नागौर.कोरोना काल में मंदी की चपेट में आए पर्यटन उद्योग को बढ़ावा देने के लिए राजस्थान सरकार ने नागौर जिले के धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व के 10 स्थानों को राजस्थान टूरिज्म सर्किट में शामिल किया है. इन 10 स्थानों में जिला मुख्यालय स्थित सैयद सैफुद्दीन अब्दुल वहाब जीलानी (बड़े पीर साहब) की दरगाह भी शामिल है. सरकार के इस कवायद से जिले में देशी-विदेशी सैलानियों की आवाजाही में बढ़ोतरी होने की उम्मीद जगी है. इसका सीधा असर मंदी का सामना कर रहे जिले के पर्यटन उद्योग पर भी होने की संभावना है.
सैयद सैफुद्दीन अब्दुल वहाब जीलानी की दरगाह को बड़े पीर साहब की दरगाह के नाम से भी जानते हैं. करीब 800 साल पुरानी यह दरगाह कादरिया संप्रदाय की देश की सबसे बड़ी और विश्व में दूसरी सबसे बड़ी दरगाह के रूप में अपनी अलग पहचान रखती है. सैयद सैफुद्दीन अब्दुल वहाब जीलानी को ही भारत में कादरिया संप्रदाय का जन्मदाता माना जाता है.
दरगाह में सैयद सैफुद्दीन अब्दुल वहाब जीलानी और उनके वंशजों की मजार है, जहां देशभर से जायरीन आते हैं. हालांकि, अभी कोरोना संक्रमण के खतरे को देखते हुए दरगाह में जायरीनों की आवाजाही बंद है. अब यहां आने वाले जायरीनों और अकीदतमंदों को मिलने वाली सुविधाओं में भी इजाफा होने की उम्मीद बंधी है.
दरगाह बड़े पीर साहब के सज्जाद नशीन सैयद सदाकत अली जीलानी बताते हैं कि इस दरगाह में एक संग्रहालय भी है. जहां सैयद सैफुद्दीन अब्दुल वहाब जीलानी और उनके वंशजों से जुड़ी कई ऐतिहासिक वस्तुएं प्रदर्शित की गई हैं. उनका यह भी दावा है कि देश की किसी भी दरगाह में स्थित यह एकमात्र और अनूठा संग्रहालय है. दरगाह आने वाले जायरीन संग्रहालय में जरूर आते हैं.
800 साल पुरानी हस्तलिखित कुरान है यहां...
इस संग्रहालय में 800 साल पुरानी हस्तलिखित कुरान शरीफ है, जो सैयद सैफुद्दीन अब्दुल वहाब जीलानी ने अपने हाथ से लिखी थी. इसके साथ ही उनकी छड़ियां और साफा भी यहां प्रदर्शित किया गया है. इस म्यूजियम में पालकी भी रखी हुई है जो औरंगजेब ने उनको उपहार में दी थी.
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इसके साथ ही मारवाड़ के तत्कालीन राजा द्वारा एक गांव भी उन्हें भेंट किया गया था. जिसकी घोषणा का ताम्र पत्र आज भी इस संग्रहालय में सुरक्षित रखा हुआ है. इसके साथ ही ऐतिहासिक महत्व की कई वस्तुएं भी इस संग्रहालय में रखी गई हैं.
आकर्षण का केंद्र हैं शुतुरमुर्ग के अंडे...