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स्पेशल: जिनको Business का 'क' 'ख' 'ग' 'घ' नहीं आता, उन आदिवासी महिलाओं की 'गुलाबी गैंग' बनी कंपनियों की पहली पसंद - पाली की आदिवासी महिलाएं

अक्सर आपने देखा और सुना होगा की कंपनियों को स्थापित करने से पहले उसके लिए तमाम योजनाएं बनाई जाती हैं. मार्केटिंग का खास ध्यान रखा जाता है. लेकिन आप उनके लिए क्या कहेंगे, जिन्होंने न कभी स्कूल का मुंह देखा और न ही बिजनेस के बारे में जाना. एक ऐसा ही गुलाबी गैंग पाली का है, जहां की आदिवासी महिलाओं ने बिजनेस की एक नई मिसाल कायम की है. आइए जानते हैं इन महिलाओं की फर्श से अर्श तक पहुंचने की दास्तां...

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Published : Nov 22, 2019, 8:36 AM IST

Updated : Nov 22, 2019, 10:36 AM IST

पाली.राजस्थान के जंगलों में होने वाले जिस सीताफल के पेड़ों को काटकर आदिवासी जलावन के काम में लेते थे. वही सीताफल पाली के आदिवासी समाज की तकदीर संवार रहा है. महिला सशक्तिकरण का उदाहरण तो आप सभी ने देखा होगा. किसी महिला ने अपनी उच्च शिक्षा को छोड़ा, तो किसी ने अपने करोड़ों के पैकेज तो किसी ने अपनी प्रापर्टी बेच दूसरे लोगों के लिए अपने जीवन को समर्पित कर दिया. ऐसी कहानियां तो आपने काफी सुनी होगी. इन सभी में सबसे महत्वपूर्ण पहलू शिक्षा है.

पाली की आदिवासी महिलाओं के संघर्ष की कहानी

लेकिन आज आपको जिस महिला शक्ति से रूबरू करवाने जा रहे हैं. उनका वास्ता किताबों या स्कूल से दूर-दूर तक नहीं है. इसके बाद भी इनके संघर्ष की कहानी काफी रोचक है. आज इनका संघर्ष ऐसे कदम पर पहुंच चुका है, जिसके चलते आज भारत की कई बड़ी फूड प्रोसेसिंग कम्पनियां इनसे सीधा जुड़ना चाहती हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इनके संघर्ष की सराहना करते नहीं चुके हैं. फिर भी इन महिला शक्ति से मुलाकात इनता आसान नहीं है, जिन परिस्थितियों में ये रहती हैं. वहां का जीवन आसान नहीं है. रोडवेज तो दूर की बात है, वहां संचार के लिए ढंग से नेटवर्क भी नहीं आते हैं. ईटीवी भारत की टीम एक लम्बा सफर तय करके अरावली पर्वतमाला की तलहटी के जंगलों में रहने वाली इन महिलाओं से रूबरू होने पहुंची.

गुलाबी गैंग के नाम से मशहूर हैं ये महिलाएं...

ईटीवी भारत की टीम आपको ऐसी महिला शक्ति से मिलाने जा रही है, जिसे गुलाबी गैंग की उपमा दी गई है. यहां कोई एक या दो महिला नहीं, बल्कि इस गैंग में आदिवासी क्षेत्र की 7 हजार से ज्यादा महिलाएं सीधे तौर पर जुड़ी हुई हैं. पाली जिला मुख्यालय से 135 किमी दूर बाली विधानसभा क्षेत्र का आदिवासी इलाका, जिसके भीमाणा गांव और इसके आस-पास के गांवों में यह सभी महिलाएं रहती हैं. पिछले 10 साल पहले के समय में जाए तो यह क्षेत्र कच्ची शराब के निर्माण और लूटपाट के लिए कुख्यात था. लेकिन यहां रहने वाली महिलाओं ने ऐसी जागरुकता की लहर पैदा की है कि पुरूषों को पीछे छोड़ आज इन महिलाओं ने अपना अलग ही वजूद स्थापित कर लिया है. आज भी आधी रात में भी इस आदिवासी क्षेत्र से गुजरने वाले लोग जब इन महिलाओं के समूह का नाम ले लेते हैं, तो अच्छे-अच्छे लोगों की बोलती बंद हो जाती है.

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पाली के इस आदिवासी क्षेत्र में सर्दी के समय सीताफल काफी तादाद में होता है. यहां पुरुषों को शराब की लत ने जकड़ रखा है. ऐसे में अपना घर और अपने मासूम बच्चों का पेट पालने के लिए यहां की आदिवासी महिलाएं जंगल में होने वाले सीताफल और अन्य फलों को तोड़कर सड़कों पर लाकर बेचती हैं, जिससे इनके घर का गुजारा होता है. उस समय इन महिलाओं को नाम मात्र के पैसे में अपने सीताफल का पूरा टोकरा दलालों को बेचना पड़ता था और वहीं सीताफल शहर में लोगों तक 50 से 80 रुपए प्रतिकिलो की दर पर बिकता था. ऐसे में इन महिलाओं को इस फल से सिर्फ अपने घर में एक वक्त का भोजन करने जितने ही पैसे मिलते थे.

पाली जिले में रह रही आदिवासी महिलाओं के संघर्ष की कहानी...

शिक्षा के आभाव में भी पैर नहीं किए पीछे...

शिक्षा की कमी इतनी थी कि ये महिलाएं पैसा भी नहीं गिन पाती थीं. ऐसे में इनको रास्ता दिखाने के लिए एनजीओ सृजन के कार्यकर्ताओं ने इनसे मुलाकात की. इसके बाद कुछ महिलाओं ने इकट्ठा होकर घूमर महिला प्रोडूसर कम्पनी लिमिटेड की स्थापना की. इसमें पहले साल में 300 महिलाएं, जो जंगल से सीताफल इकट्ठा करती थीं, उन्हें शामिल किया गया और सीताफल की सीजन में प्रतिकिलो सीताफल की दर निश्चित कर दी गई. सभी महिलाएं अलग-अलग स्थानों से सीताफल इकट्ठा कर भीमाणा लेकर आती थीं. जो सीताफल का पूरा टोकरा महिलाओं को औने पौने दामों में बेचना पड़ता था. उसके सभी महिलाओं के इकट्ठा होने पर अच्छे दाम मिलने लगे. ऐसे में तीन सालों में इस महिला समूह ने 5 हजार महिलाओं को अपना सदस्य बना लिया.

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इन महिलाओं के पास अब सीताफल काफी मात्र में होने लगा, तो सृजन एनजीओ के माध्यम से उन्होंने भीमाणा में सीताफल का एक प्लांट स्थापित कर लिया. प्लांट में क्षेत्र से इक्कठा हुआ सीताफल लाया जाता और इसका पल्स निकालकर इसे आइसक्रीम कम्पनियों को भेजना शुरू कर दीं. इसके बाद को भाग्य ने जैसे सारे दरवाजे इन महिलाओं के लिए खोल दिए हों. देखते ही देखते इन महिलाओं ने अपना पहचान भारत की कई बड़ी कम्पनियों में बना ली.

अन्य महिलाओं के लिए भी बनीं रोजगार का साधन...

कंपनी अच्छी चलने के बाद इन महिलाओं ने अपने खुद के लिए और स्थानीय महिलाएं जो दिहाड़ी मजदूरी करने के लिए पिंडवाड़ा या बाली जाती थीं. उन्हें कम्पनी में ही सम्मान जनक रोजगार देना शुरू कर दिया गया. यहां की महिलाएं रोजगार के लिए अपने गांव से बाहर नहीं जाती हैं. इस कम्पनी में उन्हें सीताफल का पल्स निकालने से लेकर, इनकी पैकिंग और अन्य कार्य करने होते हैं, जिनका उनको महिला सदस्यों द्वारा बनाए मानकों के तहत मानदेय मिलता है.

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अब जब कंपनी अच्छी चलने लगी तो इन महिला सदस्यों ने अपने क्षेत्र का विकास करने की भी ठानी. सबसे पहले इन्होंने अपने क्षेत्र को शराब मुक्त करने के लिए साल 2014 में 7 हजार महिलाओं ने एक साथ कई गांवों में रैली निकाली और क्षेत्र में बनने वाली कच्ची शराब की भट्टियों और ठेकों पर हमला बोल दिया. महिलाओं द्वारा लगातार ऐसा करने से इस क्षेत्र में कच्ची शराब बनाने वाले माफियाओं में भी भय का माहौल व्याप्त हो गया और आज इस क्षेत्र में एक भी शराब की भट्टी आपको नजर नहीं आएगी.

सूदखोरों की समस्या से ग्रामीणों को दिलाया निजात...

इन सभी के बाद इन महिलाओं के सामने सबसे बड़ी समस्या क्षेत्र में फेले सूदखोरों से थी. यहां शिक्षा का अभाव है और लोगों की आर्थिक स्थिति शून्य के बराबर है. अपने छोटे खर्चे के लिए भी महिलाएं अपने जेवरात इन सूदखोरों के यहां गिरवी रख देती थीं और ये सूदखोर इनसे 10 टका तक ब्याज वसूलते थे. ऐसे में कई सालों तक भी यह लोग 10 हजार रुपए तक का उधार भी नहीं चुका पाते थे. इससे निजात पाने के लिए इन महिलाओं ने अपने हर गांव में महिला सदस्यों की ही अलग-अलग समिति बना दी. इस समिति में शामिल महिलाएं अपने द्वारा कमाई राशि का कुछ हिस्सा समिति में जमा करवा देती हैं. जहां से जरूरत के समय महिलाएं आसानी से पैसे ले सकती हैं. ऐसे में इस कदम से इस क्षेत्र में सूदखोरों का कारोबार खत्म कर इन महिलाओं ने क्षेत्र के कई परिवारों को बचा लिया.

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खुद अशिक्षित लेकिन आने वाली पीढ़ी के लिए शिक्षा के लिए कर रहीं संघर्ष...

इन महिलाओं का संघर्ष अभी भी पूरी तरह से जारी है. हर क्षेत्र में इन महिलाओं ने अपनी अहम भूमिका निभाई है, लेकिन जब शिक्षा की बात आती है तो इन महिलाओं के चेहरे में चिंता की लकीरें आ जाती हैं. आज 7 हजार महिलाओं के समूह को सभी महिला सदस्य ही चला रही हैं. इनकी कम्पनी के पास करोड़ों का बजट भी है, लेकिन जब इनके प्रोडेक्ट को मार्केट की आवश्यक्ता होती है, तो इनके मन में शिक्षा के अभाव की बात खटकती है. लेकिन इन महिलाओं ने अपनी आने वाली पीढ़ी को शिक्षित करने की ठान रखी है. अशिक्षा के चलते जो कदम ये महिलाएं नहीं उठा पा रही हैं. वह उम्मीद अब ये महिलाएं अपनी बहू और बेटियों से कर रही हैं. इसके लिए ये महिलाएं अपने क्षेत्र में कॅालेज खुलावने का संघर्ष कर रही हैं. इन्होंने यह भी बताया कि सरकार इनकी नहीं सुनेगी तो संघर्ष कर यह अपने बूते पर यहां की बेटियों को शिक्षित करने के लिए कालेज खोलेंगी.

इन महिला शक्ति के और भी कई ऐसे कार्य हैं, जिन्हें गिनाने के लिए समय कम पड़ जाता है. अशिक्षा के दौर में भी इन महिलाओं के जज्बे को स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी सराहा है. ऐसे में ईटीवी भारत की टीम राजस्थान की इस गुलाबी गैंग के संघर्ष को सलाम करती है.

Last Updated : Nov 22, 2019, 10:36 AM IST

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