राजसमंद.आज पूरे देश भर में भाई बहन का पावन पर्व रक्षाबंधन का त्योहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जा रहा है. वहीं जिले में रक्षाबंधन का पर्व मनाया तो जा रहा है, लेकिन एक अनोखे अंदाज में. जिला मुख्यालय के 12 किलोमीटर दूर निर्मल ग्राम पंचायत पिपलांत्री स्थित है. यह एक अनोखा गांव है, जहां रक्षाबंधन का त्योहार थोड़ा अलग ढ़ंग से मनाया जाता है. इस गांव की बेटियां पेड़ों को राखी बांधकर रक्षाबंधन का त्योहार मनाती हैं.
राजसमंद में अनोखे ढंग से मनता है रक्षाबंधन का त्योहार यह भी पढ़ें: युवक को पकौड़ी उठाकर खाना पड़ा महंगा...कहासुनी में हुई मारपीट में युवक की मौत
बता दें कि सिर्फ इस गांव में ही नहीं आस-पास के गांवों की बेटियां पेड़-पौधों को राखी बांधकर रक्षा बंधन का पावन पर्व मनाती हैं. पेड़ों को राखी बांधकर पर्यावरण संरक्षण का संदेश देती हैं. जहां एक ओर पूरे विश्व में ग्लोबल वार्मिंग का खतरा मंडरा रहा है. ग्लोबल वार्मिंग को लेकर सारा विश्व चिंता में है तो वहीं राजस्थान के राजसमंद जिले का एक छोटा सा गांव आदर्श गांव पिपलांत्री की बिटिया पेड़ लगाकर उस पर राखी बांधकर पर्यावरण संरक्षण का संदेश दे रही हैं.
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पूर्व सरपंच ने डाली थी इस परंपरा की नींव...
बता दें कि यह परंपरा 15 वर्ष पूर्व के सरपंच श्याम सुंदर पालीवाल के सोच का नतीजा है. आज इस परंपरा ने जन-जन को पर्यावरण का मुरीद बना दिया है. 2006 में श्याम सुंदर पालीवाल सरपंच बने. तब यह गांव हरा-भरा नहीं था. चारों तरफ मार्बल खदानों से घिरा पिपलांत्री गांव बंजर था. लेकिन सरपंच श्याम सुंदर का पर्यावरण के प्रति लगाव पिपलांत्री गांव को बंजर से हरा-भरा कर दिया. गांव में बेटी हो या बेटा उसके पैदा होने पर 111 पौधे लगाए जाते हैं. जब तक वह पौधा बड़ा नहीं हो जाता उसकी देखभाल परिवार द्वारा की जाती है और फिर रक्षाबंधन के पर्व पर बेटियां उन्हीं पेड़ को राखी बांधकर रक्षा का संकल्प लेती है.
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यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है. तो आज रक्षाबंधन के अवसर पर भी बेटियों ने पेड़ पर राखी बांधकर रक्षाबंधन का त्योहार मनाया. सुबह से ही गांव की बेटियां सज धज कर तैयार होती हैं. एक थाली में कुमकुम चावल रक्षा सूत्र के साथ एक नारियल लेकर पेड़ जहां लगा होता है वहां पहुंचती हैं. बेटियां पेड़ को रक्षा सूत्र बांधती हैं. पंद्रह सालों से चली आ रही है इस परंपरा ने अब बड़ा रूप ले लिया है. दूर-दूर से बेटियां पेड़- पौधों को रक्षा सूत्र बांधने के लिए यहां पहुंचती है. इस अनोखी परंपरा से हमें सीख लेने की जरुरत है. जब पूरा विश्व ग्लोबल वार्मिंग के खतरे से जूझ रहा है. उससे कहीं ना कहीं हमें नई राह सुझाता है कि पिपलांत्री गांव का मॉडल प्रकृति को बचाने को लेकर सार्थक कदम है. देश ही नहीं विश्व को भी इस मॉडल को अपनाना चाहिए. जिससे एक बार फिर पर्यावरण को संतुलित किया जा सके.