पाली. देश की स्वतंत्रता (Indian Independence Day) के लिए सन 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ की गई सशस्त्र क्रांति करने वाले क्रांतिकारियों में ठाकुर कुशाल सिंह आउवा प्रमुख व्यक्ति थे. इन्होंने मारवाड़ में अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र क्रांति का नेतृत्व किया था. ठाकुर कुशाल सिंह (Thakur Kushal Singh) जोधपुर रियासत के आउवा ठिकाने के जागीरदार थे.
ठाकुर कुशाल सिंह (Thakur Kushal Singh of Pali) चांपावत राठौड़ थे और जोधपुर रियासत के प्रथम श्रेणी के जागीरदार थे. सन् 1857 की क्रांति को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम भी कहा जाता है. इस क्रांति की लहर पूरे देश में फैल गई थी, ऐसे में राजपूताना इससे अछूता कैसे रह सकता था?. यहां के राजा अंग्रेजों के साथ हुई सहायक संधियों के कारण विवश थे. इस कारण वे अंग्रेजों का खुलकर विरोध नहीं कर सकते थे. लेकिन यहां के बहुत से जागीरदार इस क्रांति में खुलकर सामने आए. बहुत से जागीरदारों ने इस क्रांति में सशस्त्र योगदान दिया था.
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अंग्रेजों के विरुद्ध छेड़ा अभियानः डीसा और एरिनपुरा की छावनी के सैनिकों ने अंग्रेजों के विरुद्ध अभियान छेड़ा. यहां के सिपाही बागी हो गए और विद्रोह कर आबू पहुंच गए. वहां इन विद्रोही सैनिकों ने अंग्रेज अधिकारियों व कई अंग्रेजों को मौत के घाट उतार दिया. वहां से दिल्ली चलो, मारो फिरंगी के नारे लगाते हुए आउवा तक पहुंच गए. इन सैनिक विद्रोहियों के मारवाड़ में 25 अगस्त 1857 को आउवा पहुंचने पर ठाकुर कुशाल सिंह (Thakur Kushal Singh) ने उनका स्वागत किया और उन्हें अपने यहां शरण दी. कुशाल सिंह खुद भी विद्रोहियों के साथ हो गए. यह खबर सुनकर देश की स्वतंत्रता के लिए पहले से प्रयासरत ठाकुर बिशन सिंह गूलर और ठाकुर अजीत सिंह आलनियावास भी अपनी-अपनी सेना के साथ आउवा पहुंचकर स्वतंत्रता सेनानियों के साथ मिल गए.
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दमन करने के लिए सेना के साथ भेजाः अंग्रेज विरोधी इन लोगों के आउवा गांव में एकत्रित होने की सूचना पर जोधपुर के पर्व महाराजा तख्त सिंह ने इनका दमन करने के लिए सिंघवी कुशल राज और मेहता विजयमल को सेना देकर वहां भेजा. 8 सितंबर सन 1857 को बिठोरा गांव के पास मारवाड़ की सेना का क्रांतिकारियों से युद्ध हुआ. जोधपुर की सेना के अनार सिंह व राजमल लोढ़ा युद्ध में काम आए. सेनापति कुशलराज और विजय मल मेहता अपने प्राण बचाकर भाग खड़े हुए. इस युद्ध में क्रांतिकारियों की सेना ने जोधपुर राज्य की सेना को परास्त कर दिया. इसकी सूचना मिलते ही अजमेर से गवर्नर जनरल के एजेन्ट ने अंग्रेजी सेना के साथ चढ़ाई की.
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आउवा पर आक्रमण के लिए अंग्रेजों की सेना पहुंचीः आउवा पर आक्रमण करने के लिए अंग्रेजों ने अजमेर, नीमच, नसीराबाद और मऊ की सैनिक छावनियों से सेना एकत्रित की और जॉन लारेन्स के नेतृत्व में सेना आउवा पहुंची. जोधपुर का पॉलिटिकल एजेंट कैप्टन मेशन भी 1500 सैनिकों के साथ आ पहुंचा. इधर कुशाल सिंह के साथ आउवा में स्वतंत्रता की चाहत रखने वाले 5 हजार राजपूत सैनिक एकत्र हो गए थे. इनमें आसोप के ठाकुर शिवनाथ सिंह कंपावत, गूलर के ठाकुर बिशनसिंह मेड़तिया, आलणीयावास के ठाकुर अजीतसिंह मुख्य थे. इनके अतिरिक्त बांटा, लाम्बिया, रहावास, बांझावास, आसींद तथा मेवाड़ के रूपनगर, सलूम्बर के ठिकानेदारों की सेनाएं थी.
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18 सितंबर 1857 को आउवा में राजपूतों ने अंग्रेजी सेना के साथ युद्ध किया. दोनों पक्षों में भयंकर युद्ध हुआ. एक बार सरकारी सेना ने विद्रोहियों की सेना को आउवा के तालाब की पाल के पीछे बचाव करने के लिए बाध्य कर दिया. लेकिन जल्द ही आसोप ठाकुर शिवनाथ सिंह ने हमला करके अंग्रेज सेना की बहुत सी तोपें छीन ली. इससे अंग्रेजों की सेना को युद्ध का मैदान छोड़कर आंगदोस की तरफ हटना पड़ा. इस युद्ध में अंग्रेज सेना परास्त हो गई. क्रांतिकारियों ने कैप्टन मेसन को मार डाला और उसका सिर काटकर आउवा के दरवाजे पर लटका दिया. इस घटना के सन्दर्भ में आज भी होली के अवसर पर लोकगीत गाए जाते हैं.