपा सरकार के सांसद निहालचंद द्वारा भाषा के लिए मांग रखने को सकारात्मक रूप से देखा जा रहा है. भाषा प्रेमियों में इस प्रयास से आशा की किरण दिखाई दी है. भाषा प्रेमी ने सांसद का आभार जताते हुए आशा की है कि शीघ्र ही राजस्थान के लोगों को भाषाई आजादी मिलेगी और राजस्थानी भाषा को 8वीं अनुसूची में स्थान मिलेगा.
वहीं मनोज कुमार स्वामी का मानना है कि प्रदेश की गहलोत सरकार से भी भाषा प्रेमियों को काफी आशा है. गहलोत सरकार अपनी वर्तमान कार्यकाल का 1 वर्ष पूरा होने पर कोई विशेष घोषणा कर सकती है. मान्यता आंदोलन से जुड़े समिति के जिलाध्यक्ष परसराम भाटियां ने इस अवसर पर कहा कि समय-समय पर राजस्थान के सांसद इस मांग को उठाते रहे हैं. हम आशान्वित हैं कि शीघ्र ही राजस्थानी भाषा को उसका सम्मान मिलेगा.