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दोहरी कर व्यवस्था से मंदी की मार झेल रहा देश-विदेश में चमक बिखरने वाला मकराना का मार्बल उद्योग

देश ही नहीं विदेशों की भी कई इमारतों को सफेद चमक देने वाला मकराना का मार्बल उद्योग इन दिनों मंदा है. एक तरफ यहां के माल पर रॉयल्टी ली जाती है, दूसरी तरफ 18 फीसदी जीएसटी. दोहरी कर व्यवस्था के कारण मार्बल खरीदने वाले ग्राहकों का मकराना से मोह भंग हो रहा है.

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Published : Jun 17, 2019, 7:41 PM IST

ठप हो रहा मकराना का मार्बल उद्योग

नागौर. आगरा के ताजमहल से लेकर अबू धाबी की शेख जायेद मस्जिद तक अपनी सफेदी की चमक बिखेरने वाला मकराना का मार्बल उद्योग इन दिनों मंदी की गिरफ्त में है. इसका मुख्य कारण है सरकार की दोहरी कर व्यवस्था और दूसरी जगहों से निकलने वाले सफेद पत्थर से प्रतिस्पर्धा.

मकराना में मार्बल उद्योग से जुड़े लोगों का कहना है कि केंद्र सरकार ने जीएसटी लागू कर वन नेशन वन टैक्स की व्यवस्था लागू की थी, जो मकराना में लागू नहीं हो रही है. मार्बल व्यापारी अजीज गहलोत का कहना है कि पहले मकराना के मार्बल पर 5 फीसदी वेट लिया जाता था. लेकिन जब से जीएसटी लागू किया गया है, मार्बल पर वसूले जाने वाले कर की दर 18 फीसदी हो गई है. ऐसे में सीधे तौर पर टैक्स में 13 फीसदी की बढ़ोतरी हो गई है. इसके साथ ही मकराना मार्बल के तैयार माल पर रॉयल्टी भी देनी पड़ती है. इन दिनों रॉयल्टी की दर 462 रुपए प्रति टन है.

ठप हो रहा मकराना का मार्बल उद्योग

एक अन्य मार्बल व्यापारी नितेश जैन का कहना है कि दोहरी कर व्यवस्था के कारण मकराना का मार्बल ग्राहकों को महंगा पड़ता है. इसलिए आम ग्राहक मार्बल खरीदने के मकराना का रुख करने से हिचकिचाने लगे हैं.

हालांकि, उनका यह भी कहना है कि जो लोग मकराना के मार्बल की खासियत जानते हैं. वे मार्बल खरीदने मकराना ही आते हैं. लेकिन ऐसे लोगों की तादाद कम है. यही कारण है कि प्रतिस्पर्धा के इस माहौल में मकराना का मार्बल उद्योग मंदी का शिकार हो रहा है. नितेश जैन का कहना है कि सरकार को मकराना के लिए नई खनिज और व्यापार नीति बनानी चाहिए. ताकि मंदी के शिकार मकराना के मार्बल उद्योग को संजीवनी मिल सके.

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