पाली.कहते हैं कि पेट पालने के लिए इंसान हर वह कोशिश करता है, जिससे उसके परिवार को भूखा ना सोना पड़ा. लेकिन जब इंसान की यही कोशिश उसकी ही जिदंगी और मौत के बीच उसे जुझने पर मजबूर कर दे तो ना हीं इंसान कभी इससे उभर पाता है और ना हीं परिवार के लोग इस पर रोक लगा पाते है. कुछ ऐसा ही हाल राजस्थान के एक गांव का है, जहां के लोगों ने अपने परिवार के पालन-पोषण के लिए पत्थर कटाई का काम शुरू किया. इससे उनका परिवार तो चलने लगा. लेकिन उनकी जिंदगी पर जैसे ग्रहण लग गया.
हम बात कर रहे हैं पाली जिले की कामदड़ा गांव की, जहां पर युवाओं ने अपने घर-परिवार का पेट पालने के लिए काम तो शुरू किया. लेकिन इन सभी के बीच सिलिकोसिस बीमारी ने दस्तक दी. इसका असर इस कदर गांव पर पड़ा कि पिछले कई सालों से ये गांव उभर ही नहीं पाया. गांव की हालत ये हो गई है कि किसी घर की बूढ़ी मां अपने जवान बेटों को पल-पल तड़पता देख रही है तो किसी घर के बच्चे दो वक्त की रोटी के लिए किसी गांव वाले का इंतजार कर रहे हैं.
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इतना ही नहीं, इस गांव की कई ऐसी विधवाएं है, जो 20 की उम्र भी पार नहीं कर पाई हैं. गांव में 100 से ज्यादा ऐसे युवक है जो हर पल मौत का इंतजार कर रहे हैं. इस पूरे गांव में सिलिकोसिस बीमारी ने अपना घर बना लिया है. इन सभी के बीच ग्रामीणों में इस कदर डर बैठ चुका है कि अस्पताल जाकर वे अपनी जांच तक नहीं करवा रहे हैं. हालांकि, सरकार की ओर से इन सिलिकोसिस मरीजों के लिए आर्थिक सहायता के कई रास्ते भी खोले गए हैं. इनके लिए पेंशन की व्यवस्था भी की गई है. साथ ही 5 लाख तक की सहायता राशि भी मुहैया कराई गई. लेकिन फिर भी इन सभी के मन में उनके जाने के बाद परिवार की चिंता साफतौर पर नजर आती है.
बता दें कि पाली में सिलिकोसिस बीमारी का सिलसिला पिछले 5 सालों से सामने आता जा रहा है. बाली उपखंड एवं रायपुर उपखंड के कई गांव ऐसे हैं, जहां कच्चे पत्थर के खदान, पत्थर घिसाई एवं कटाई का काम करने के लिए लोग मजदूरी करते हैं. सुरक्षा उपकरणों के अभाव में यह लोग धीरे-धीरे सिलिकोसिस बीमारी से ग्रसित हो गए. इन मजदूरों को खुद ही नहीं पता चला कि वह इस बीमारी के चंगुल में फंसते जा रहे हैं. इस बीच जब उन्होंने अस्पताल जाकर जांच करवाई तब पता चला कि वह लाइलाज बीमारी सिलिकोसिस के चपेट में आ गए हैं.
जिले में सिलिकोसिस मरीजों के आंकड़ों की बात की जाए तो इस गांव में अब तक 5314 मरीज इस बीमारी से ग्रसित है. वहीं, इस बीमारी से अब तक 380 लोग अपनी जान गवां चुके हैं. वहीं, कामदड़ा गांव में 150 से ज्यादा लोग सिलिकोसिस से ग्रसित हैं और 80 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. अब तक गांव में 20 से ज्यादा बच्चे अनाथ हो चुके है.