नागौर. लॉकडाउन में छूट के बाद शहरों के साथ ही ग्रामीण इलाकों में भी जिंदगी सरपट दौड़ने लगी है. जिला प्रशासन लगातार चेता रहा है कि लॉकडाउन की सख्ती के बीच अस्त-व्यस्त हुआ जनजीवन फिर से पटरी पर लौटे, इसी मकसद से छूट दी गई है. साथ ही कोरोना संबंधी गाइडलाइन की हर हाल में पालना होनी चाहिए. ग्रामीण इलाकों में आमजन इस बात को लेकर कितने जागरूक हैं और सरकारी निर्देशों की कितनी पालना हो रही है, इसकी पड़ताल करने के लिए ईटीवी भारत की टीम शनिवार को नागौर जिले के जायल गांव पहुंची.
गांव में अधिकांश लोग कोरोना संबंधी निर्देशों की पालना करते दिखे. करीब 30 हजार की आबादी वाली जायल ग्राम पंचायत में कोरोना वायरस के संक्रमण के खतरे को देखते हुए 19 मार्च से ही आमजन सतर्क हो गया था. हालांकि, 22 मार्च को जनता कर्फ्यू के बाद 24 मार्च को देशभर में लॉकडाउन लागू किया गया था. लेकिन नागौर जिले के बाकी शहरों के साथ ही जायल में भी लगभग सभी दुकानें 19 मार्च से ही बंद रखी गई थी.
850 से ज्यादा प्रवासी श्रमिक गांव लौटे
सरपंच जगदीश कड़वासरा बताते हैं कि कोरोना काल में जायल ग्राम पंचायत में 850 से ज्यादा प्रवासी घर लौटे हैं. गनीमत यह है कि अभी तक इस ग्राम पंचायत में कोरोना संक्रमण का एक भी मामला नहीं मिला है. कोरोना काल में ग्राम पंचायत की ओर से भामाशाहों के सहयोग से 200 जरूरतमंद परिवारों को रसद सामग्री के पैकेट बांटना शुरू किया गया था. लॉकडाउन के अंत में सहायता लेने वाले परिवारों की संख्या एक हजार तक पहुंच गई थी. जरूरतमंद परिवारों को ग्राम पंचायत की ओर से पानी के टैंकर भी निशुल्क भिजवाए गए.
भामाशाहों ने की जरूरतमंदों की मदद
इसके साथ ही गंभीर बीमारी से ग्रसित ऐसे लोग जिनकी दवा बाहर से मंगवानी पड़ती थी. उनके लिए खास व्यवस्था की गई और जयपुर, जोधपुर, अजमेर और बीकानेर से दवा मंगवाने की व्यवस्था भी की गई. ग्रामीण भारत सैन का कहना है कि क्षेत्र में आकस्मिक घटना होने पर और गर्भवती महिलाओं को खून की कमी नहीं रहे, इसके चलते लॉकडाउन के बीच ही गांव के युवाओं ने रक्तदान कर 100 यूनिट रक्त एकत्रित किया था. साथ ही जरूरतमंद लोगों के ऑपेरशन और गर्भवती महिलाओं के लिए भी भामाशाहों की मदद से सहयोग किया गया.
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इन सब व्यवस्थाओं के लिए ग्राम पंचायत ने भामाशाहों का सहयोग लिया और 35 लाख रुपए इकट्ठा किए. बाकायदा इसके एक-एक रुपए का हिसाब भी रखा गया है. शिक्षक सहदेवराम लोमरोड़ का कहना है कि कोरोना काल में बाहर से आने वाले सभी लोगों की सूची तैयार की गई और उन्हें क्वॉरेंटाइन करने के लिए ग्राम पंचायत की पांच स्कूलों में व्यवस्था की गई. उन्होंने बताया कि रहने और खाने-पीने की व्यवस्था तो आमतौर पर जिले के हर क्वॉरेंटाइन सेंटर पर थी, लेकिन जायल में क्वॉरेंटाइन लोगों के लिए फल और अखबार-मैगजीन की भी व्यवस्था की गई थी.