कोटा. शिक्षा नगरी कोटा में तैयार किए जा रहे विश्व के सबसे बड़े घंटे के सांचे से बाहर आने से पहले मेटलॉजिस्ट देवेंद्र आर्य की मौत के बाद कई तरह के सवाल खड़े हो गए हैं. इसमें सबसे बड़ा संशय यह बन गया है कि यह घंटा अब सांचे से बाहर आएगा या नहीं या फिर विश्व के सबसे बड़े घंटे (मॉस्को की जार बेल) की तरह जमीन पर ही रहेगा और उसे बजाया नहीं जा सकेगा.
देवेंद्र आर्य ने पहले दावा किया था कि यह दुनिया की सबसे भारी सिंगल पीस कास्टिंग वाली नॉन फेरस घंटी होगी, इसमें कोई ज्वाइंट नहीं होगा. दूसरा रिकॉर्ड विश्व की सबसे बड़ी घंटी व तीसरा रिकॉर्ड विश्व की पहली ज्वाइंट लेस चैन इसमें लगाई जाएगी. यह घंटा करीब 78 हजार किलो का है. चेन का वजन करीब 400 किलो के आसपास है. इसका पेंडुलम भी 100 किलो का है, जिससे इस बेल को बजाया जाएगा. इतने बड़े घंटे का निर्माण पहली बार मेटलॉजिस्ट और इंजीनियरिंग इतिहास में हुआ था. इसके साथ ही फाइबर के तैयार किए गए घंटे का शेप भी एक रिकॉर्ड था.
1737 में बनी थी घंटी, कास्टिंग के दौरान ही टूट गई थीः वर्तमान में विश्व की सबसे बड़ी घंटी रूस के मास्को की क्रेमलिन के मैदान में प्रदर्शित रूसी जार बेल है. इसे जार कोलोकोल (जारस्की) के नाम से भी जाना जाता है. यह दुनिया की सबसे बड़ी घंटी भी है. जिसका वजन 216 टन के आसपास है, लेकिन जब 1737 में इसका निर्माण हो रहा था. इसी दौरान कास्टिंग करते समय एक आग लगने की घटना हुई थी. यहां सपोर्ट के लिए लगाए गए लकड़ी के स्ट्रक्चर में आग लग गई थी. इससे यह घंटी टूट गई. इसे इसी तरह से अभी रखा हुआ है. इस घंटी को लटकाया जाना था, लेकिन यह संभव नहीं हो सका. क्षतिग्रस्त घंटी को कभी भी बजाया नहीं गया, इसकी ऊंचाई 6.14 मीटर है.
यूआईटी नहीं निकलवाई थी सांचे से घंटे को बाहरः वहीं, कोटा में तैयार किए जा रहे घंटे की कास्टिंग 18 अगस्त को हुई थी, वहीं 19 अगस्त को देवेंद्र आर्य ने चंबल हेरिटेज रिवरफ्रंट के आर्किटेक्ट अनूप भरतरिया पर श्रेय लेने का आरोप लगाया और आपत्ति जताई थी. साथ ही इस प्रोजेक्ट को छोड़ दिया था. ऐसे में यह घंटा खुल नहीं पाया था. करीब ढाई महीने गुजर जाने के बाद इसे सांचे से बाहर नहीं निकाला जा सका था. इसके बाद नगर विकास न्यास ने दोबारा देवेंद्र आर्य को बुलाया था और उन्हें सहमत किया. इसके बाद ही उन्होंने 3 नवंबर को काम शुरू किया था अब देवेंद्र आर्य की मौत के बाद यह घंटा सांचे से बाहर आ पाएगा या नहीं यह भी बड़ा सवाल है, क्योंकि यूआईटी ने इस बीच कई इंजीनियरों को बुलाया था और मेटलॉजिस्ट को भी बुलाया था, लेकिन उन्होंने घंटे को सांचे से बाहर निकालने से इनकार कर दिया था. ऐसे में देवेंद्र आर्य की मौत के बाद अब कौन इस घंटे को बाहर निकालेगा, इसको लेकर भी सवाल बना हुआ है.