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माउंट आबू में हो रही ब्लास्टिंग, सुप्रीम कोर्ट और NGT के नियमों की उड़ रही धज्जियां

प्रदेश में पर्यावरण को लेकर प्रदेश सरकार से लेकर एनजीटी और सुप्रीम कोर्ट भले ही गम्भीर हैं, लेकिन सिरोही जिला प्रशासन शायद पर्यावरण को नष्ट करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ना चाहता है. बात प्रदेश के एक मात्र हिल स्टेशन माउंट आबू की है, जहां सुप्रिम कोर्ट और एनजीटी से ऊपर जाकर जिला कलेक्टर ने कन्ट्रोल और साइलेंट ब्लास्टिंग की कुछ शर्तों के आधार पर स्वीकृति जारी कर दी है.

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माउंट आबू में ब्लास्टिंग

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Published : Feb 22, 2020, 8:59 PM IST

Updated : Mar 9, 2020, 5:38 PM IST

सिरोही. प्रदेश के एक मात्र हिल स्टेशन माउंट आबू में जहां वर्ष 2009 से ईको सेंसटिव जोन लागू है. साथ ही पहाड़ों की खूबसूरती को बचाए रखने के लिए किसी भी प्रकार की खनन, ब्लास्टिंग पर एनजीटी और सूप्रीम कोर्ट की रोक है. लेकिन माउंट आबू में आरयूडीपी के तहत सीवरेज कार्य आरएण्डबी इन्फ्रा प्रोजेक्ट प्राइवेट लिमिटेड द्वारा किया जा रहा है. वहीं इस सीवरेज कार्य के दौरान पर्यावरण को नष्ट करने की जिला प्रशासन ने ठान ली है.

माउंट आबू में हो रही ब्लास्टिंग

माउंट आबू के पर्यावरण प्रेमी और आरटीआई एक्टिविस्ट महेंद्रदान चारण ने आरटीआई के तहत एकत्रित की गई सूचनाओं के आधार पर आरोप लगाया है, कि जिला कलेक्टर ने ही सीवरेज कम्पनी के ठेकेदार को ब्लास्टिंग की अनुमति दे दी है. अब माउंट आबू में सीवरेज कम्पनी द्वारा जगह-जगह रोजाना ब्लास्टिंग कर पहाड़ों को तोड़ा जा रहा है.

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जिला कलेक्टर ने दी ब्लास्टिंग की अनुमति

यह जानकर हैरत होगी की माउंट आबू में ब्लास्टिंग करने की अनुमति कुछ शर्तों के साथ सिरोही के जिला कलेक्टर ने दी है. लेकिन सीवरेज कम्पनी द्वारा इन शर्तों की धज्जियां उड़ाई जा रही है. वहीं सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी की मानें तो ईको सेंसटिव जोन में किसी भी प्रकार की कोई ब्लास्टिंग नहीं कर सकते है. वहीं वन विभाग की ओर से जारी एक पत्र में ऐसी किसी अनुमति के बारे में जानकारी नहीं होने की बात की जा रही है.

माउंट आबू में हो रही ब्लास्टिंग

माउंट आबू में ब्लास्टिंग को लेकर एनजीटी में हुई शिकायत को लेकर जिला कलेक्टर, माउंट आबू एसडीएम और डीएफओ वन्य जीव ने कहा, कि यह प्रोजेक्ट जब से शुरू हुआ है, तब से लेकर अबतक किसी भी प्रकार की ब्लास्टिंग नहीं हुई है. मगर वीडियो कुछ और ही बयां कर रहा है.

इसके बाद इस पत्र में इन अधिकारियों ने कहा, कि मॉनिटरिंग कमेटी से इस संबंध चर्चा चल रही है. लेकिन जब मॉनिटरिंग कमेटी के सदस्य से संबंध साधा गया तो उन्होंने कहा, कि 2015 से लेकर आज के दिन तक इस संबंध में कोई बात नहीं हुई और पिछले दो सालों से तो मॉनिटरिंग कमेटी की बैठक तक नहीं हुई है.

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प्रशासन और वन विभाग के नाक के नीचे हो रही ब्लास्टिंग

पिछले दो वर्षों की बात करें तो माउंट आबू में दर्जनों जगह ब्लास्टिंग कर पहाड़ों को तोड़ा जा रहा है और यह सब प्रशासन और वन विभाग की नाक के नीचे हो रहा है. सब कुछ जानकार भी अधिकारी अंजान बने हुए हैं. वहीं मॉनिटरिंग कमेटी के सदस्य सौरभ गांगडिया ने भी कहा, कि माउंट आबू ईको सेंसेटिव जोन है और यहां किसी भी सूरत में ब्लास्टिंग की अनुमति नहीं दी जा सकती, अगर किसी ने दी है तो यह नियमों के विरुद्ध है.

जिला प्रशासन द्वारा माउंट आबू में ब्लास्टिंग की दी गई अनुमति के पीछे की कहानी क्या है, इसके बारे में सरकार जांच करा कर पता लगा सकती है. अब देखना होगा 300 करोड़ के इस प्रोजेक्ट में सरकार अपना क्या रूख अपनाती है. कहीं इतने बडे प्रोजेक्ट में भ्रष्टाचार तो नहीं पनप रहा, यह एक बड़ा सवाल है. वहीं इस मामले में कोई अधिकारी कैमेरे के सामने आने को तैयार नहीं है.

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खूबसूरती पर लग रहा ग्रहण

बता दें कि प्रदेश का कश्मीर माने जाने वाले पर्वतीय पर्यटन क्षेत्र, जो अपनी खुबसूरती को लेकर देश ही नहीं विदेशों में भी जाना जाता हैं, वहीं अब इस खूबसूरती पर ग्रहण लग गया है. दरअसल माउंट आबू में सीवरेज लाइन का कार्य पिछले कई सालों से चल रहा है. पहले तो सीवरेज कम्पनी के ठेकेदारों ने माउंट आबू की सड़कों को तोड़-तोड़ हर बदहाल कर दिया और अब ठेकेदार पहाड़ों को तोड़ने पर आमादा हैं.

Last Updated : Mar 9, 2020, 5:38 PM IST

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