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स्पेशल स्टोरी: 700 साल पुराने मंदिर में 18 साल से लगा ताला, ये है बड़ी वजह

पाली जिले के सादड़ी कस्बे में 700 साल पुराने मंदिर में 18 साल से देवी की प्रतिमा को तालों में कैद किया हुआ है. जहां पुलिस की मौजदूगी में सुबह-शाम पूजा होती है. आखिर क्या है पूरा मामला जानिए पाली से स्पेशल रिपोर्ट में...

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700 साल पुराने मंदिर में 18 साल से लगा ताला,

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Published : Dec 9, 2019, 9:59 PM IST

पाली.सबसे पुराने विवाद राम मंदिर का फैसला हो चुका है. अब सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में दिशा दे दी है. लेकिन, पाली जिले के सादड़ी कस्बे के लोगों को भी ऐसे ही किसी फैसले का इंतजार है. दरअसल, कस्बे में 700 साल पुराने मंदिर में 18 साल से देवी की प्रतिमा दो तालों में कैद किया हुआ है. इस मंदिर में लगे तालों की बात करें तो विवाद की कई परते सामने आती है. लेकिन, सीधे तौर पर बताए तो कोर्ट के आदेश पर इस मंदिर की चाबी 18 साल से सादड़ी पुलिस थाने के मालखाने में जमा है. सुबह शाम थाने का एक कांस्टेबल इस मंदिर का ताले को खोलता है. इसके बाद एक घंटे की पूजा पाठ होने के बाद कांस्टेबल इसे फिर से ताले में कैद कर चाबी को मालखाने में जमा करवाता है. इसके साथ ही जो मंदिर में चढ़ावा आता है. उसे भी थाने के मालखाने में जमा कर दिया जाता है और इन सभी की बकायदा रजिस्टर में एंट्री की जाती है.

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इतना ही नहीं बरसों से मंदिर की पूजा करने का दावा करने वाला एक परिवार मंदिर परिसर में ही रहता है, लेकिन उसे ना तो मंदिर में जाने की अनुमति है और ना ही पूजा-पाठ का अधिकार. मंदिर पर मालिकाना हक का दावा करने वाले ट्रस्ट से जुड़े लोगों के लिए भी यही कायदा-कानून है. सुबह-शाम एक घंटे के लिए पुलिसकर्मी जब मंदिर का ताला खोलते है, उस वक्त दोनों पक्षों को मंदिर में बाहर से ही दर्शन करने का अधिकार है. कोर्ट के आदेश पर मंदिर की पूजा के लिए एक व्यक्ति को पुजारी मुकर्रर किया गया है. जिसे पूजा की थाली में भक्तों द्वारा चढ़ावा लेने का अधिकार है, मगर मंदिर में चढ़ावा में मिलने वाली नकदी, जेवरात अथवा अन्य सामग्री पुलिस थाने में जमा कराई जाती है. यह सिलसिला पिछले 18 साल से चल रहा है, जिसका अंत कोर्ट के फैसले से ही होगा.

700 साल पुराने मंदिर में 18 साल से लगा ताला, देखिए रिपोर्ट

सादड़ी में है 700 साल पुराना मंदिर
पाली जिले के सादड़ी में रणकपुर रोड पर रोहिल-रोहिणी माताजी का प्राचीन मंदिर स्थित है. मंदिर परिसर में ही पौने तीन बीघा बेशकीमती डोली की जमीन है. दो पक्ष इस मंदिर व डोली की जमीन पर अपना-अपना हक जता रहे है. जिनके बीच 18 मार्च 2001 को झगड़ा हुआ. 2001 से कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए पुलिस ने मंदिर को कुर्क करने के लिए कोर्ट में अपील की. कोर्ट के आदेश के बाद मंदिर में सुबह-शाम 1 घंटे के लिए थाने से पुलिसकर्मी पूजा कराने के लिए ताला खोलते है और बाद में चाबी थाने के मालखाने में जमा कराते है.

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चढ़ावा थाने में जमा, दान बक्से को भी जंजीरों में जकड़ा
कोर्ट के आदेश में पुलिस ने दोनों पक्षों की सहमति से सोहनलाल रावल को पुजारी मुकर्रर कर 17 अक्टूबर 2001 से 25 अक्टूबर, 2001 तक मंदिर की पूजा-अर्चना कराई. जिसमें 1476 रुपए 25 पैसे का चढ़ावा आया. यह राशि थाने के मालखाने में जमा कराई गई, लेकिन उसके बाद दोनों पक्ष ने फिर से कोर्ट में वाद दायर किए तो कोर्ट ने पुलिस को सुबह-शाम 1 घंटे के लिए मंदिर खोल पुजा कराने के आदेश दिए. इसमें आने वाला दान-चढ़ावा एक बक्से में जमा किया जाता है. जिस पर दो ताले लगाए गए है, जबकि बक्से को भी जंजीरों से बांध कर उस पर अलग से ताला लगाया गया है.

जमीन को लेकर दोनों पक्ष जता रहे अपना-अपना दावा
सादड़ी कस्बे में आखरिया चैक में रणकपुर रोड पर स्थित माताजी की मंदिर करीब पौने तीन बीघा जमीन में स्थित है. पीढ़ी दर पीढ़ी मंदिर के पुजारी पक्ष से जुडे़ मोहनगिरी-मोडगिरी गोस्वामी पक्ष का दावा है कि है श्री रोहिल माता मंदिर में 700 साल से उनके पूर्वज पूजा-अर्चना करते आए है. पुजारी मोहनगिरी का दावा है कि विक्रम संवत 1735 में मेवाड़ के महाराणा राजश्री सिसोदिया राजसिंह महाराज ने मंदिर व कृषि भूमि का खातेदार कब्जा पट्टा के ताम्रपत्र उनके पूर्वजों को दिया, जो उनके पास सुरक्षित है. वहीं दूसरे पक्ष मादा गांव से किशोरसिंह, प्रेमसिंह राजपुरोहित के अलावा रोहिणी माता मंदिर ट्रस्ट का दावा है कि यह मंदिर रोहिणी माताजी का है, जो उनकी कुलदेवी है और उस पर प्राचीनकाल से राजपुरोहित समाज का ही कब्जा व खातेदारी है. देवस्थान विभाग ने भी राजपुरोहित समाज के ट्रस्ट को मान्यता दे रखी है. जिस पर पुजारी को भी ट्रस्ट की ओर से मानदेय दिया जा रहा है.

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मंदिर के विवाद के चलते नहीं खुला ताला
2001 में मंदिर पर मालिकाना हक को लेकर दो पक्षों में झगड़ा हुआ था. जिसमें एक पक्ष ने मंदिर पर दूसरा ताला जड़ दिया. पुलिस ने दोनों पक्षों की ओर से मामले दर्ज कर एक पक्ष के किशोरसिंह व उम्मेदसिंह राजपुरोहित को गिरफ्तार कर उनके कब्जे से मंदिर पर लगाए ताले की चाबियां बरामद की. 2001 के दोनों मामलों में कोर्ट ने सुनवाई के बाद फैसला सुनाते हुए दोनों पक्षों को दोष मुक्त कर दिया, मगर मंदिर पर मालिकाना हक तथा जमीन पर कब्जे को लेकर दोनों पक्षों के बीच विवाद है और इसी का समाधान अभी तक नहीं हो पाया. इसी के चलते अब तक मंदिर के ताले नहीं खुल पाए और पुलिस को सुबह-शाम पूजा कराने आना-जाना पड़ता है.

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