नागौर. सावन को भगवान भोलेनाथ का प्रिय महीना माना जाता है और सावन सोमवार के मौके पर शिवालयों में दिनभर भोलेनाथ के जयकारे गूंजते हैं. सावन के चौथे सोमवार के मौके पर हम आपको ले चलते हैं नागौर जिले के मांझवास गांव में, जहां रेतीले टीलों के बीच पसरी हरियाली में यह शिवालय काठमांडू के पशुपतिनाथ महादेव मंदिर की तर्ज पर बना है.
इस मंदिर की न केवल प्रतिमा पशुपतिनाथ महादेव मंदिर जैसी है. बल्कि गर्भगृह का ढांचा भी हूबहू काठमांडू के मंदिर की प्रतिकृति है. लकड़ी, लोहे और एल्युमिनियम से इस ढांचे का निर्माण किया गया है. भक्त शिरोमणि फूलाबाई की कर्मभूमि पर करीब 22 साल पहले इस मंदिर की धूमधाम से प्राण प्रतिष्ठा हुई. इसके बाद से हर साल शिवरात्रि और सावन महीने के हर सोमवार को यहां मेला लगता है. हालांकि, इस बार कोरोना वायरस के संक्रमण के खतरे के चलते मंदिर में नाममात्र के श्रद्धालु ही पहुंच रहे हैं. खास बात यह है कि इस मंदिर का निर्माण 17 साल में पूरा हुआ और जो प्रतिमा आज मंदिर के गर्भगृह में विराजमान है. उसे यहां स्थापना से पहले देश के 11 ज्योतिर्लिंग मंदिरों में ले जाया गया था और हर जगह विधि विधान से पूजा अर्चना करवाई गई थी.
अष्टधातु की बनी इस प्रतिमा में लगा तांबा खास तौर पर लीबिया से मंगवाया गया था. मंदिर के महंत योगी रघुनाथ महाराज बताते हैं,' मेरे गुरुजी गणेशनाथ महाराज ने सांसारिक जीवन का त्याग कर इस स्थान पर लंबे समय तक धूणा रमाया था. उसके बाद वे देशाटन पर निकल पड़े. इसी दौरान वे नेपाल के विश्व प्रसिद्ध पशुपतिनाथ महादेव मंदिर पहुंचे तो उसी शैली का मंदिर यहां मांझवास गांव में बनवाने का मन ही मन प्रण किया. इसके बाद वे वापस मांझवास पहुंचे और साल 1982 में इस मंदिर की नींव रखी. जनसहयोग से आखिरकार 16 साल बाद 1998 में विश्वकर्मा जयंती के दिन इस मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा हुई. मंदिर के गर्भगृह में विराजमान अष्टधातु की प्रतिमा का वजन 16 क्विंटल 60 किलो है.
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प्राण प्रतिष्ठा से पहले यह प्रतिमा देश के 11 ज्योतिर्लिंग मंदिरों में ले जाई गई थी और विधि विधान से वहां पूजा अर्चना करवाई गई थी. जबकि केदारनाथ मंदिर का पवित्र जल खास तौर पर प्राण प्रतिष्ठा के मौके पर मंगवाकर पूजा की गई थी. आज भी मंदिर में विराजमान भोलेनाथ की प्रतिमा के अभिषेक के लिए खास तौर पर हरिद्वार से गंगाजल मंगवाया जाता है. 'महंत योगी रघुनाथ महाराज का कहना है कि मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के 2 साल बाद उनके गुरुजी गणेशनाथ महाराज का देवलोकगमन हो गया. वे बताते हैं कि हर साल शिवरात्रि, गुरु पूर्णिमा और सावन के हर सोमवार और गणेशनाथ महाराज के निर्वाण दिवस के अवसर पर यहां मेला भरता है. हालांकि, इस बार कोरोना संकट के चलते सावन सोमवार के मौके पर भी चुनिंदा लोग ही यहां आ रहे हैं. मंदिर ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष कुम्भाराम चौधरी का कहना है कि गुरुजी गणेशनाथ महाराज ने जब मंदिर निर्माण का बीड़ा उठाया तो शुरू में इसमें आर्थिक परेशानी का सामना करना पड़ा था, लेकिन धीरे-धीरे जनसहयोग मिलता चला गया.