नागौर. करगिल युद्ध को 21 साल पूरे हो चुके हैं. पाकिस्तान के साथ हुई जंग में भारतीय जवानों ने अपने प्राणों की आहुति देकर मातृभूमि की रक्षा की. जवानों के शौर्य के आगे दुश्मन की एक न चली और उसे भारतीय सरजमीं से उल्टे पैर भागना पड़ा. कारगिल युद्ध में अपने अदम्य शौर्य का परिचय देने वाले ऐसे ही वीर सपूत थे नायक प्रभुराम चोटिया. पढ़िए उनकी शौर्य की गाथा कहता ये विशेष रिपोर्ट..
देश सेवा और मातृभूमि की रक्षा के लिए नागौर के वीर जवानों ने अपने प्राणों तक की आहुति देने से कदम पीछे नहीं हटाए हैं. भारत माता के ऐसे ही बहादुर बेटे थे नायक प्रभुराम चोटिया. जिन्होंने करगिल युद्ध में दुश्मन की गोलाबारी की परवाह किए बिना तोलोलिंग की पहाड़ियों पर खड़ी चढ़ाई चढ़ी और सीने के दाहिने तरफ और पैर में गोली लगने के बावजूद आगे बढ़ते रहे. उन्होंने अपने हथगोले को दुश्मन के बंकर में फेंककर उसका बड़ा नुकसान किया और आगे बढ़कर दुश्मन के तीन-चार जवानों को मुठभेड़ में मार गिराया. इसी दौरान सीने पर गोली लगने के बाद अपना सर्वोच्च बलिदान दिया. नायक प्रभुराम चोटिया और उनके साथियों के अदम्य साहस, वीरता और बलिदान का ही नतीजा है कि तोलोलिंग की पहाड़ियों पर एक बार फिर से तिरंगा लहराया.
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जिला सैनिक कल्याण अधिकारी कर्नल मुकेश कुमार शर्मा बताते हैं कि नागौर जिले के इंदास गांव के प्रभुराम चोटिया 18 ग्रेनेडियर्स में नायक के पद पर तैनात थे. करगिल युद्ध के समय उनकी डेल्टा कंपनी को मेजर राजेश सिंह अधिकारी के नेतृत्व में तोतोलिंग की पहाड़ियों पर बैठे दुश्मन को खदेड़ने की जिम्मेदारी मिली थी.
13 जून 1999 को रात करीब 10 बजे इस मेजर अधिकारी के नेतृत्व में डेल्टा कंपनी के बहादुर जवानों ने सीधी खड़ी पहाड़ियों पर चढ़ाई शुरू की. इसमें सबसे बड़ा खतरा था कि वे ऊंचाई पर बैठे दुश्मन के ठीक सामने से चढ़ रहे थे और नजर पड़ते ही उन पर गोलाबारी होना तय था लेकिन उस समय दूसरा कोई रास्ता नहीं था. जैसे ही दुश्मन की नजर पहाड़ी पर चढ़ते भारतीय सेना के जवानों पर पड़ी. ऊपर से भारी गोलाबारी और गोलीबारी शुरू कर दी गई.
मात्र 31 साल में वीरगति को प्राप्त हुए नायक प्रभुराम
फिर भी देश के वीर जवानों के कदम डगमगाए नहीं. वे गोलाबारी से बचते हुए आगे बढ़ते रहे. नायक प्रभुराम चोटिया मेजर राजेश सिंह अधिकारी के बिल्कुल पीछे सावधानी से आगे बढ़ते हुए दुश्मन के बंकर के काफी नजदीक पहुंच चुके थे. तभी अचानक दुश्मन की एक गोली उनके पैर में और दूसरी सीने के साइड में लगी. ये दोनों गोलियां भी नायक प्रभुराम चोटिया का हौसला नहीं तोड़ पाई. वे आगे बढ़े और एक हैंड ग्रेनेड दुश्मन के बंकर में उछाल दिया. एक तेज धमाके की आवाज के साथ दुश्मन के कई जवान मौत के घाट उतर गए.
इसके बाद प्रभुराम चोटिया ने आगे बढ़कर हाथापाई की और इस बार भी कई दुश्मनों का खात्मा किया लेकिन इसी बीच एक गोली उनके सीने में आकर लगी. जिसके बाद नायक प्रभुराम ने महज 31 साल की उम्र में अपना सर्वोच्च बलिदान देश के लिए दिया.
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