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अंत की अनोखी परंपरा : पहलवानों ने पैरों से रौंदकर 'रावण' का अहंकार किया खत्म, जानें पूरी कहानी - कोटा में रावण दहन

कोटा में रावण दहन करने की जगह रावण को रौंदा जाता है. दशानन को पैर से रौंदकर उसके अहंकार को खत्म करने की परंपरा जेठी समाज के लोग कई साल से निभाते आ रहे हैं. जिसके तहत हर विजयादशमी को एक अनोखी परंपरा का निर्वहन किया जाता है.

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कोटा में रावण के अंत की अनोखी परंपरा

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Published : Oct 25, 2020, 1:33 PM IST

कोटा.जिले में भी एक अनोखे तरीके से रावण बनाकर उसे रौंदकर अहंकार को खत्म करने की परंपरा है. यह परंपरा जेठी समाज के लोग करते हैं. ऐसा ही आज भी किया गया, जिसमें जेठी समाज के लोगों ने नांता स्थित लिम्बजा माता मंदिर में पूजा की. इसके बाद पहले से तैयार किए गए रावण को रावण को समाज के लोगों ने ही पैरों से कुचल मिट्टी में मिला दिया. इस दौरान समाज के छोटे बच्चे से लेकर बड़े लोग तक में मौजूद रहे.

कोटा में रावण के अंत की अनोखी परंपरा

असत्य पर सत्य की जीत का पर्व दशहरा पूरे देश भर में अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है. कोटा में भी एक अनोखे तरीके से रावण बनाकर उसे रौंद अहंकार को खत्म करने की परंपरा है. यह परंपरा जेठी समाज के लोग करते हैं. ऐसा ही आज भी किया गया. जिसमें जेठी समाज के लोगों ने नांता स्थित लिम्बजा माता मंदिर में पूजा की. इसके बाद पहले से तैयार किए गए रावण को रावण को समाज के लोगों ने ही पैरों से रौंद मिट्टी में मिला दिया.

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इस दौरान समाज के छोटे बच्चे से लेकर बड़े लोग तक में मौजूद थे. वहीं, ढोल व नगाड़ों की आवाज से साथ रणभेरी भी बजाई जाती है, ताकि युद्ध जैसा माहौल वहां बनाया जा सके. रावण की आवाज और उसके अहंकार की हंसी भी माइक के जरिए समाज के लोग ही निकालते हैं. साथ ही जो भी लोग इस दौरान मिट्टी के रावण को कुचलते हैं, वे जयकारे लगाते रहते है. फिर इस ही जगह पर कुश्ती दंगल का आयोजन किया जाता है.

श्राद्ध पक्ष से ही शुरू हो जाता है रावण बनाने का काम...

जेटी समाज के लोग नांता और किशोरपुरा इलाके में दो से तीन जगह इस तरह की परंपरा का निर्वहन करते हैं. इसके लिए श्राद्ध पक्ष शुरू होते ही रावण बनाने का काम शुरू हो जाता है, जो कि अमावस्या तक पूरा भी हो जाता है. उसके बाद रावण के सिर व मुंह पर गेहूं के जवारे उगाए जाते हैं. वही नवरात्रा के पूरे 9 दिनों में मंदिर का मुख्य द्वार बंद कर दिया जाता है. जिसे नवमी के दिन ही खोला जाता है. केवल मंदिर में पुजारी व अन्य एक दो अन्य लोग ही दूसरे रास्ते से जाकर पूजा करते हैं.

खास मिट्टी और दूध, दही व शक्कर से बनता है रावण...

जेठी समाज के लोग बताते हैं कि वह कई वर्षों पहले गुजरात से पलायन कर कोटा आए थे. समाज के अधिकांश लोग मल्लविद्या में पारंगत हुआ करते थे. ऐसे में कोटा रियासत के समय मल्लविद्या में पारंगत होने के चलते ही समाज के लिए अखाड़े मंदिर नांता व किशोरपुरा में बनाए गए थे.

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समाज के लोगों का कहना है कि मिट्टी के रावण को बनाने के लिए खास तरह की मिट्टी का उपयोग किया जाता है. मिट्टी के रावण को बनाने में दूध, दही, शक्कर और शहद मिलाकर तैयार किया जाता है. मिट्टी के रावण के मिटाने के बाद उस पर होने वाले कुश्ती के दंगल में पहलवानों को चोट नहीं लगे.

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