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SPECIAL: कोरोना की भेंट चढ़ा मोलेला का 800 साल पुराना टेराकोटा आर्ट - राजसमंद का मोलेला गांव

राजसमंद जिले के मोलेला गांव में पिछले 800 सालों से टेराकोटा आर्ट का चलन चलता आ रहा है. लेकिन इस साल कोरोना जैसी वैश्विक महामारी की वजह से टेराकोटा आर्ट के व्यवसाय पर व्यापक असर देखने को मिला. पिछले 3 महीनों से यह व्यवसाय पूरी तरह से बंद है. क्योंकि बाहर से पर्यटक यहां आए ही नहीं है, जिससे इन लोगों को काफी नुकसान हुआ है.

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मोलेला का 800 साल पुराना टेराकोटा आर्ट

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Published : Jun 19, 2020, 10:38 PM IST

राजसमंद. वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के कारण उत्पन्न हुई परिस्थितियों ने हर व्यवसाय को भारी क्षति पहुंचाई है. इस महामारी से छोटे उद्योग व्यवसाय पर गहरा प्रभाव पड़ा है. खासकर ग्रामीण क्षेत्रों छोटें उद्योगों के व्यापरियों पर इसका व्यापक असर पड़ है. इन्हीं में से एक राजसमंद जिले का मोलेला गांव. यह गांव किसी परिचय का मोहताज नहीं है. क्योंकि यहां पिछले 800 सालों से मिट्टी की प्रतिमाएं बनाने का कार्य किया जा रहा है.

मोलेला का 800 साल पुराना टेराकोटा आर्ट

यह मूर्तियां देश ही नहीं बल्कि विदेश में भी खासी पहचान रखती है. देश के विभिन्न अंचलों से आने वाले लोगों ने मोलेला के टेराकोटा आर्ट को काफी पसंद किया है. कुम्हार परिवारों की अद्भुत कला को देखते हुए इसके मुरीद खुद राष्ट्रपति भी हुए है. कुम्हार परिवारों के तीन लोगों को राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित किया जा चुका है और एक व्यक्ति को पदमश्री भी मिल चुका है.

टेराकोटा आर्ट की लोकप्रियता

बावजूद इसके वर्तमान परिस्थितियों पर नजर डाले तो मोलेला की टेराकोटा आर्ट को विचित्र परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा है. करीब 3 महीने से इस व्यवसाय से जुड़े हुए लोगों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. इस व्यवसाय से जुड़े हुए लोगों की परेशानियों का जाएजा लेने के लिए ईटीवी भारत की टीम की टीम ने मॉलेला गांव की ओर रुख किया. टीम गांव में दाखिल हो रही थी. तो दुकानों में टेराकोटा आर्ट की विभिन्न अद्भुत मिट्टी की कला से बनी हुई मूर्तियां और अन्य प्रतिमाएं दिखाई दी.

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काम पर पड़ा बुरा प्रभाव

जिसके बाद टीम की मुलाकात सर्वप्रथम राजेंद्र कुम्हार से हुई. जिन्होंने बताया कि कोरोना महामारी के कारण लॉकडाउन लगने से यहां कोई भी टूरिस्ट नहीं आ पाया और ना ही हम लोग कहीं बाहर जाकर इस पारंपरिक कला को नहीं सिखा पाए. खास करके सबसे ज्यादा नुकसान इस महामारी की वजह से शादी विवाह कम होने के कारण मिट्टी के बर्तनों की बिक्री पर भी इसका बुरा प्रभाव पड़ा है. इसके अलावा वे बताते हैं, कि वैशाख महीने में कई स्थानों से लोग यहां पहुंचते और देवी देवताओं की प्रतिमाओं को ले जाकर मंदिरों में स्थापित करते हैं, लेकिन इस बार नाममात्र की प्रतिमाएं बिक पाई है.

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टेराकोटा आर्ट को भी मिले स्थान

टीम ने देखा कि उनके पिताजी मिट्टी के बर्तन अपने हाथ की कला से बना रहे थे. उन्होंने बताया कि उनका परिवार इसी व्यवसाय पर अपना जीवन यापन करता है, लेकिन इस महामारी की वजह से इस व्यवसाय से जुड़े हुए लोगों को मुसीबत में डाल दिया है. उन्होंने बताया की इस कारण से कुछ लोगों ने मनरेगा योजना में भी हाथ आजमा रहे हैं. जिससे जीवन यापन किया जा सके. उन्होंने सरकार से मांग है कि इस कला से जुड़े हुए लोगों को राहत देने का काम करें. खासकर बनाए गए मिट्टी की मूर्तियां और अन्य सामानों को मार्केट में एक स्थान मिले, जिससे टेराकोटा आर्ट को एक स्थान मिल सके.

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गौरतलब है कि मोलेला का टेराकोटा देश के विभिन्न राज्यों में खास करके गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और उत्तर भारत के कई राज्यों की एक विशिष्ट पहचान रखता है, लेकिन राष्ट्रपति पुरस्कार मिलने के बाद और इस कला के विश्व पटल पर दिखाने के बाद विदेशों से भी इस कला के दीवाने लोग आते हैं. कुम्हार परिवार के लोग उनकी कला दिखाने और अन्य लोगों को सिखाने के लिए विदेशों में आमंत्रित किए जाते हैं, लेकिन पिछले 3 महीनों से इन लोगों का व्यवसाय पूरी तरह से बंद है. क्योंकि बाहर से पर्यटक यहां आए ही नहीं है जिससे इन लोगों को काफी नुकसान हुआ है.

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