सादुलशहर (श्रीगंगानगर). कहने को देश के किसान को अन्नदाता, भूमि पुत्र, धरती के लाल जैसे विशेषणों से संबोधित किया जाता है. अन्नदाता शब्द से अन्न देने वाले का बोध होता है, लेकिन जिसे खुद अपनी दो वक्त की रोजी-रोटी का बंदोबस्त करने के लिए कभी अपने ही खेत के पेड़ से लटक कर जान देनी पड़े या अपने हक की लड़ाई लड़ते हुए आंदोलन करना पड़े, डंडों और गोलियों का शिकार होना पड़ रहा है. जी हां हम बात कर रहे है सादुलशहर के किसानों की.
श्रीगंगानगर में फसल बीमा क्लेम को लेकर किसान करेगें आंदोलन सादुलशहर के सैंकड़ों किसान इन दिनों फसल बीमा क्लेम को लेकर आंदोलन की राह पर है. किसानों का कहना है की सरकार ने किसानों के लिए योजनाएं तो चला दी, लेकिन किसानो तक उनका लाभ नही पहुंच रहा. किसानों ने कहा है कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में उनके केसीसी खातों से प्रीमियम तो काट लिया, लेकिन अब क्लेम देने के समय उनके कागजो में बैंकों की ओर से कमियां निकाल दी जाती है. किसान कभी गंगानगर तो कभी स्थानीय बैंकों के चक्कर काटकर रह जाता है.
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किसानों ने कहा है की सरकार की योजनाओं का लाभ स्थानीय बैंकों की नौकरशाही की वजह से उन तक नहीं पहुंच पाता. जिसको लेकर किसान धरने प्रदर्शन करने को मजबूर है. किसानों ने लालगढ़ जाटान एसबीआई बैंक के सामने प्रदर्शन करते हुए नारेबाजी की. किसानों का आरोप है कि बैंककर्मी किसानों के साथ धोखाधड़ी कर रहे हैं. हाउस प्रीमियम के नाम पर किसानों के खातों से बिना अनुमति के पैसे काटे जा रहे हैं, जबकि बैंककर्मियों से बीमा क्लेम के बारे में पूछा जाता है, तो आधार कार्ड नहीं जुड़ा होने का हवाला दे देते है. वहीं दूसरी और सरकार न फसलों को समर्थन मूल्य पर खरीदने की घोषणा करने के बाद भी किसानों से फसल नहीं खरीदी जा रही, जिससे किसानों को दोहरी मार झेलनी पड़ रही है. अब किसान दर-दर की ठोकरे खाने को मजबूर है.
शाखा प्रबंधक नवनीत कोचर का कहना है कि किसानों के लिए 2 करोड़ की बीमा क्लेम की राशि आई है. कुछ किसानों को फसल बीमा दे दिया गया है. वहीं कुछ किसानों के खातों में केसीसी से आधार कार्ड लिंक नही हुआ है, जिसकी वजह से फसल बीमा लेने में परेशानी आ रही है और जो प्रीमियम के नाम से राशि काटी जा रही है. उसमें किसान को हेल्थ बीमा वाहन बीमा व अन्य सुविधाएं दी जा रही है. यह बीमा किसान के साथ दुर्घटना होने पर दिया जाता है.
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इसे विडंबना ही कहा जाना चाहिए कि सरकारी आंकड़ों में कृषि पैदावार लगातार बढ़ रही है, लेकिन दूसरी ओर किसानों की बदहाली से निपटने की न तो कोई सुनियोजित योजना और न ही राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखाई दे रही है. जब-जब चुनाव करीब आते हैं, किसानों को सस्ते कर्ज और कर्ज माफी का तोहफा देकर उन्हें वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया जाता है