सिरोही.दुनियाभर के शिवालयों में शिवलिंग की पूजा होती है, लेकिन सिरोही जिले के माउंट आबू में स्थित अचलेश्वर महादेव मंदिर देश में एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां शिवलिंग नहीं भगवान के पैर के अंगूठे की पूजा की जाती है. माउंटआबू में महाशिवरात्रि के मौके पर देश-विदेश से श्रद्धालुओं का आना होता है. इस मंदिर में भगवान शिव के अंगूठे के निशान आज भी देखे जा सकते हैं. इसमें चढ़ाया जाने वाला पानी कहा जाता है, यह आज भी एक रहस्य है. देखें ये खास रिपोर्ट
पहाड़ी के तल पर 15वीं शताब्दी में बना अचलेश्वर मंदिर में भगवान शिव के पैरों के निशान आज भी मौजूद हैं. गर्भगृह में शिवलिंग पाताल खंड के रूप में दृष्टिगोचर होता है, जिसके ऊपर एक तरफ पैर के अंगूठे का निशान उभरा हुआ है, जिन्हें स्वयंभू शिवलिंग के रूप में पूजा जाता है. मंदिर परिसर के विशाल चौक में चंपा का विशाल पेड़ अपनी प्राचीनता को दर्शाता है. मंदिर की बायीं बाजू की तरफ दो कलात्मक खंभों का धर्मकांटा बना हुआ है, जिसकी शिल्पकला अद्भुत है.
मंदिर परिसर में द्वारिकाधीश मंदिर भी...
कहते हैं कि इस क्षेत्र के शासक राजसिंहासन पर बैठने के समय अचलेश्वर महादेव से आशीर्वाद प्राप्त कर धर्मकांटे के नीचे प्रजा के साथ न्याय की शपथ लेते थे. मंदिर परिसर में द्वारिकाधीश मंदिर भी बना हुआ है. गर्भगृह के बाहर वाराह, नृसिंह, वामन, कच्छप, मत्स्य, कृष्ण, राम, परशुराम, बुद्ध व कलंगी अवतारों की काले पत्थर की भव्य मूर्तियां स्थापित हैं. इस मंदिर के बारे में पौराणिक कथा ये है कि पौराणिक काल में जहां आज आबू पर्वत स्थित है, वहां नीचे विराट ब्रह्म खाई थी. इसके तट पर वशिष्ठ मुनि रहते थे. उनकी गाय कामधेनु एक बार हरी घास चरते हुए ब्रह्म खाई में गिर गई, तो उसे बचाने के लिए मुनि ने सरस्वती गंगा का आह्वान किया, तो ब्रह्मखाई पानी से जमीन की सतह तक भर गई और कामधेनु गाय गोमुख पर बाहर जमीन पर आ गई. एक बार पुन: ऐसा ही हुआ. इस बार-बार के हादसे को टालने के लिए वशिष्ठ मुनि ने हिमालय जाकर उससे ब्रह्मखाई को पाटने का अनुरोध किया. हिमालय ने मुनि का अनुरोध स्वीकार कर अपने प्रिय पुत्र नंदी वद्र्धन को जाने का आदेश दिया.