सीकर. भारतीय समाज में बेटा-बेटी में फर्क की मानसिकता में बदलाव लाने के लिए सरकार 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' जैसे कई महत्वपूर्ण अभियान चला रही है. जिससे समाज में लड़कियों की दशा और दिशा सुधर सके. वहीं अब इन अभियानों ने सीकर वासियों की रूढ़िवादी सोच बदली है. कभी लिंगानुपात में निचले पायदान पर रहने वाले सीकर में अब लिंगानुपात में असमानताएं मिट रही हैं.
'बेटियों को बेटों के बराबर समझें', 'बेटी है कुदरत का वरदान' जैसे नारे अब हकीकत बनने लगे हैं. वहीं सुकन्या समृद्धि योजना, मुख्यमंत्री राजश्री योजना, भ्रूण हत्या पर रोकथाम जैसी कई योजनाओं ने अब रंग लाना शुरू कर दिया है. सीकर में बदलाव की सुखद तस्वीर नजर आ रही है. बेटियों को बेटों के बराबर समझने जैसी सोच यहां के जनमानस में विकसित हुई और उसी का परिणाम है कि सरकार के 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' अभियान को यहां लोगों का पूरा समर्थन मिला है और बच्चों के लिंगानुपात में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है.
सीकर जिले की बात करे तो जब 2011 की जनगणना हुई उस वक्त जिला बच्चों के लिंगानुपात में नीचे से दूसरे नबंर था. उस वक्त जिलें में बच्चों का लिंगानुपात 848 था. यानि कि 1000 बेटों के मुकाबले 848 बेटियां पैदा हो रही थी. उस वक्त लिंग जांच और कन्या भ्रूण हत्या को सबसे बड़ी वजह मानी गई थी लेकिन उसके बाद लोगों में इसको लेकर जागरुकता आई.
सरकार के बेटियों को बचाने वाले अभियान को लोगों ने बखूबी समझा है. इसी कारण जिले में लिंगानुपात 960 पर पहुंच गया है. पिछले एक साल में लड़कियों की संख्या में अच्छी बढ़ोतरी हुई है. 2018-19 में जहां बच्चों का लिंगानुपात 945 था वो 2020 में 960 हो गया है.
जनजागरूकता कार्यक्रमों से मिला फायदा
सीकर में लिंगानुपात की खाई पाटती अगर नजर आ रही है तो इसमें स्वास्थ्य विभाग का बड़ा हाथ है. स्वास्थ्य विभाग ने जिले में लगातार जन जागरूकता कार्यक्रम चलाए. अभियान के तहत एक ही दिन में जिले की सभी 342 ग्राम पंचायतों में 'बेटियां हैं अनमोल' कार्यक्रम आयोजित किए गए. जिले की 922 स्कूलों में भी एक ही दिन में यह कार्यक्रम आयोजित हुआ. इन कार्यक्रमों में लोगों को बेटियों की सफलता की कहानियां सुनाई गई. कई लोगों के मोटिवेशनल स्पीच सुनाए गए. इन कार्यक्रमों में मां-बाप को समझाया गया कि बेटियां बेटों से बिल्कुल भी कम नहीं हैं. उन्हें समान अधिकार मिलने चाहिए.
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