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World Sparrow Day 2022: बिटिया के जन्म पर मिलता है गौरैया को नया घर...देवगढ़ की संस्था बना रही 'बर्ड हाउस'

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Published : Mar 20, 2022, 7:49 PM IST

Updated : Mar 20, 2022, 9:00 PM IST

देवगढ़ में करियर महिला मंडल की सदस्यों और महिला अधिकारिता विभाग राजसमंद की ओर से सोन चिड़िया मेरी बिटिया अभियान चलाया जा रहा है. इसके तहत संस्था बेटियों के जन्म पर बर्ड हाउस (Bird house on the birth of daughter) बनाकर उद्यानों, घरों और खुले स्थानों पर लगाता है. अब तक जिले के अफसरों, कर्मचारियों और परिचितों के घर बेटी के जन्म पर 600 से अधिक बर्ड हाउस लगाए जा चुके हैं. विलुप्त होती गौरैया की प्रजाति को बचाने के लिए यह पहल की गई है.

Bird house on the birth of daughter
Bird house on the birth of daughter

देवगढ़ (राजसमंद). राजस्थान के लोकल परिवेश में परिवारों में लोग अपनी बेटियों को चिड़कली कहकर बुलाते हैं. चिड़कली यानी चिड़िया की तरह घर के आंगन में चीं-चीं करने वाली लाडली. देवगढ़ के करियर महिला मंडल की महिलाओं और महिला अधिकारिता विभाग राजसमंद की ओर से चिड़ियों को बचाने के लिए संकल्प लिया गया है. एक वर्ष पूर्व लिए संकल्प में अब तक बेटियों के नाम से 600 से अधिक बर्ड हाउस बनाए जा चुके हैं. बेटी के जन्म पर महिला मंडल की ओर से बर्ड हाउस (Bird house on the birth of daughter) बनाकर लगाए जाते हैं. जिले में कई उद्यानों, घरों की बालकनी, दीवारों, खुले स्थानों, छतों और पेड़ों पर बर्ड हाउस लगाए गए हैं.

मंडल की महिलाओं की ओर से किसी भी सदस्य के जन्मदिन पर और विशेष तोर पर बेटी के जन्मदिन पर बर्ड हाउस लगाया जाता है. आज इस अभियान से कई संस्थान और लोग जुड़ चुके हैं और अब नन्ही गौरैया घर, आंगन और विद्यालयों में चीं-चीं की सुमधुर ध्वनि करती हुई नजर भी आने लगी हैं. पर्यावरण संरक्षण का सजग प्रहरी बनकर गौरैया संरक्षण के लिए इस प्रयास की जिले के उच्च अधिकारियों ने भी सराहना की है.

चिड़ियों के लिए बर्ड हाउस

इस अभियान में डॉ. सुमिता जैन, अवंतिका शर्मा, निशा चुंडावत, हेमा पालीवाल, किरण गोस्वामी, भावना सुखवाल, अवंतिका आचार्य, विष्णु कंवर, शिल्पा सेन, विजय लक्ष्मी धाभाई, शिखा सोनी, भाविका, स्वाति सोलंकी सहित कई महिलाओं के सहयोग से किया जा रहा है.

बर्ड हाउस भेंट भी करती है संस्था

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ऐसे शुरू हुआ यह अभियान
लॉकडाउन में महिला मंडल की ओर से सेल्फी विद परिंदा अभियान शुरू किया गया. उस वक्त कई पक्षियों को भूख-प्यास से तड़पते देखा गया. वह वक्त ऐसा था जब समूची मानव जाति घरों में कैद थी. तब बेजुबान जानवरों-पक्षियों को न खाना मिला और न पानी. तब मंडल ने सेल्फी विद परिंदा अभियान शुरू किया और घरों के बाहर छोटी चिड़िया गौरैया आने लगी. गौरैया वैसे भी नाम मात्र की ही बची हैं. तभी सभी ने सोचा की क्यों न गौरैया के लिए स्थाई घर बनाया जाए और लोगों में बांटा जाए. फिर मंडल ने 'सोन चिड़िया मेरी बेटिया अभियान' की शुरुआत की.

बर्ड हाउस

आज कई बर्ड हाउस बन चुके हैं जिन्हें जिले के उच्च अधिकारियों की बेटियों के नाम से, दोस्तों व परिवारजनों की बेटियों के नाम से लगाए गए हैं. सेल्फी विद परिंदा अभियान में मंडल की अपील पर पिछले दो वर्षों में हजारों लोगों ने गौरैया के लिए परिंदे लगाए गए हैं.

उद्यानों ने लगे बर्ड हाउस

हर घोंसला मां के आंचल के समान
सामाजिक कार्यकर्ता भावना पालीवाल कहती हैं कि गर्मी में चिड़िया उड़ का खेल, हाथ से रुमाल बनाकर मां का खाना खिलाना, घर के खुले झरोखे में चिड़िया का आना...सब पुरानी बातें हो गईं हैं. गौरैया हमारे जीवन का हमेशा से अभिन्न अंग रहीं हैं. आप बचपन से खुद को ढूंढना शुरू करेंगे तो गौरैया को पाएंगे. हर एक घोंसला आज मां के आंचल के समान है. गौरैया को बचाने के लिए सभी को मिलकर प्रयास करने होंगे.

Last Updated : Mar 20, 2022, 9:00 PM IST

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