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मां अन्नपूर्णा के दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं की सभी मनोकामनाएं होती हैं पूरी - Goddess Annapurna temple

नवरात्रि उत्सव पर जिले के विभिन्न शक्तिपीठ और देवालयों पर श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ है. ईटीवी भारत भी आपको हर रोज माता रानी के प्राचीन मंदिरों के बारे में बता रहा है. इसी कड़ी में आज आपको राजसमंद जिला मुख्यालय के गिरवर पहाड़ी के ऊपर स्थित प्रमुख शक्तिपीठ मां अन्नपूर्णा माता के मंदिर के बारे में बताएंगे.

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Published : Oct 4, 2019, 8:03 PM IST

राजसमंद. जिला मुख्यालय में गिरवर पहाड़ी पर स्थित प्रमुख शक्तिपीठ मां अन्नपूर्णा माता के मंदिर नवरात्रि उत्सव के तहत श्रद्धालुओं की विशेष भीड़ लगी हुई है. मंदिर में सुबह से ही पूजा-अर्चना और अनुष्ठान का क्रम शुरू हो जाता है. मंदिर में मेवाड़, मारवाड़ सहित विभिन्न प्रांतों से श्रद्धालु यहां पहुंचकर मां अन्नपूर्णा के मंदिर में दर्शन कर रहे हैं.

मां अन्नपूर्णा के दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं की सभी मनोकामनाएं होती हैं पूरी

मां अन्नपूर्णा माता का यह प्राचीन मंदिर है. इसकी मान्यता है कि यहां आने वाले श्रद्धालुओं की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है और उसके घर में कभी भी अन्न और जल की कमी नहीं होती है.

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कहां स्थित है मंदिर

राजसमंद जिला मुख्यालय की दो प्रमुख पहाड़ियों में से एक पहाड़ी स्थित राजमंदिर में विराजित है. मां अन्नपूर्णा माताजी जहां से झील का नजारा दिखाई देता है. मान्यता यह है कि मां की अन्नपूर्ण माता के विराजित होने के बाद इस नगर में कभी अकाल नहीं पड़ा और तमाम विपत्तिओं को मां ने दूर किया. मंदिर तक पहुंचने के लिए दो मार्ग हैं. पहला मार्ग प्राचीन है जो राजनगर की ओर से आता है. यह मार्ग कच्चा और दुर्गम है. वर्तमान में दूसरा मार्ग सड़क मार्ग है. सुगम और मंदिर तक सड़क से पहुंचा जा सकता है.

राज मंदिर का निर्माण महाराणा राज सिंह ने अपने मनोकामनाएं पूरी होने पर करवाया था. राज सिंह मांगलिक कार्य को लेकर जब संवत् 1698 में जैसलमेर आ रहे थे. तब उनके मार्ग में गोमती नदी का वेग बहुत अधिक होने से उसे पार न कर पाए थे. उस समय उस अथाह जल राशि को देखने वर्तमान राजमंदिर की पहाड़ी पर आए.

बुद्धि एवं तेज से परिपूर्ण राजसिंह ने अपने साथियों के साथ मंदिर से फैले हुए जल को देखा और मन ही मन संकल्प लिया कि जब मिभी अवसर लेगा. वे इस अथाह जल राशि को बांध देंगें. संवत् 1709 फागुन कृष्णा 2 को मेवाड़ का शासन बाद राजसिंह दोबारा वर्तमान राजमंदिर पधारे महाराणा ने अपने संभालने के संकल्प की पूर्ति हेतु अपने योग्य पुरोहित से अपनी पुरोइच्छा बताई. हित ने राजसिंह से कहा कि यह कार्य हो सकता है. लेकिन उसके लिए आवश्यक है कि कार्य पूर्ण श्रद्धा और निष्ठा हो इसके पश्चात महाराणा ने भव्य राजमंदिर का निर्माण करवाया.

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