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विश्व वन दिवस: हरियाली में दूसरे पायदान पर...लेकिन अब यहां के जंगलों को बचाने की जरूरत - Pratapgarh latest news

देश दुनिया में सोमवार को विश्व वन दिवस (International Forests Day) मनाया गया, लेकिन अब भी वनों की कटाई (Trees Cutting in Pratapgarh) खतरनाक स्तर पर जारी है. इसलिए, सभी के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि वे जिम्मेदारी से काम करें और वैश्विक वन दिवस पर वनों को बचाने के लिए अपना योगदान दें. इस बीच प्रतापगढ़ जिले में कुछ ऐसी स्थिति सामने आई है, जो पर्यावरण के लिए सही नहीं है. देखिये ये रिपोर्ट...

Trees Cutting in Pratapgarh
Trees Cutting in Pratapgarh

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Published : Mar 21, 2022, 11:06 PM IST

प्रतापगढ़. संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 28 नवंबर 2012 को एक प्रस्ताव पारित करते हुए हर साल 21 मार्च को अंतरराष्ट्रीय वन दिवस (International Forests Day) के रूप में मनाने की घोषणा की थी. इस दिन को विश्वभर में सभी तरह के वनों के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ाने और इनके महत्व को समझाने के तौर पर मनाया जाता है. प्रतापगढ़ कांठल की आबोहवा और भौगोलिक स्थितियों के कारण यहां वनच्छादित इलाका भरपूर है, जो प्रदेश में उदयपुर के बाद दूसरे स्थान पर है.

हालांकि, फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया की सर्वे रिपोर्ट में प्रतापगढ़ जिले के वनाच्छाति क्षेत्र में कमी (Trees Cutting in Pratapgarh) बताई गई है, जो चिंता का विषय है. पर्यावरण प्रेमी लक्षमण सिंह चिकलाड़ ने बताया कि वनाधिकार कानून के आने के बाद से लगातार क्षेत्र के घने जंगलों को जमीन के कब्जे के लिए बेतरतीब तरीके से काटा जा रहा है. गत साल की तुलना में करीब 48 वर्ग किलोमीटर कम क्षेत्र हो गया है. वहीं, प्रदेश में 466 वर्ग किलोमीटर वनाच्छादित क्षेत्र बढ़ा हुआ बताया गया है.

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क्या है स्थिति : ऐसे में पर्यावरणविदें में चिंता है. इसे लेकर वन विभाग भी अब सावचेत हो गया है. हम कह सकते हैं कि कुछ सालों से हरियाली में कमी हो रही है. प्रदेश का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 3 लाख 42 हजार 239 वर्ग किलोमीटर है. इसमें से 16 हजार 572 वर्ग किलोमीटर में वनक्षेत्र है. वहीं, वनाच्छादित क्षेत्र 4.84 प्रतिशत ही है. उदयपुर का वनाच्छादित क्षेत्र 23.58 प्रतिशत है, जबकि प्रतापगढ़ में कुल भौगोलिक क्षेत्र 44 हजार 495 वर्ग किलोमीटर है. इसमें से एक हजार 44 वर्ग किलोमीटर वनाच्छादित क्षेत्र है, जो 23.47 प्रतिशत है.

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इसी के साथ लक्ष्मण सिंह चिकलाड़ ने आरोप लगाते हुए बताया कि जिले के जंगलों में गत कई वर्षों से पेड़ों की कटाई अवैध रूप से जारी है. विशेषकर सीतामाता के जंगलों में तो रात को कुल्हाडिय़ों की आवाजें सुनाई देती है. पर्यावरण प्रेमियों के अनुसार रातों-रातों पेड़ों को काटकर वाहनों में भरकर जंगल से बाहर ले जाया जाता है. इसमें वन माफिया भी सक्रिय है, जो पेड़ों की अवैध कटाई करते है. ऐसे में जिले के कुल भू-भाग में हरियाली का आंकड़ा कम होना स्वाभाविक है.

हालांकि, जंगलों से कटाई के मामले को लेकर लोगों का कहना है कि कोरोना के बाद से ही आमजन में पर्यावरण को लेकर जागरूक देखी जा रही है. कोरोना में ऑक्सीजन की कमी को देखते हुए अब शहरों में लोग अपने घरों पर भी पेड़-पौधे लगा रहे हैं. लोगों का खास तौर पर अब यह मानना है कि जंगलों में होने वाली कटाई को सरकार वह प्रशासन को ध्यान देकर इस पर पूर्ण रूप से रोक लगानी चाहिए.

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