राजसमंद.नाथद्वारा तहसील में लगने वाले मोलेला गांव में पिछले 800 सालों से मिट्टी की प्रतिमाएं बनाने का कार्य किया जा रहा है. इस काम को करने वाले इन परिवारों का कुनबा पिछले 800 सालों से मिट्टी की मूर्ति बनाते आ रहा है. एक छोटा सा गांव मोलेला, जिनमें से करीब 30 परिवार कुम्हारों के हैं. यह एक ही कुनबा है. जो पिछले 800 सालों से मिट्टी की मूर्तियां बनाता आ रहा है. इनकी मूर्तियां देश ही नहीं वरन विदेश में भी खासी पहचान रखती है.
मोलेला गांव के खेमराज कुम्हार को साल 1977 में सरकार ने दिल्ली में लगे कला मेले में आमंत्रित किया था. उनकी कला को पहली बार राष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया. देश के विभिन्न हिस्सों से आने वाले लोगों ने मोलेला की टेराकोटा आर्ट को काफी पसंद किया. उनकी इस कला के मुरीद खुद देश के राष्ट्रपति हुए. उन्होंने 1981 में खेमराज को राष्ट्रपति पुरस्कार भी दिया. इसके बाद इस गांव मे बाहर से आने वाले लोगों की संख्या में काफी इजाफा हो गया.
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हालांकि मोलेला की यह मूर्तियां इससे पहले भी देश के गुजरात महाराष्ट्र मध्य प्रदेश सहित उत्तर भारत के कई राज्यों में अपनी विशिष्ट पहचान रखती थी. लेकिन राष्ट्रपति पुरस्कार मिलने के बाद इस कला को विश्व पटल पर दिखाने के बाद विदेशों से भी इस कला के दीवाने लोग आते हैं. खेमराज और उनके छोटे भाई कई देशों की यात्रा कर चुके हैं. कई देशों ने तो उन्हें अपने यहां उनकी कला दिखाने व अन्य लोगों को सिखाने के लिए आमंत्रित किया था.