कोटा.स्कूल से लेकर कॉलेज तक कॉमर्स विषय को लेकर विद्यार्थियों का रुझान कम होता जा रहा है. स्थिति ऐसी है कि विद्यार्थी कॉमर्स के कोर्सेज में प्रवेश नहीं ले रहे हैं, इसके चलते कॉलेजों में सीट्स खाली जा रही है. वहीं, कला और विज्ञान विषय में ऐसा नहीं है. यहां पर आज भी कई विद्यार्थी प्रवेश से वंचित रह जा रहे हैं. हाड़ौती संभाग में ही कॉमर्स विषय के 6 कॉलेज हैं. इनमें 41 फीसदी सीट्स ही भर पाई हैं, जबकि 59 फीसदी सीट्स आज भी रिक्त हैं.
बीते 3 सालों में राजस्थान बोर्ड की सीट्स की बात की जाए तो पहले कॉमर्स के 65 से 70 हजार विद्यार्थी परीक्षा देते थे, लेकिन ये आंकड़ा अब 30 से 35 हजार के बीच ही रह गया है. कॉमर्स के फील्ड में लगातार गिरावट देखी जा रही है. विशेषज्ञों का मानना है कि देश पांचवीं अर्थव्यवस्था बन गया है, लेकिन कोर्स अपडेट नहीं होने और इस फील्ड में स्किल्ड पर्सन तैयार नहीं होने के चलते ही यह रुझान कम हुआ है. आने वाले दिनों में देश जब अर्थव्यवस्था में आगे पहुंचेगा, तब इस तरह के स्किल्ड नौजवानों की जरूरत देश को होगी.
1624 सीट्स रह गई खाली :कॉलेज एजुकेशन विभाग के असिस्टेंट डायरेक्टर डॉ. रघुराज सिंह परिहार का कहना है कि कोटा संभाग में कॉमर्स की कुल 2740 सीटें हैं. इनमें 1116 विद्यार्थियों ने ही प्रवेश लिया है, जबकि 1624 सीटें खाली हैं. बड़े महाविद्यालय में आज स्थिति यह है कि काफी संख्या में सीट खाली हैं, विद्यार्थी प्रवेश नहीं ले रहे हैं. सबसे बड़ा राजकीय वाणिज्य महाविद्यालय कोटा में 1400 सीट हैं, लेकिन 653 ही विद्यार्थी प्रवेशित हुए हैं. दूसरी तरफ गर्ल्स कॉमर्स कॉलेज में 800 सीट हैं, लेकिन 233 छात्राएं ही इसमें पढ़ाई करने के लिए आगे आई हैं. रामगंजमंडी के कॉलेज में 84 फीसदी सीट खाली हैं. यहां कुल 100 सीटों में केवल 16 विद्यार्थियों ने ही प्रवेश लिया है.
निचली कक्षाओं में नहीं है कॉमर्स की पढ़ाई :गवर्नमेंट कॉमर्स कॉलेज के प्रिंसिपल पद से सेवानिवृत हुए डॉ. कपिल देव शर्मा का कहना है कि कॉमर्स का स्कूल एजुकेशन से ही रुझान कम हो गया है, क्योंकि स्कूल में कॉमर्स के रिलेटेड सब्जेक्ट नहीं हैं. जब बच्चा 10वीं पास करके निकलता है तो उसके लिए सभी नए विषय होते हैं. कॉर्पोरेट युग में कॉमर्स की जरूरत काफी तेजी से बढ़ रही है. भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया में पांचवे स्थान पर है. ऐसे में हमें छोटे लेवल पर ही बच्चों को कॉमर्स से जुड़ी बहुत सारी चीजें सिखानी चाहिए. बिजनेस, इंडस्ट्री और बिजनेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग के बारे में बताना चाहिए. न्यू एजुकेशन पॉलिसी में इस बात पर फोकस किया जा रहा है कि 11वीं की जगह छठीं से ही कॉमर्स पढ़ाई जाए. तभी बच्चे का रुझान कॉमर्स की तरफ होगा. यह सभी पूरी तरह से मिसिंग है.
अन ऑर्गेनाइज्ड, तब भी सक्सेसफुल क्यों :डॉ. कपिल देव शर्मा का कहना है कि कॉमर्स से जुड़े हुए प्रोफेशन, जैसे चार्टर्ड एकाउंटेंसी, कॉस्ट अकाउंटेंसी, कंपनी सेक्रेटरी हैं. इसे आर्ट, साइंस और बाकी सब्जेक्ट के बच्चे भी पढ़ सकते हैं, लेकिन कॉमर्स के बच्चों के लिए इस फील्ड में एडवांटेज है. इन चारों इंस्टीट्यूट में रेगुलर क्लासरूम, फैकल्टी और इंफ्रास्ट्रक्चर सपोर्ट नहीं है. यह अन ऑर्गेनाइज्ड तरीके से चल रहे हैं, जबकि जॉब और एंप्लॉयमेंट मार्केट में इनके पास आउट की वैल्यू काफी ज्यादा हैं.
यह हैं पिछड़ने के कारण :डॉ. शर्मा का कहना है कि हमारे कॉलेज में हाई क्वालीफाई फैकल्टी, लाइब्रेरी और सभी सुविधाएं हैं. इसके बावजूद हमारे ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट स्टूडेंट्स पिछड़ते जा रहे हैं. इसका एक कारण है फैकल्टी की कमी. इसके अलावा जो फैकल्टी हैं, उनमें कुछ क्वालिटी एजुकेशन नहीं दे पाते. कैंपस में पॉलिटिक्स का इंवॉल्वमेंट होना भी एक कारण है, जिसके चलते स्टूडेंट यूनियन इलेक्शन के बाद बच्चे कॉलेज में आना नहीं चाहते हैं. जब क्लासेस में पढ़ाई नहीं होगी तो बच्चों को जॉब नहीं मिलेगा और इसीलिए रुझान खत्म होता है.
एक्सपर्ट्स ने यह बताए ये कारण :