नाथद्वारा (राजसमंद). हर साल धुलंडी (होली) पर एक सवारी निकलती है, जिसे 'बादशाह की सवारी' कहा जाता है. यह सवारी डोल उत्सव की शाम 6 बजे नाथद्वारा के गुर्जरपुरा मोहल्ले के बादशाह गली से निकलती है.
यह एक प्राचीन परंपरा है, जिसमें एक व्यक्ति को नकली दाढ़ी-मूंछ, मुगल पोशाक और आंखों में काजल लगाकर दोनों हाथों में श्रीनाथजी की छवि देकर उसे पालकी में बैठाया जाता है. इस सवारी की अगवानी मंदिर मंडल का बैंड बांसुरी बजाते हुए करता है. यह सवारी गुर्जरपुरा से होते हुए बड़ा बाज़ार से आगे निकलती है, तब बृजवासी पालकी में सवार बादशाह को गालियां देते है.
सवारी मंदिर की परिक्रमा लगाकर श्रीनाथजी के मंदिर पहुंचती है, जहां वह बादशाह अपनी दाढ़ी से सूरजपोल की नवधाभक्ति के भाव से बनी नो सीढियां साफ करता है, जो कि लंबे समय से चली आ रही एक प्रथा है. उसके बाद मंदिर के परछना विभाग का मुखिया बादशाह को पैरावणी (कपड़े, आभूषण आदि) भेंट करते है. इसके बाद फिर से गालियों का दौर शुरू होता है. मंदिर में मौजूद लोग बादशाह को खरी-खोटी सुनते है और रसिया गान शुरू होता है.