श्रीगंगानगर.बच्चों के जन्म के बाद अक्सर पीलिया (Jaundice) का लेवल अधिक होने के चलते न केवल उनकी जान पर खतरा बना रहता है. बल्कि ऐसे नवजात में पीलिया का लेवल अधिक होने के चलते अपंगता (Disability) का खतरा भी बना रहता है. ऐसे में फोटोथेरेपी एक ऐसा माध्यम है, जिसके चलते नवजात की जान ही नहीं बचाई जा सकती. बल्कि अपंगता को भी रोका जा सकता है. पीलिया रोग से पीड़ित नवजात शिशुओं के इलाज के लिए अब जिले से बाहर नहीं जाना पड़ेगा. ऐसे पीलिया रोग से ग्रसित नवजात का मुफ्त इलाज जिला अस्पताल में फोटोथेरेपी मशीन की मदद से किया जाने लगा है.
जिला अस्पताल में निशुल्क हो रहा फोटोथेरेपी का इलाज... शिशु मृत्यु दर में कमी लाने के लिए सरकार अस्पतालों में बच्चों के इलाज के लिए कई तरह की सुविधाएं उपलब्ध करवा रही है. नए-नए आधुनिक उपकरण उपलब्ध करवाए जा रहे हैं. इसी क्रम में फोटोथेरेपी से प्रसव के बाद होने वाली मृत्यु दर में कमी लाने के लिए जिला अस्पताल में सुविधा शुरू की गई है. पूर्व में यह सुविधा जिले में उपलब्ध नहीं रहने के कारण शिशुओं को इलाज के लिए बड़े अस्पतालों में महंगे इलाज खर्च करना पड़ता था, इससे परिजनों को परेशानी होने के साथ-साथ मोटी रकम भी खर्च करनी पड़ती थी.
पीलिया जानलेवा बीमारी है?
पीलिया किसी नवजात शिशु को जन्म के साथ ही यह रोग हो जाता है. इससे नवजात की मौत भी हो सकती है. जन्म के बाद शिशु में पीलिया रोग के लक्षण पाए जाने पर उसे फोटोथेरेपी यूनिट मशीन में सुलाकर इलाज किया जाता है. इस मशीन से एक प्रकार की रोशनी निकलती है, जो पीलिया ग्रस्त नवजात शिशु के इलाज में सहायक होती है. श्रीगंगानगर जिला अस्पताल में डॉक्टर जतिन नांगल, इन दिनों ऐसे नवजात बच्चों का एक्सचेंज ट्रांसफ्यूजन कर उनकी जान बचा रहे हैं. महंगा इलाज होने के कारण श्रीगंगानगर के जिला अस्पताल में अब यह निशुल्क मिल रहा है, जिसके चलते वे परिवार काफी राहत पा रहे हैं, जिनके पास इलाज करवाने के लिए पैसे नहीं थे. डॉक्टर नांगल जिला अस्पताल में ऐसे नवजात बच्चों के ही नहीं, बल्कि उन परिवारों के तारणहार बन रहे हैं. जो इनकी वजह से खून बदलकर ऐसे बच्चों को जीवन दान दे रहे हैं.
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नवजात बच्चों में पीलिया रोग बढ़ने के चलते अक्सर उनकी जान पर खतरा बना रहता है. लेकिन जिला अस्पताल में अब फोटोथेरेपी के जरिए न केवल ऐसे नवजात बच्चों की जान बचाई जा रही है. बल्कि अधिक पीलिया होने के चलते अपंगता के खतरे से भी बचाया जा रहा है. यह सब फोटोथेरेपी प्रक्रिया के जरिए किया जा रहा है. अधिकांश नवजात शिशु में जन्म के तीन हफ्ते तक पीलिया होने की संभावना रहती है. एक सामान्य मात्रा में पीलिया होना आम बात है, लेकिन कुछ नवजात शिशु में जन्म के 24 घंटे में पीलिया बहुत अधिक मात्रा में मिलता है या फिर पीलिया बढ़ने की गति तेजी से होती है, जिसके कारण बच्चे और मां के खून के आरएच फैक्टर न मिल पाना, बच्चे को थायराइड कम होना या G-6-PD नामक एंजाइम की कमी होने से भी हो सकता है.
प्रकाश चिकित्सा का उपयोग? इस बिमारी पर कन्ट्रोल करने के लिए बच्चे की फोटोथेरेपी शुरू की जाती है, ताकि खून में पीलिए की मात्रा कम की जा सके. यदि पीलिया की मात्रा फोटोथेरेपी की रेंज से बढ़कर एक्सचेंज की रेंज में आए तो तुरंत प्रभाव से बच्चे का खून बदलकर खून में पीलिया की मात्रा को कम किया जाता है. यदि ऐसा न किया जाए तो उस लेवल का पीलिया ब्लड ब्रेन को क्रॉस करने से बच्चे को दौरे आने शुरू हो सकते हैं और जान भी जा सकती है. यही नहीं आगे चलकर बच्चा मानसिक और शारीरिक विकलांग हो सकता है. एसे में समय रहते अगर एक्सचेंज थेरेपी से खून बदला जाए तो नवजात को खतरे से बचाया जा सकता है.
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बता दें कि जिला अस्पताल में पिछले 8 साल से एक्सचेंज थेरेपी नहीं हो पा रही थी, जिसके कारण गंभीर पीलिया वाले बच्चों को बीकानेर या जयपुर रेफर किया जाता था, जिसके इलाज शुरू होने में देरी हो जाती थी. डॉ. जतिन नांगल एक्सचेंज थेरेपी के जिरए ऐसे नवजात को नया जीवन दे रहे है, जिनमें जन्म के बाद पीलिया अधिक होने से जान जोखिम में रहती है. डॉक्टर नांगल की माने तो नवजात का रक्त मां से मैच नहीं होने के कारण उसका 40 घंटे की उम्र में पीलिया 35 तक जा पहुंचता है, जिसका रक्त बदलकर नवजात का पीलिया 35 से 15 तक लाया गया है, जिससे वह खतरे से बाहर है. डॉ. जतिन नांगल के इस प्रयास से जिला अस्पताल में आने वाले ऐसे गरीब परिवार काफी खुश नजर आ रहे हैं.