नागौर.किसान एक के बाद एक लगातार नई-नई समस्याओं से जूझ रहे हैं. पहले लॉकडाउन, फिर महंगाई, फिर सबसे बड़ी समस्या टिड्डी की आई और अब एक नई समस्या फसलों को खराब करती कीट की सामने की आ गई है.
लट की समस्या से किसान परेशान कोरोना काल में जहां सभी क्षेत्रों में आर्थिक सुस्ती का माहौल पसरा है. ऐसे में कृषि की तरफ बड़ी उम्मीदों से देखा जा रहा है. क्योंकि अच्छी खेती और पैदावार का सीधा असर बाजार में रौनक से जोड़ा जाता है. इसके साथ ही खाद्यान्न की पैदावार बढ़ने पर कीमतों के नियंत्रण और महंगाई कम होने की भी उम्मीद रहती है.
नागौर जिले के किसान बीते कुछ समय से लगातार नई समस्याओं और चुनौतियों से दो-दो हाथ कर रहे हैं. पहले लगातार ढाई महीने से ज्यादा समय तक टिड्डियों के हमले हुए. उसके बाद टिड्डियों के अंडों से निकले हुपर्स (फाका) को नियंत्रित करने की चुनौती सामने खड़ी हो गई. अब जब जिले में अधिकांश जगहों पर हुपर्स को नियंत्रित कर लिए जाने की बात कही गई. तभी किसानों के सामने एक नई समस्या कीटों के रूप में आकर खड़ी हो गई है.
वर्तमान में नागौर जिले में मूंग की फसल में हरी लट का प्रकोप ज्यादा देखा जा रहा है. यह लट मूंग के पौधे की पत्तियों और फूल को नुकसान पहुंचाती है. इससे न तो पौधे की बढ़वार हो पाती है और न ही उत्पादन होता है. यदि समय रहते इस पर काबू नहीं पाया जाता है तो यह पूरी फसल को खराब कर देती है. इसके बाद यह दूसरी फसलों को भी चट कर जाती है.
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कृषि विशेषज्ञों के अनुसार समय रहते फसलों पर लगे कीटों को काबू नहीं किया जाता है तो बाद में हालात ज्यादा बिगड़ सकते हैं. इसलिए किसानों को नियमित रूप से फसलों की देखरेख करने और जरा सी भी समस्या होने पर कृषि विभाग के कर्मचारियों और अधिकारियों से संपर्क करने की सलाह दी जा रही है. वैसे तो खरीफ की सभी फसलों में कीट से नुकसान का खतरा बना रहता है.
खरनाल गांव के किसान फकीराराम का कहना है कि उन्होंने पूरे खेत में मूंग की फसल बोई है. फसल की बढ़वार अच्छी है. लेकिन कीट नुकसान पहुंचा रहा है. कीट के असर से मूंग की पत्तियों में छेद होने और फूल नहीं आने की समस्या है. उनका कहना है कि दवा का छिड़काव भी इन कीटों पर बेअसर है.
वहीं, सिंगानी गांव के किसान रामलाल लटियाल बताते हैं कि कीट को नियंत्रित करने के लिए दवा का छिड़काव किया था लेकिन उसी दिन बारिश होने से दवा का ज्यादा असर नहीं हुआ. अब मूंग के पौधों की पत्तियों में छेद होने की समस्या बढ़ रही है. एक बार फूल आकर गिर रहे हैं और दुबारा फूल नहीं आ रहे हैं.
दवा का छिड़काव भी फसलों पर बेअसर कृषि विभाग के उपनिदेशक हरजीराम चौधरी ने बताया कि हरी लट का प्रकोप इन दिनों मूंग की फसल में देखा जा रहा है. इसके नियंत्रण के लिए किसानों को फसल पर सीमित मात्रा में कीटनाशक का छिड़काव करने की सलाह दी जा रही है. उन्होंने बताया कि पहले मानसून की कम और असामान्य बारिश के कारण फसल की बुवाई कम हुई है. अब कीटों को नियंत्रण में करना एक बड़ी चुनौती है.
टोल फ्री नंबर से होगी भरपाई...
उन्होंने बताया कि इस समस्या से निपटने के लिए किसानों को बीमा कंपनी के टोल फ्री नंबर 18001024088 पर शिकायत दर्ज करवानी होगी. ताकि बीमा कंपनी की ओर से सर्वे की कार्रवाई पूरी की जा सके. किसानों को नुकसान होने की स्थिति में बीमा कंपनी द्वारा इस नुकसान की भरपाई की जाएगी.
नागौर के लिए मूंग की फसल है जरूरी...
नागौर जिले के लिए मूंग की फसल क्या मायने रखती है. इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इस साल 5,40,000 हैक्टेयर क्षेत्र में मूंग की बुवाई का लक्ष्य था. जबकि खरीफ सीजन का कुल लक्ष्य जिले में 12,46,000 हैक्टेयर में बुवाई का था. यानी कुल बुवाई में 43 फीसदी मूंग की बुवाई होनी थी. हालांकि, कम और असामान्य बारिश के चलते खरीफ की कुल बुवाई जिले में 11,20,484 हैक्टेयर में ही की जा सकी है. इसमें मूंग की बुवाई 5,12,495 हैक्टेयर में है. यानी कुल बुवाई में मूंग की हिस्सेदारी 45 फीसदी से ज्यादा है.
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सरकार द्वारा समर्थन मूल्य पर मूंग की खरीद शुरू करने और समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी करने के बाद भी किसानों का मूंग की बुवाई की तरफ रुझान बढ़ा है. नागौर जिले के मूंग की प्रदेश के बाकी इलाकों के साथ ही देश के अन्य राज्यों में भी मांग रहती है. इसका मुख्य कारण बताया जाता है कि नागौर जिले में जो मूंग पैदा होता है, उसका दाना बड़ा और स्वाद भी हटकर होता है. लेकिन नागौर जिले के किसानों के लिए अब बड़ी समस्या मूंग की फसल में लगने वाले कीट नियंत्रण का नियंत्रण करना और मूंग की फसल को ज्यादा बारिश की स्थिति में गलने से बचाने की है.
बारिश भी है चुनौती...
मौसम विभाग ने भी नागौर सहित प्रदेश के कई जिलों में आगामी दिनों में भारी बारिश की चेतावनी जारी की है. ऐसे में किसानों के सामने आने वाले कुछ दिन काफी चुनौती भरे हो सकते हैं. क्योंकि, मूसलाधार बारिश से खेतों में पानी भरने की समस्या बढ़ने के आसार हैं. ऐसे में किसानों के लिए अपनी फसल को गलने से बचाना भी एक बड़ी समस्या हो सकती है.