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पूर्वजों की लीक पर पाली के किसान...सेहत बढ़ाने के लिए बैगनी, हरा और काले गेहूं का करेंगे उत्पादन

कोरोना काल के बाद लोग अब अपनी सेहत पर सबसे ज्यादा ध्यान रखने लगे हैं. उन चीजों का उपयोग अपने भोजन में सबसे ज्यादा कर रहे हैं, जिन्हें हमारे पूर्वज सेहत बढ़ाने के लिए खाया करते थे. लोगों के इस रुझान को देखते हुए पाली में अब गेहूं बोने की पुरानी पद्धति फिर से शुरू हो गई है. पाली में एक बार फिर से बैंगनी, काले और हरे रंग के गेहूं के उत्पादन चलन शुरू हो गया है, जो लोगों को सेहत प्रदान करेगा.

Pali' Farmers produce purple, green and black wheat, बैगनी, हरा और काले गेहूं का उत्पादन
काला, बैगनी और हरे रंग के गेहूं का उत्पादन

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Published : Feb 18, 2021, 5:03 PM IST

पाली.कोरोना काल के बाद लोग अब अपनी सेहत पर सबसे ज्यादा ध्यान रखने लगे हैं. लोग उन चीजों का उपयोग अपने भोजन में सबसे ज्यादा कर रहे हैं, जिन्हें हमारे पूर्वज सेहत बढ़ाने के लिए खाया करते थे. लोगों के इस रुझान को देखते हुए पाली में अब गेहूं बोने की पुरानी पद्धति फिर से आने लगी है. पाली में एक बार फिर से बैंगनी, काले और हरे रंग के गेहूं का चलन शुरू हो रहा है.

सेहत बढ़ाएंगे काला, बैगनी और हरे रंग के गेहूं

दरअसल, बैंगनी, काले और हरे रंग के गेहूं यह सुनने में काफी अचंभित करने वाला है, लेकिन हमारी भोजन श्रृंखला में वर्तमान में खाया जाने वाला गेहूं का चलन काफी पुराना नहीं है. हमारे पूर्वज इन तीन रंगों का गेहूं खाकर अपने शरीर को 100 वर्ष तक स्वस्थ रखते थे. पाली जिला मुख्यालय पर स्थित कृषि विज्ञान केंद्र की ओर से एक बार फिर से लोगों की सेहत को बढ़ाने के लिए इन तीनों ही गेहूं के बीज का उत्पादन शुरू कर दिया गया है. अब इन बीज से पाली के किसान अपने खेतों में फिर से पूर्वजों की इस दिन को उपजाएंगे.

हरे रंग का गेहूं

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इस गेहूं की खास बात यह है कि इसका रंग काला होता है. काले गेहूं में कई पौष्टिक तत्व होते हैं. इस गेहूं में कैंसर, डायबिटीज, तनाव, दिल की बीमारी और मोटापे जैसी बीमारियों की रोकथाम करने की क्षमता होती है. सामान्य गेहूं की तुलना में काले गेहूं की न्यूटीशियन वैल्यू अधिक होती है. इसके अलावा इसमें फाइबर कंटेट भी होता है, जो शुगर और कैंसर रोगियों के लिए फायदेमंद होता है.

काले रंग का गेहूं

कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों की माने तो तीनों रंग के यह गेहूं अपने आप में काफी पोष्टिक तत्व से भरे होते हैं. इनके लगातार उपयोग से शरीर काफी सेहतमंद रहता है और शरीर में किसी भी प्रकार के तत्व की कमी नहीं होती है. उन्होंने बताया कि इन तीनों ही रंग के गेहूं का चलन भारतवर्ष में हजारों साल पुराना है. भारतवर्ष की भूमि पर यह गेहूं सबसे ज्यादा उत्पादित किया जाता था. समय की बढ़ती मांग, बढ़ती जनसंख्या और गेहूं की मांग के चलते भूरे रंग का यह गेहूं चलन में आया था.

गेहूं की फसल

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इस गेहूं से उत्पादन बहुत ज्यादा होता है और आम जनता तक उपलब्ध कराया जा सकता है. इसके कारण धीरे-धीरे मुनाफा कमाने के चक्कर में किसानों ने इन तीनों रंग के गेहूं को अपने खेतों में उपजाना बंद कर दिया था. एक बार फिर से करोना काल के बाद लोग सेहतमंद भोजन पसंद करने लगे हैं, जिसके चलते इन गेहूं का चलन और इनकी मांग फिर बाजार में बढ़ने लगी है. ऐसे में कृषि विज्ञान केंद्र पाली इन तीनों ही गेहूं के बीजों का उत्पादन कर मार्च तक किसानों के बीच बांटने की तैयारी कर रहा है.

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