मारवाड़ जंक्शन (पाली). पाली का एक छोटा सा गांव है आऊवा. जो मारवाड़ जंक्शन से 12 किमी और पाली से 52 किमी दूरी पर स्थित है. सन् 1857 की लड़ाई में ठाकुर कुशाल सिंह के नेतृत्व में आजादी का बिगुल आऊवा गांव से ही बजाया गया था. 1857 ब्रिटिश सेना द्वारा आऊवा किले की घेराबंदी के लिए जाना जाता है. ठाकुर कुशाल सिंह के नेतृत्व में पाली क्षेत्र के विभिन्न ठाकुरों ने अंग्रेजों के खिलाफ जंग छेड़ दी थी. जिसके बाद किले को अंग्रजों ने घेर लिया था. अंग्रेजों और ठाकुरों के बीच कई दिनों तक संघर्ष चला था. किले और गांव में आज भी घेराबंदी के निशान मौजूद हैं.
इस छोटे से कस्बे में रहने वाले स्वतंत्रता सेनानियों ने अंग्रेजी हुकूमत की नाक में दम कर रखा था. ब्रिटिश हुकूमत ने स्वतंत्रता सेनानियों के गढ़ को खत्म करने के लिए 24 जनवरी 1858 को 120 सैनिकों को गिरफ्तार किया था. 25 जनवरी 1858 को कोर्ट ने 24 स्वतंत्रता सेनानियों को मृत्यु दंड की सजा सुनाई थी. उन्हें एक साथ लाइन में खड़ा करके फांसी दे दी गई थी. यह पहला ऐसा मामला था, जिसमें इतने कम समय में किसी को फांसी दी गई हो.
सुरंग बनाकर ध्वस्त किए थे 6 गढ़
स्वतंत्रता सेनानियों के गढ़ को तबाह करने के लिए अंग्रेजों ने कई राजाओं के साथ मिलकर आऊवा पर हमला भी किया था लेकिन, हर बार युद्ध में अंग्रेजों को हार का सामना करना पड़ता था. बताया जाता है कि ठाकुर कुशाल सिंह, सुगाली माता के परम भक्त थे. उनकी कृपा से अंग्रेजों की मुंह की खानी पड़ती थी. तब अंग्रेज सरकार ने मूर्ति खंडित कर आऊवा सहित उससे जुड़े छह किलों को सुरंगे बनाकर ध्वस्त करवा दिया था.
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अंग्रेजों द्वारा आऊवा का इतिहास मिटाने की बहुत कोशिश की गई थी. क्रांतिवीर कुशाल सिंह चांपावत का किला भी पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया था. आऊवा की आस्था की प्रतीक मां सुगाली की प्रतिमा भी खंडित कर दी थी. ऐतिहासिक विरासत को भी नष्ट किया गया. 161 साल बाद पैनोरमा के निर्माण से आऊवा का अब गौरव पुन: लौटा है. यहां मां सुगाली की प्रतिमा भी लगाई गई है, जहां आसपास के लोग दर्शन करने आते हैं. आऊवा की क्रांति में सहयोग करने वाले अन्य ठिकानेदारों का इतिहास भी वर्णित है.
24 क्रांतिकारियों उतारा गया मौत के घाट
अंग्रेजों ने 24 क्रांतिकारियों को कोर्ट मार्शल और मौत के घाट उतार दिया था. यह दृश्य सचित्र वर्णित है. यह दृश्य देखने भर से ही भुजाएं फड़क उठती है और तत्कालीन अंग्रेज सरकार के विरुद्ध आक्रोश फूट पड़ता है. स्वाधीनता के प्राण न्यौछावर करने वालों के नाम भी यहां अंकित है.