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Special: राजस्थान का एक ऐसा गांव जहां हर घर में है एक विधवा...

पाली जिले के कामदड़ी गांव में सिलिकोसिस बीमारी ने इस कदर दस्तक दी कि आज तक ये गांव इसके दंश से उभर नहीं पाया. इस गांव के बीमारी का कहर इस कदर बरपा कि हर घर में एक विधवा है. कुछ तो ऐसे परिवार है, जिनमें बूढ़ी मां अपने जवान बेटे को पल-पल मरता देख रही है. पढ़ें पूरी खबर...

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कामदड़ी में सिलिकोसिस बीमारी की दस्तक

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Published : Sep 8, 2020, 10:01 PM IST

पाली.कहते हैं कि पेट पालने के लिए इंसान हर वह कोशिश करता है, जिससे उसके परिवार को भूखा ना सोना पड़ा. लेकिन जब इंसान की यही कोशिश उसकी ही जिदंगी और मौत के बीच उसे जुझने पर मजबूर कर दे तो ना हीं इंसान कभी इससे उभर पाता है और ना हीं परिवार के लोग इस पर रोक लगा पाते है. कुछ ऐसा ही हाल राजस्थान के एक गांव का है, जहां के लोगों ने अपने परिवार के पालन-पोषण के लिए पत्थर कटाई का काम शुरू किया. इससे उनका परिवार तो चलने लगा. लेकिन उनकी जिंदगी पर जैसे ग्रहण लग गया.

कामदड़ी में सिलिकोसिस बीमारी की दस्तक

हम बात कर रहे हैं पाली जिले की कामदड़ा गांव की, जहां पर युवाओं ने अपने घर-परिवार का पेट पालने के लिए काम तो शुरू किया. लेकिन इन सभी के बीच सिलिकोसिस बीमारी ने दस्तक दी. इसका असर इस कदर गांव पर पड़ा कि पिछले कई सालों से ये गांव उभर ही नहीं पाया. गांव की हालत ये हो गई है कि किसी घर की बूढ़ी मां अपने जवान बेटों को पल-पल तड़पता देख रही है तो किसी घर के बच्चे दो वक्त की रोटी के लिए किसी गांव वाले का इंतजार कर रहे हैं.

जवान बेटों को पल-पल तड़पता देख परेशान मां

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इतना ही नहीं, इस गांव की कई ऐसी विधवाएं है, जो 20 की उम्र भी पार नहीं कर पाई हैं. गांव में 100 से ज्यादा ऐसे युवक है जो हर पल मौत का इंतजार कर रहे हैं. इस पूरे गांव में सिलिकोसिस बीमारी ने अपना घर बना लिया है. इन सभी के बीच ग्रामीणों में इस कदर डर बैठ चुका है कि अस्पताल जाकर वे अपनी जांच तक नहीं करवा रहे हैं. हालांकि, सरकार की ओर से इन सिलिकोसिस मरीजों के लिए आर्थिक सहायता के कई रास्ते भी खोले गए हैं. इनके लिए पेंशन की व्यवस्था भी की गई है. साथ ही 5 लाख तक की सहायता राशि भी मुहैया कराई गई. लेकिन फिर भी इन सभी के मन में उनके जाने के बाद परिवार की चिंता साफतौर पर नजर आती है.

सिलिकोसिस से पीड़ित बुजुर्ग

बता दें कि पाली में सिलिकोसिस बीमारी का सिलसिला पिछले 5 सालों से सामने आता जा रहा है. बाली उपखंड एवं रायपुर उपखंड के कई गांव ऐसे हैं, जहां कच्चे पत्थर के खदान, पत्थर घिसाई एवं कटाई का काम करने के लिए लोग मजदूरी करते हैं. सुरक्षा उपकरणों के अभाव में यह लोग धीरे-धीरे सिलिकोसिस बीमारी से ग्रसित हो गए. इन मजदूरों को खुद ही नहीं पता चला कि वह इस बीमारी के चंगुल में फंसते जा रहे हैं. इस बीच जब उन्होंने अस्पताल जाकर जांच करवाई तब पता चला कि वह लाइलाज बीमारी सिलिकोसिस के चपेट में आ गए हैं.

युवाओं में सिलिकोसिस का कहर

जिले में सिलिकोसिस मरीजों के आंकड़ों की बात की जाए तो इस गांव में अब तक 5314 मरीज इस बीमारी से ग्रसित है. वहीं, इस बीमारी से अब तक 380 लोग अपनी जान गवां चुके हैं. वहीं, कामदड़ा गांव में 150 से ज्यादा लोग सिलिकोसिस से ग्रसित हैं और 80 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. अब तक गांव में 20 से ज्यादा बच्चे अनाथ हो चुके है.

विधवाओं का कहा जाता है यह गांव

जिले की भली उपखंड क्षेत्र में कागदडा गांव को विधवाओं का गांव भी कहा जाता है. इस गांव में 400 घरों की बस्ती है. इनमें से करीब 80 से ज्यादा घरों में विधवा महिलाएं हैं. हालांकि, आंकड़ा इससे भी ज्यादा है. लेकिन यह सरकारी आंकड़े के तहत 80 लोगों की मौत यहां सिलिकोसिस से हो चुकी है. इस गांव के लोगों की मानें तो यहां के प्रत्येक घर में एक व्यक्ति की मौत सिलिकोसिस बीमारी से हुई है.

कई बच्चे हो चुके हैं अनाथ

इस गांव में बसने वाले ज्यादातर आदिवासी परिवार ही हैं. इस गांव के युवाओं की कम उम्र में शादी हो जाती है. ये युवा अपनी 20 उम्र पार करते-करते एक-दो बच्चे के पिता बन जाते हैं और 25 की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते मौत के मुंह में चले जाते हैं. ऐसे में इनके साथ विवाह कर आई महिलाएं अन्यत्र विवाह कर लेती है. इस सबके बीच इनके बच्चे अनाथ बेसहारा घूमते रहते हैं, जिनका पालन-पोषण या तो उनके दादी-दादा करते हैं या फिर गांव के लोगों के सहारे इन मासूमों का पेट पलता है.

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इस गांव में बेटी देने से कतराते हैं लोग...

इस गांव में ज्यादातर मौतें सिलिकोसिस बीमारी से हुई है. इसमें 22 से लेकर 30 साल तक के युवा शामिल है. इसके चलते गांव में करीब 50 से ज्यादा युवा ऐसे हैं, जिनका अभी तक रिश्ता नहीं हो पाया है. गांव के आसपास के लोग इस गांव में अपनी बेटी तक देने से कतराते हैं. उन्हें इस बात का डर लगा रहता है कि आखिर कब उनकी बेटी का घर उजड़ जाए, इसका कोई पता नहीं है. इस बीत अगर कोई सक्षम परिवार अपने बेटे की शादी करवा भी देता है तो उससे पहले लड़की के परिवार वाले लड़के के पूरे परिवार की हर गतिविधि की स्पष्ट जानकारी मांगते हैं, उसके बाद ही घर में शहनाई बज पाती है.

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