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SPECIAL: ये कैसी मजबूरी...करनी पड़ रही मजदूरी, नेशनल खेल चुके जूडो खिलाड़ी ढो रहे बोरियां

देश में ना जाने कितने ऐसे खिलाड़ी हैं जो प्रतिभाशाली होते हुए भी संसाधनों के आभाव में या आर्थिक स्थिति कमजोर होने की वजह से अपने खेल को जारी नहीं रख पाते हैं. श्रीगंगानगर जिले में ऐसे ही तीन खिलाड़ी हैं जिन्होंने जूडो में नेशनल भी खेला है, लेकिन आर्थिक स्थिति कमजोर होने की वजह से परिवार चलाने के लिए इन्हें मजदूरी करनी पड़ रही है. आइए जानते हैं इन प्रतिभाशाली खिलाड़ियों के बारे में...

श्रीगंगानगर के जूडो खिलाड़ी, Judo players from Sriganganagar
नेशनल खेल चुके जूडो के खिलाड़ी उठा रहे हैं बोरियां

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Published : Nov 21, 2020, 7:45 PM IST

श्रीगंगानगर. देश की सरकार खेलों पर भले ही लंबा चौड़ा बजट खर्च करती है. जमीनी स्तर पर खेलों में दमखम दिखाने वाले खिलाड़ियों को कितनी सुविधा मिलती है इसकी बानगी देखनी हो तो राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले में चले आइए, जहां जूडो में अनेकों बार नेशनल खेलकर मेडल हासिल करने वाले होनहार खिलाड़ियों की प्रतिभा खराब आर्थिक स्थिति के अभाव में दम तोड़ रही हैं.

नेशनल खेल चुके जूडो के खिलाड़ी उठा रहे हैं बोरियां

पाकिस्तान से लगती अंतरराष्ट्रीय सीमा से महज तीन किलोमीटर दूर बसे बुर्जवाला गांव के स्कूल में ये खिलाड़ी अपने कोच शमशेर सिंह की मदद से नेशनल प्रतियोगिताओं में कई बार मेडल जीत चुके हैं, लेकिन अंतरराष्ट्रीय लेवल पर खेलने के लिए सुविधाओं का अभाव होने से इन खिलाड़ियों के हौसले अब टूटते जा रहे है. हालांकि अपने खेल को जारी रखने और घर की आजीविका चलाने के लिए ये खिलाड़ी अनाज मंडी में मजदूरी करते हैं. मजदूरी भी ऐसी की धानमंडी में एक किवंटल तक की बाेरियां उठाने का काम करते हैं ये नेशनल खिलाड़ी.

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इनकी माने तो इन्हें सरकार मौका दे तो ये दुनिया में देश का नाम रोशन कर सकते हैं. कोच शमशेर सिंह बताते है की इनकी आर्थिक हालत खराब होने के बाद भी इन्होंने खेल के जूनून को बरकरार रखा है.

बचे हुए समय में करते हैं जूडो की प्रैक्टीस

कोच के अनुसार तो अगर इन जूडो खिलाड़ियों को सरकार की तरफ से मौका दिया जाये तो ये ओलमंपिक में बेहतर प्रदर्शन कर सकते है. हरजीत सिंह 2014-15 में राष्ट्रीय जूनियर प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल जीता है. 8 बार नेशनल खेल चुके हैं जिसमे हर बार उसने मेडल जिता है. लेकिन घर की खराब आर्थिक हालात इस खिलाड़ी के अंतरराष्ट्रीय लेवल पर देश का नाम रोशन करने के सपने के बीच में आ रही है.

घर की आर्थिक स्थिति भी है बेहद खराब

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इसी प्रकार तरसेम पाल सिंह भी 7 बार नेशनल खेलकर मेडल जीत चुका है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में जाने का सपना अभी भी बरकारार है. जूडो खिलाड़ी पेमाराम की माता को आंखों से दिखाई नहीं देता है. ऐसे में उनके उपर घर की जिम्मेदारी के साथ-साथ मां की देखभाल करना भी है. खिलाड़ियों को सरकार से मदद ना मिलने का मलाल भी है, जिसके चलते वे अब मजदूरी करने को मजबूर हैं.

खिलाड़ियों को मिल चुके हैं गोल्ड मेडल

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सरकारी सुविधाओं के अभाव में जूडो के ये नेशनल खिलाड़ी अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम दुनिया में रोशन करने के लिए कमर कसे हुए हैं, मगर आर्थिक मदद के अभाव में अब इनकी उम्मीदें दम तोड़ती नजर आ रही है. ऐसे में अगर सरकार इन खिलाड़ियों की सुध लेकर इन्हें सुविधाएं दे तो ये खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपना लोहा मनवा सकते हैं.

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