पाली. शहरों के रास्ते कोरोना का खतरा गांव तक पहुंचा. प्रवासियों की दस्तक के बाद Covid-19 ने गांव के लोगों को भी चपेट में लेना शुरू कर दिया. पाली से 20 किलोमीटर दूर सोनाई माझी ग्राम पंचायत का भी यही हाल हुआ. लेकिन खास बात यह रही कि बीमारी के पैर पसारने से पहले ही गांव के लोगों ने कोरोना से लड़ने के लिए कमर कस ली.
पाली से 20 किलोमीटर दूर सोनाई माझी ग्राम पंचायत कोरोना वायरस संक्रमण के बाद लॉकडाउन की शुरुआत से ही चर्चाओं में रहा. यहां पॉजिटिव मरीज आने से पहले ही ग्रामीण काफी सतर्क हो चुके थे. जिसके चलते गांव का एक भी बाशिंदा अभी तक Covid-19 की चपेट में नहीं आया है. इस गांव में रहने वाले बुजुर्गों और युवाओं दोनों के तालमेल ने ऐसा प्रबंधन किया है कि यह गांव पूरी तरह से संक्रमण रोकने के लिए नजीर बन चुका है.
गांव में आए अभी तक 13 पॉजिटिव मरीजों में से एक भी स्थानीय ग्रामीण नहीं है. यह उपलब्धि यहां के बुजुर्गों और युवाओं द्वारा पहले से तैयार किए गए प्लान के तहत हुए कार्यों की वजह से मिली. गांव वालों की सतर्कता का ही परिणाम था कि जितने भी प्रवासी गांव में आए उन्हें ग्रामीणों के संपर्क में नहीं आने दिया गया. ऐसे में ग्रामीण इस संक्रमण से मुक्त रहे.
सोशल डिस्टेंसिंग हो या मास्क, यहां है हर बात का ख्याल
बात भले ही सोशल डिस्टेंसिंग की हो या मुंह पर मास्क बांधने की. गांव के लोग हर सुरक्षा की चीज को अपने हाथ रख रखा है. इतनी ही नहीं गांव के लोग स्वयं के साथ-साथ अपनी जेब में 2 से 3 मास्क अलग से भी रखते हैं. ताकि रास्ते पर चलते हुए किसी के पास मास्क ना हो तो वह उपलब्ध करा सके.
भामाशाहों ने खोले हाथ
सोनाई माझी में कोविड-19 के संकट के समय में विशेष सहयोग गांव के भामाशाहों ने किया. कई भामाशाहों ने सड़क पर निकल रहे श्रमिकों के लिए अपने हाथ खोल दिए. करीब डेढ़ माह तक यहां के ग्रामीण भामाशाहों ने लोगों को हर समय भोजन उपलब्ध कराया. इसके साथ ही कई प्रवासी श्रमिक ऐसे भी थे, जिन्हें कोई साधन नहीं मिल पाया जिसके चलते ग्रामीणों ने सभी को सोनाई माझी स्कूल में ही रोक दिया और वहीं इन लोगों के लिए भोजन की सभी व्यवस्थाएं की.
प्री-प्लानिंग कर गांव को रखा सुरक्षित
सोनाई माझी गांव के बुजुर्गों को जब पता चला कि लॉकडाउन के चलते रोजगार के चक्कर में अपने घरों से दूर रहे लोग फिर से गांव लौट रहे हैं, तो ग्रामीणों ने पहले से ही गांव को संक्रमित मुक्त करने के लिए प्लान तैयार कर दिया. इसके तहत पहली बार गांव पहुंचे 103 लोगों को ग्रामीणों ने गांव से बाहर स्कूल में ही ठहराया. करीब 14 दिन तक इन सभी लोगों को वहीं रखा गया. क्वॉरेंटाइन की अवधि सफलता पूर्वक खत्म करने के बाद ही सभी को गांव में प्रवेश दिया गया. इसके चलते गांव पूरी तरह से सुरक्षित रहा. ऐसे में यहां लौटे 13 प्रवासियों के सैंपल पॉजिटिव आने के बाद भी यहां के स्थानीय ग्रामीण पूरी तरह से संक्रमित मुक्त रहे.