कोटा.जिले में भी एक अनोखे तरीके से रावण बनाकर उसे रौंदकर अहंकार को खत्म करने की परंपरा है. यह परंपरा जेठी समाज के लोग करते हैं. ऐसा ही आज भी किया गया, जिसमें जेठी समाज के लोगों ने नांता स्थित लिम्बजा माता मंदिर में पूजा की. इसके बाद पहले से तैयार किए गए रावण को रावण को समाज के लोगों ने ही पैरों से कुचल मिट्टी में मिला दिया. इस दौरान समाज के छोटे बच्चे से लेकर बड़े लोग तक में मौजूद रहे.
असत्य पर सत्य की जीत का पर्व दशहरा पूरे देश भर में अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है. कोटा में भी एक अनोखे तरीके से रावण बनाकर उसे रौंद अहंकार को खत्म करने की परंपरा है. यह परंपरा जेठी समाज के लोग करते हैं. ऐसा ही आज भी किया गया. जिसमें जेठी समाज के लोगों ने नांता स्थित लिम्बजा माता मंदिर में पूजा की. इसके बाद पहले से तैयार किए गए रावण को रावण को समाज के लोगों ने ही पैरों से रौंद मिट्टी में मिला दिया.
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इस दौरान समाज के छोटे बच्चे से लेकर बड़े लोग तक में मौजूद थे. वहीं, ढोल व नगाड़ों की आवाज से साथ रणभेरी भी बजाई जाती है, ताकि युद्ध जैसा माहौल वहां बनाया जा सके. रावण की आवाज और उसके अहंकार की हंसी भी माइक के जरिए समाज के लोग ही निकालते हैं. साथ ही जो भी लोग इस दौरान मिट्टी के रावण को कुचलते हैं, वे जयकारे लगाते रहते है. फिर इस ही जगह पर कुश्ती दंगल का आयोजन किया जाता है.
श्राद्ध पक्ष से ही शुरू हो जाता है रावण बनाने का काम...