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श्रीगंगानगर: बैंक कर्मियों की हड़ताल लगातार जारी, एक्सपर्टस के मुताबिक ऐसे निकल सकता है हल - announced to go on long strike

वेतन बढ़ोतर को लेकर बैंक कर्मियों का हड़ताल लगातार जारी है. कर्मचारियों में इस हद तक रोष व्याप्त है कि शनिवरा को बजट पेश होने के समय भी सभी कर्मचारियों की ओर से सरकार के खिलाफ प्रदर्शन और नारेबाजी की गई. इसी को लेकर ईटीवी भारत संवाददाता ने एक्सपर्टस से उनकी राय जानी.

श्रीगंगानगर की खबर,  bank workers strike
एक्सपर्टस से बातचीत करते ईटीवी भारत संवाददाता

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Published : Feb 1, 2020, 9:21 PM IST

श्रीगंगानगर.शनिवार को जब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन लोकसभा में बजट पेश कर रही थी. तब देश के 13 लाख से अधिक बैंकर्स सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन और नारेबाजी कर रहे थे. बैंक की हड़ताल के दूसरे दिन बैंक संगठनों के पदाधिकारियों ने सरकार की ओर से उनकी मांगे नहीं माने जाने पर भविष्य में लंबी हड़ताल पर जाने का ऐलान किया है. इसे लेकर ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स कॉन्फेडरेशन मंडल के सचिव एच.एस.भाटी, ज्वाइंट सचिव राम पंवार और लॉ ऑफिसर चंद्र निर्वाण से ईटीवी भारत संवादादात ने बातचीत की.

बेैंकर्स के हड़ताल के समाधान पर ईटीवी भारत संवाददाता ने एक्सपर्टस से बातचीत

बैंक एसोसिएशन के सचिव एच.एस भाटी की माने तो देश के 13 लाख बैंक कर्मचारी हड़ताल पर हैं. जिनकी मुख्य मांग नवंबर 2017 में सरकार की ओर से लागू किए वेतन समझौते को दोबारा लागू करवाना है जिसपर सराकार राजी नहीं है. भाटी की मानें तो सरकार के साथ अभी तक 33 दौर की वार्ता की जा चुकी है. लेकिन हर बार वार्ता में 0.25% की बढ़ोतरी करने की बात कही गई है. जो अबतक 12.25% तक पहुंच पाई है. जबकि बैंकर्स की मांग 20% बढ़ोतरी की है. ऐसे में सरकार के साथ समझौते में वार्ता करने का जो अंतर है वह करीब 8% का है. इसको सरकार पूरा करेगी तभी समझौता पूर्ण रूप से लागू होगा.

एच.एस भाटी की मानें तो आईबीए की ओर से जो चार्ट ऑफ डिमांड मांगा गया है उसमें बैंक यूनियन ने बैंकर्स को सेंट्रल पे कमीशन के बराबर करने की मांग की है. भाटी ने बताया कि बैंक कर्मचारी फाइनेंस से जुड़े होते हैं जिसके कारण उनके ऊपर ज्यादा जिम्मेदारी होती है. बैंकर्स आम जनता से माफी मांगते हुए कह रहे हैं कि हड़ताल करना उनका कोई शौक नहीं है. क्योंकि बैंकर्स जब हड़ताल पर रहता हैं तो उनकी वेतन कटौती भी की जाती है. भाटी ने कहा कि सरकार ने परफॉर्मेंस लिंक इंसेंटिव का प्रस्ताव दिया है, जो बैंकर्स के लिए ठीक नहीं है. क्योंकि ये सब सरकार की नीतियों पर निर्धारित होता है. ऐसे में बैंकर्स की जिम्मेदारी बेवजह और बढ़ जाएगी और साथ ही उन्हें आर्थिक नुकसान भी होगा.

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वहीं ज्वाइंट सचिव साहब राम पंवार की मानें तो सरकार और बैंक यूनियन के बीच की मध्यस्थता करने वाली संस्था आईबीए बैंकर्स की समस्याओं को सरकार तक ठीक तरीके से नहीं पहुंचा पा रही है. जिसके चलते समझौता होने में देरी हो रही है. कहीं न कहीं आईबीए बैंकर्स की समस्याओं पर ध्यान नहीं दे पा रही है. बैंक पदाधिकारियों का कहा है कि बैंकिंग क्षेत्र में कर्मचारियों पर कार्य का अत्यधिक भार है. जिसके मुकाबले उन्हें वेतन कम मिल रहा है.

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