कोटा.हाड़ौती में मानसून की पहली बारिश और इसके पहले से ही किसानों ने बुवाई का काम शुरू कर दिया था. जो लगभग आधे से ज्यादा पूरा भी हो चुका है. यहां पर मुख्य रूप से खरीफ की चार ही फसलें की जाती है, जिनमें सबसे पहले सोयाबीन आती है. इसके बाद उड़द की फसल यहां पर की जाती है. वहीं मक्का और धान भी मुख्य फसलों में हैं. इसके अलावा तिल, बाजरा, मूंगफली, गन्ना, मूंग, ज्वार और गवार भी छोटी-छोटी मात्रा में होती है.
हाड़ौती की प्रमुख फसलों की बुवाई का रकबा
सोयाबीन 6.80 लाख हेक्टेयर
उड़द 3.52 लाख हेक्टेयर
धान (चावल) 1.42 लाख हेक्टेयर
मक्का 90 हजार हेक्टेयर
कोटा संभाग में 11 लाख 62 हजार हेक्टेयर में खरीफ की फसल की बुवाई होती है. जिसमें 6 लाख 26 हजार हेक्टेयर में बुवाई हो चुकी है, लगभग 50 फ़ीसदी एरिया में बुवाई हो चुकी है. ग्रामीण क्षेत्रों में बुवाई का काम जोरों पर चल रहा है, बारिश के साथ ही आने वाले दिनों में सभी जगह बुवाई का काम पूरा हो जाएगा.
हाड़ौती में सबसे ज्यादा बोई जाती है सोयाबीन सोयाबीन का सबसे ज्यादा रकबा
हाड़ौती में सर्वाधिक 6 लाख 80 हजार हेक्टेयर में सोयाबीन की बुवाई हुई है. दूसरे मुख्य फसल उड़द 3 लाख 52 हजार हेक्टेयर में बोई जाएगी. कोटा संभाग में धान 1 लाख 42 हजार हेक्टेयर में लगाई जाएगी, इसका रकबा इस बार बढ़ा है. इसी तरह से 90 हजार हेक्टेयर में मक्का की फसल किसान करेंगे.
धान की ट्रांसप्लांटिंग का काम जोरों पर
कृषि विभाग के संयुक्त निदेशक रामावतार शर्मा का कहना है कि मुख्य रूप से उड़द और सोयाबीन की बुवाई बाकी है, जबकि मक्का की बुवाई करीब पूरी हो चुकी है. बाजरे की बुवाई भी पूरी हो चुकी है. तिल की बुवाई कुछ क्षेत्रों में बाकी है. जहां पर किसान बारिश का इंतजार कर रहे हैं. धान की ट्रांसप्लांटिंग जोरों पर चल रही है.
खेत में कीचड़ के गरड़ के बाद होती है धान की ट्रांसप्लांटिंग
किसान राधेश्याम का कहना है कि धान की फसल में मेहनत काफी होती है. मजदूरों का काफी उपयोग में लिया जाता है, क्योंकि पहले धान की पौध तैयार की जाती है. जिसमें 1 महीने पहले से तैयारी शुरू कर दी जाती है. पहले एक छोटे खेत में धान की फसल रोपी जाती है. उसे जिसमें अच्छी खाद डालकर उसे उगाया जाता है जब यह धान की फसल आधे फीट से ज्यादा की हो जाती है तो इसे पूरे खेत में ट्रांसप्लांटिंग का काम शुरू होता है. ट्रांसप्लांटिंग के पहले खेत में ट्रैक्टर से अच्छी तरह से कीचड़ का गरड़ किया जाता है. फिर उसके बाद मजदूरों से धान की तैयार पौध का ट्रांसप्लांटिंग खेत में करवाया जाता है. इसके बाद खेत में पानी भर कर रखा जाता है. जब तक पौधा बड़ा नहीं हो जाता है. खेत में कीटनाशक और अन्य अनुपयोगी पौधों को नष्ट करने के लिए भी दवा छिड़की की जाती है. करीब 4 महीने की मेहनत के बाद दिवाली के आसपास के फसल तैयार होती है.
ज्यादा मेहनत नहीं, लेकिन खतरा भी ज्यादा
दूसरे किसान भोले शंकर बताते हैं कि सोयाबीन की फसल में ज्यादा मेहनत करने की जरूरत नहीं होती है, पहले ट्रैक्टर से एक बार खेत की हकाई करवा दी जाती है. उसके बाद सोयाबीन का घर में तैयार किया या फिर बाजार से खरीदा हुआ बीज लेकर ट्रैक्टर के माध्यम से ही खेत में डाल दिया जाता है. यानी कि उसकी उराई कर दी जाती है. खरीफ की फसल होने से इसे अच्छा पानी मानसून की बारिश का मिल जाता है. अगर बारिश कम होती है, तो खेत को पानी की जरूरत होती है. ऐसे में एक पानी खेत को दिया जाता है. हालांकि सोयाबीन की फसल में कीड़े लगने की समस्या ज्यादा आती है. ऐसे में कीटनाशक भी छिड़कना पड़ता है और सोयाबीन के साथ उगने वाले अन्य पौधों जो कचरे जैसे ही होते हैं. उन्हें मारने के लिए भी दवा छिड़कनी पड़ती है. यह फसल भी दिवाली के आसपास तैयार हो जाती है.