श्रीगंगानगर.पिछ्ले दिनों Etv Bharat ने मशरूम की खेती से एक खबर प्रकाशित की थी. कृषि अनुसंधान केंद्र में कृषि वौज्ञानिकों द्वारा मशरूम पर चलाए जा रहे ट्रायल से कृषि क्षेत्र में नवाचार करते हुए किसानों और युवाओं को अच्छे फायदे से आर्थिक हालत में सुधार करने का कारगर कदम बताया था. उसके बाद पढ़े-लिखे युवाओं में मशरूम की खेती के लिए ट्रेनिंग लेने की होड़ शुरू हो गई है.
युवाओं में बढ़ रहा खेती का रूझान... देश में इन दिनों पढ़े-लिखे युवाओं को खुद का कार्य करके आत्मनिर्भर होने की बात कही जा रही है, जिसके तहत युवाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कृषि अनुसंधान केंद्र ने पहल शुरू की है. केंद्र में अब युवाओं को कम लागत से अधिक मुनाफा लेकर आत्मनिर्भर बनाने के लिए कई तरह से मशरूम उत्पादन करने की ट्रेनिंग दी जा रही है. पिछ्ले दिनों खबर के जरिए प्रकाशित की गई थी कि किस तरह घर के किसी कमरे में कम जगह में मटका मशरूम और ढींगरी मसरूम का उत्पादन किया जाए तो अच्छा फायदा लिया जा सकता है. मटका मसरूम अब तैयार हो चुकी है और इसको काटकर बाजार में बेचा जा सकता है. मटकों से बाहर सफेद आकार में निकली नजर आ रही ये मसरूम है, जो अब तैयार हो चुके है.
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क्या कहना है ट्रेनिंग लेने वालों का?
मशरूम की ट्रेनिंग लेने आई पूनम कहती हैं कि कोविड-19 से पहले वह एग्रीकल्चर कॉलेज में पढ़ाती थीं. लेकिन कोविड- 19 के चलते कॉलेज छूटने के बाद से वह घर पर खाली बैठी हैं. पूनम को मशरूम की खेती की ट्रेनिंग की जानकारी मिली तो वह ट्रेनिंग लेने आई है. पूनम की मानें तो जब समय खाली जा रहा है तो ऐसे समय में किसी और फील्ड में जाकर काम किया जाए. बस यही सोचकर ट्रेनिंग लेने के लिए कृषि अनुसंधान केंद्र में ट्रेनिंग लेने आई.
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पूनम कहती हैं कि मशरूम की खेती कम समय, कम लागत और कम जगह पर की जा सकती है. ऐसे में वह ट्रेनिंग लेकर मशरूम की खेती शुरू करना चाहती है. पूनम की मानें तो मशरूम की खेती के लिए बाजार में अभी कोई ज्यादा कंप्टीशन भी नहीं है. इसलिए इस समय मशरूम की खेती में बेहतर तरीके से काम करके ज्यादा से ज्यादा लाभ लिया जा सकता है. एमएससी एग्रीकल्चर तक पढ़ाई कर चुकी लिपिका का भी मशरूम की खेती में इंटरेस्ट रहा है और वह मशरूम में रिसर्च कर चुकी हैं. ट्रेनिंग लेने आए युवक ने बताया कि कम लागत में अच्छा फायदा कमाया जा सकता है.
युवाओं द्वारा उगाया गया मशरूम कृषि अनुसंधान केंद्र के जोनल डायरेक्टर उमेद सिंह बताते हैं कि मशरूम का जो प्रोजेक्ट आया है. इसमें ग्रामीण युवा अगर खुद का इंटरप्रेट तैयार करके धंधा करेंगे तो आत्मनिर्भर भारत के लिए सबसे सस्ता सुंदर टिकाऊ व्यवसाय है. मशरूम की वैल्यू काफी ज्यादा है. ऐसे में अगर खुद युवा इसको करेंगे और दूसरों को सिखाएंगे तो रोजगार अच्छा दे पाएंगे. खुद का धंधा करके लोगों को रोजगार दिया जा सकता है. कम खर्चे में अच्छा प्रोजेक्ट है. कृषि वैज्ञानिक बेरवा ने बताया कि युवाओं ने ट्रेनिंग लेने में काफी रुचि दिखाई है. साथ ही महिलाएं भी ट्रेनिंग के लिए आई हैं. मशरूम की खेती के बारे में युवा ट्रेनिंग लेने के लिए आए हैं, उनको मशरूम के उत्पादन और विपणन तक के बारे में ट्रेनिंग में बताया गया है.
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मशरूम खेती में युवाओं का रूझान देखते हुए राष्ट्रीय कृषि विकास योजना द्वारा वित्त पोषित प्रोजेक्ट के तहत एक दिवसीय कृषक प्रशिक्षण का आयोजन किया गया. अनुसंधान केंद्र के मशरूम वैज्ञानिक डॉक्टर किशन बेरवा ने बताया कि केंद्र पर पिछले दिनों लगभग 250 लोगों ने मशरूम तकनीक का प्रशिक्षण लेने के लिए रजिस्ट्रेशन करवाया था. कोविड को देखते हुए सोशल डिस्टेंसिंग की पालना को ध्यान में रखते हुए इनमें से 21 लोगों ने एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग लिया.
प्रशिक्षण का शुभारंभ केंद्र के क्षेत्रीय निदेशक अनुसंधान डॉ. उमेद सिंह शेखावत द्वारा किया गया. इसके बाद मशरूम से संबंधित सारी जानकारी जैसे मशरूम स्पान उत्पादन, ढींगरी मशरूम और बटन मशरूम उत्पादन की जानकारी मशरूम वैज्ञानिक डॉक्टर बेरवा द्वारा दी गई. डॉ. सीमा चावला वैज्ञानिक केवीके पदमपुर ने मशरूम के मूल्य संवर्धन के संबंध में ट्रेनिंग लेने आए युवाओं को विस्तार से जानकारी दी. डॉ. दशरथ प्रसाद ने मशरूम में फसल प्रबंधन संबंधी जानकारी किसानों को उपलब्ध करवाई. वर्तमान में कंप्यूटर टेक्नोलॉजी का मशरूम उत्पादन में कैसे बढ़ावा दिया जा सकता है. इस पर किसानों को बताया गया. प्रशिक्षण के दौरान मशरूम घर में चल रही मटका मशरूम के बारे में विस्तृत रूप से जानकारी दी गई. सभी प्रतिभागियों को प्रमाण-पत्र वितरण किया गया.