पाली.होली का पर्व अपने पूरे चरम पर है. रंगों और गुलाल से मौसम सराबोर है, लेकिन पिछले कुछ सालों से होली के यह रंग फीके पड़ने लगे हैं. केमिकल युक्त रंगों ने लोगों को होली खेलने से दूर कर दिया है. लेकिन पिछले दो-तीन वर्षों से हर्बल गुलाल का चलन काफी तेज हो चुका है. लोग हर्बल गुलाल और रंगों से ही होली खेलना पसंद कर रहे हैं. ताकि उनकी सेहत भी बरकरार रहे और केमिकल रंगों से भी दूरी रह सके लेकिन सबसे बड़ी बात है कि हर्बल गुलाल आता कहां से है ? ईटीवी भारत आपको रूबरू कराने जा रहा है हर्बल गुलाल के उत्पादकों से.
पाली जिला मुख्यालय से करीब 150 किलोमीटर दूर वाली उपखंड के गोरिया भीमाणा क्षेत्र में आबाद जंगलों में पलाश के पेड़ अपनी अलग ही पहचान बता रहे हैं. इस समय यह जंगल पूरी तरह से एक गुलाबी और लाल फूलों से ढका हुआ है. पेड़ों पर पत्ते की बजाय सिर्फ पलाश के फूल हैं. यह फूल वर्षों से आदिवासी लोग देख रहे हैं. लेकिन, क्षेत्र में आदिवासी महिलाओं ने इन फूलों के महत्व को समझ लिया और 3 साल पहले इन फूलों से इन्होंने हर्बल गुलाल बनाना सीख लिया. जिस जंगल में रहते हैं वहां यह फूल इनके लिए कुछ वर्षों पूर्व कचरा ही था. लेकिन, जब से इन फूलों के महत्व को इन महिलाओं ने पूरे देश को समझाया तो उसके बाद इस कचरे का महत्व सोने के बराबर हो गया.
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आज आदिवासी महिलाएं जंगलों में लकड़ी बीनने की जगह इन फूलों को बिनती और इससे अपना रोजगार भी चलाते हैं. करीब 200 से ज्यादा महिलाएं 10 गांव से इन पलाश के फूलों को इकट्ठा कर अलग-अलग प्रक्रियाओं से गुजार कर अलग-अलग रंगों में हर्बल गुलाल को तब्दील करती है. इस बार भी इन महिलाओं के लिए 5 टन हर्बल गुलाल का आर्डर आ चुका है. जिन्हें उन्होंने पूरा भी कर दिया है. इन्हें खुशी है कि घर बैठे इन्हें आर्डर मिल रहे हैं और सम्मानजनक पैसा भी मिल रहा है. कुछ वर्षों पूर्व तक जहां इन आदिवासी लोगों को सिर्फ मजदूरी के लिए पहचाना जाता था. उन्होंने अपने ही क्षेत्रों में होने वाली इन वनस्पति से अपना व्यापार खड़ा कर दिया और देश को एक नया उदाहरण दिया.
कई चीजों से तैयार किया जाता है गुलालः