कोटा.प्रदेश के थर्मल पावर प्लांट कोयले की कमी से जूझ रहे (Thermal power plants in Hadoti region facing coal crisis) हैं. बिजली डिमांड के अनुरूप नहीं मिल पा रही है. इसके चलते सरकार ने कटौती भी शुरू कर दी है. हाड़ौती में 4 थर्मल पावर प्लांट लगे हुए हैं. जिनमें प्रदेश में वर्तमान मांग का एक तिहाई बिजली का उत्पादन 4760 मेगावाट हो सकता है. हालांकि यह पावर प्लांट 65 से 70 फीसदी क्षमता से ही संचालित हो रहे हैं. इनमें कुछ यूनिटों को बंद भी किया हुआ है. ऐसे में यहां उत्पादन करीब 3200 मेगावाट ही हो पा रहा है.
इन पावर प्लांट के हालात ऐसे बने हुए हैं कि जितना भी कोयला मालगाड़ियों के जरिए आ रहा है, उन्हें सीधा ही बंकरों में खाली किया जा रहा है. इनमें कोटा थर्मल, झालावाड़ का कालीसिंध, बारां जिले का छबड़ा सुपर क्रिटिकल और ऑपरेशन एंड मेंटिनेस प्लांट शामिल है. इन चारों प्लांट को मांग के अनुरूप कोयला नहीं मिल पा रहा है. सभी प्लांट क्रिटिकल स्थिति में चल रहे हैं. क्योंकि यहां पर 7 दिन से कम का कोयला उपलब्ध है. हाड़ौती के पावर प्लांटों को रोज संचालित करने के लिए 18 रैक यानी 72 हजार मीट्रिक टन कोयला की आवश्यकता है. इसकी जगह पर 12 रैक से 48 हजार मीट्रिक टन ही मिल पा रहा है.
पढ़ें:कोल ब्लॉक आवंटन और कोयले की कमी से जुड़े मसलों के समाधान के लिए अधिकारियों की दिल्ली दौड़ जारी...
कोटा थर्मल पावर स्टेशन: कोटा थर्मल पावर स्टेशन की क्षमता 1240 मेगावाट है, लेकिन यहां पर उत्पादन 1000 मेगावाट के आसपास ही हो रहा है. यहां पर 3 नंबर की यूनिट को बंद किया हुआ है. इसके अलावा दूसरी यूनिटों को भी कम क्षमता पर चलाया जा रहा है. कोटा में जहां पर रोज सभी यूनिट को चलाने के लिए 20 हजार मीट्रिक टन कोयला चाहिए, उसकी जगह 18 हजार मीट्रिक टन ही उपलब्ध हो रहा है. कोटा थर्मल के चीफ इंजीनियर वीके गोलानी का कहना है कि रोज करीब 4 से 5 कोयले की रैक मिल रही है. वर्तमान में स्टॉक भी एक लाख 10 हजार मीट्रिक टन के आसपास है, जो कि क्रिटिकल स्थिति का ही है.
पढ़ें:Coal Crisis: कोयले की कमी नहीं, इस वजह से बंद हैं थर्मल आधारित बिजली इकाइयों में उत्पादन
छबड़ा में अगस्त तक बंद रहेगी एक यूनिट:छबड़ा थर्मल में 250 मेगावाट की चार यूनिट लगी हुई है, लेकिन चार नंबर यूनिट सितंबर 2021 में हादसे के बाद बंद हो गई थी. यहां पर ईएसपी गिर गया था. इसकी मरम्मत का कार्य अगस्त तक चलने की संभावना है. इसके चलते 1000 मेगावाट क्षमता के बावजूद यहां पर 675 मेगावाट का उत्पादन हो रहा है. चालू यूनिटों को भी कम क्षमता पर चलाया जा रहा है. पावर प्लांट के एडिशनल चीफ इंजीनियर हनुमान प्रसाद गौड़ का कहना है कि करीब 50 हजार मीट्रिक टन का स्टॉक हमारे पास है. रोज 11 हजार मीट्रिक टन की खपत हो रही है.
पढ़ें:भीषण गर्मी के बीच बिजली आपूर्ति संकट से जूझ रहे देश के कई राज्य
छबड़ा सुपर क्रिटिकल में ढाई दिन का कोयला: छबड़ा थर्मल के ही दूसरे प्लांट सुपर क्रिटिकल की क्षमता 1300 मेगावाट है. यहां पर 650 मेगावाट की दो यूनिट स्थापित हैं, लेकिन दोनों यूनिट पूरी क्षमता से नहीं चल रही है. इन यूनिटों को 70 फीसदी क्षमता से संचालित किया जा रहा है. यहां भी कोयला संकट बना हुआ है. प्लांट के स्टॉक में महज ढाई दिन का कोयला 44000 मीट्रिक टन है. हालांकि सुपर क्रिटिकल प्लांट के अतिरिक्त मुख्य अभियंता मोहम्मद मोहसिन का कहना है कि रोज कोयले की औसत 4 रैक में मिल रही है. ऐसे में अधिकांश रैक को सीधा बंकरो में ही खाली करवाया जा रहा है.
कालीसिंध में क्षमता से आधा भी उत्पादन नहीं: कालीसिंध थर्मल पावर प्लांट में स्टॉक करीब 35 हजार मीट्रिक टन है. जबकि रोज खपत करीब 8000 की हो रही है. यहां की डिमांड 16000 मीट्रिक टन है. पावर प्लांट की एक यूनिट को इसके चलते बंद किया हुआ है. दोनों यूनिटों को संचालित करने के लिए चार कोयले की रैक चाहिए. लेकिन मिल केवल दो ही रही है. कालीसिंध थर्मल पावर प्लांट के चीफ इंजीनियर केएल मीणा के अनुसार मेंटेनेंस के चलते यूनिट को बंद किया गया है. यूनिट 8 अप्रैल से बंद है, जिसका शटडाउन 8 मई तक लिया है. इसके बाद मेंटेनेंस की जरूरत रहती है, तो उसे आगे बढ़ाया जाएगा.