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शेखावाटी में माता रानी का ऐसा दरबार, जहां 4 देवियां एक साथ हैं विराजमान, सिर्फ एक तगारी चूने में बन गया था मंदिर - शेखावाटी में देवी चामुंडा मंदिर का इतिहास

सीकर जिले के खण्डेला की पहाड़ियों पर स्थित मां चामुंडा मंदिर का रोचक इतिहास है. मन्दिर करीब 550 वर्ष से भी ज्यादा पुराना है. यह शेखावाटी का ऐसा मन्दिर है. जहां चार-चार देवियां एक साथ विराजमान है. मन्दिर की खास बात यह है कि इसका निर्माण सिर्फ एक चूना तगारी में हुआ था. एक तगारी चूने से जब मंदिर का निर्माण कार्य प्रांरभ किया गया तो फिर कहा जाता है कि चूना कभी समाप्त ही नहीं हुआ.

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Published : Oct 7, 2019, 1:28 PM IST

खण्डेला (सीकर). अरावली पर्वत श्रृंखला की 650 फीट ऊंची पहाड़ियों पर स्थित मां चामुंडा का मंदिर देश के अनेक प्रदेशों के जन-जन में आस्था का केंद्र बना हुआ है. शेखावाटी का यह एक ऐसा मंदिर है, जहां महा काली, महाचामुंडा, महासरस्वती और महादुर्गा चारों देवियां एक साथ विराजमान हैं.

खण्डेला में स्थित है मां का ऐतिहासिक मंदिर

मन्दिर परिसर में नवरात्रि में 9 दिन विशेष साज सजावट और पूजा-अर्चना की जाती है. खण्डेला सहित अन्य स्थानों से काफी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ मन्दिर में रहती है. अष्टमी और नवमी को मन्दिर में ज्यादा भीड़ रहती है. पुजारी राकेश शर्मा ने बताया कि मां चामुंडा का मंदिर करीब 550 साल पुराना है. जो 650 फीट ऊंची पहाड़ी पर स्थित है. मन्दिर की खास बात यह है कि मंदिर सिर्फ एक तगारी चुने में बनाया गया था. बताया जाता है कि मंदिर निर्माण के समय तगारी में से कभी भी चुना समाप्त नहीं हुआ. शेखावाटी सहित अन्य स्थानों के श्रद्धालुओं के लिए इस मंदिर का काफी महत्व है.

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इसके साथ ही पुजारी ने बताया की मंदिर पहले पहाड़ी के तल में स्थापित था. जहां माता का उद्धगम हुआ था, उसके पास श्मशान भूमि थी. एक दिन माता ने पुजारी को दर्शन दिए और माता की मूर्ति को अन्य स्थान पर विराजमान करने की बात कही. इसके बाद पुजारी ने सभी कस्बेवासियों को एकत्रित किया. फिर एक सुत कूकरी और हल्दी की गांठ पूर्व से पश्चिम दिशा में फेंक दी थी. जहां पर ये जाकर गिरा, वहीं आज चामुंडा माता का मंदिर स्थापित है.

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खास बात यह है कि पूरे मन्दिर का निर्माण सिर्फ एक तगारी चूने में हुआ था. फिर सभी कस्बेवासियों ने मिलकर पालकी में माता की प्रतिमा की पहाड़ी पर स्थापना की. नवरात्रि के समय काफी संख्या में श्रद्धालु मन्दिर में आते हैं. अष्टमी और नवमी को विशेष भीड़ रहती है. ऐसा भी कहा जाता है मन्दिर में मांगी गई सारी मन्नतें पूरी होती है.

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