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Rajasthan assembly Election 2023 : राजनीति का 'चस्का'!, सरकारी नौकरी छोड़ बने विधायक और मंत्री, अभी भी कतार में हैं कई कार्मिक - Leaders Who Were Former Govt Employees

राजस्थान की राजनीति में कई ऐसे नाम हैं जिन्होंने सरकारी नौकरी छोड़कर चुनावी मैदान में अपना भाग्य आजमाया और कामयाब भी रहे. हाड़ौती से भी कई सरकारी कार्मिक स्वैच्छिक सेवानिवृत्त लेकर विधायक बने. इनमें दिग्गज नेता ललित किशोर चतुर्वेदी, पूर्व मंत्री बाबूलाल वर्मा के साथ ही सीएल प्रेमी का भी शामिल है. पढ़िए ये रिपोर्ट...

Employees Who quit Job to Contest Election
कर्मचारी जिन्होंने चुनाव लड़ने के लिए नौकरी छोड़ी

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Oct 30, 2023, 6:01 PM IST

Updated : Oct 31, 2023, 10:23 AM IST

सरकारी नौकरी छोड़ बने विधायक और मंत्री.

कोटा.राजस्थान में विधानसभा चुनाव का शोर चुनावी नारों के साथ तेज होता जा रहा है. राजनीतिक दल टिकट वितरण में लगे हुए हैं. इस बीच कई सरकारी कार्मिक भी टिकट की दावेदारी जता रहे हैं. राजनीति का चस्का ही ऐसा है कि हाड़ौती से भी कई सरकारी कार्मिक स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर विधायक बने हैं. इस सूची में 6 नाम शामिल हैं, जिनमें दिग्गज नेता रहे ललित किशोर चतुर्वेदी और वर्तमान में राजनीति कर रहे पूर्व मंत्री बाबूलाल वर्मा और सीएल प्रेमी भी शामिल हैं. इन 6 नेताओं की खासियत यह रही कि इन्होंने पहले ही चुनाव में जीत हासिल की. वहीं, कोई लगातार तीन, चार और पांच बार तक विधायक रहे.

ललित किशोर चतुर्वेदी लगातार 5 बार जीते :हाड़ौती में सरकारी नौकरी छोड़कर राजनीति के मैदान में कूद, सफल हुए नेताओं में सबसे पहला नाम ललित किशोर चतुर्वेदी का आता है. वह उच्च शिक्षा विभाग में प्रोफेसर थे. उन्होंने कोटा सीट से वर्ष 1977 में पहली बार जनता पार्टी से चुनाव लड़ा और जीता था. इसके बाद में वर्ष 1980, 1985, 1990 और 1993 में भारतीय जनता पार्टी से लगातार विधायक रहे हैं. इस दौरान भाजपा की सरकार में तीन बार कैबिनेट मंत्री भी रहे थे. इसके अलावा एक बार राज्यसभा सांसद भी चुने गए. साल 2003 में दीगोद विधानसभा सीट से उन्हें हार मिली, लेकिन सरकार भाजपा की बनी थी. साल 2015 में उनका देहांत हो गया.

लगातार 5 बार विधायक रहे ललित किशोर चतुर्वेदी उच्च शिक्षा विभाग में प्रोफेसर थे

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टीचर से बने विधायक, लगातार जीते चार चुनाव :साल 1977 में ही पीपल्दा विधानसभा सीट से हीरालाल आर्य मैदान में उतरे. हीरालाल आर्य पेशे से सरकारी टीचर थे. वे स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर राजनीति में आए. उन्होंने पहला चुनाव वर्ष 1977 में लड़ा और जीत भी गए. इसके बाद वर्ष 1980, 1985 और 1990 में भी उन्हें भारतीय जनता पार्टी ने मौका दिया और वो चुनाव जीतकर लगातार 4 बार विधायक भी बने. हालांकि साल 1993 और 1998 के चुनाव में हीरालाल आर्य को हार का सामना करना पड़ा था.

पीपल्दा से बीजेपी ने इंजीनियर को मैदान में उतारा :भारतीय जनता पार्टी ने पीपल्दा सीट से साल 2003 में प्रभुलाल महावर को मौका दिया था. यह सीट अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व थी. यहां से लगातार साल 1993 और 1998 का चुनाव रामगोपाल बैरवा ने जीता था. ऐसे में 2003 में भारतीय जनता पार्टी ने इरीगेशन डिपार्टमेंट के असिस्टेंट इंजीनियर प्रभुलाल महावर को चुनावी मैदान में उतारा. वे महज 415 वोट से चुनाव जीते. उन्होंने रामगोपाल बैरवा को चुनाव हराया था. साल 2008 के चुनाव में यह सीट जनरल की हो गई. ऐसे में भारतीय जनता पार्टी ने मानवेंद्र सिंह को चुनावी मैदान में उतारा और विधायक रहे प्रभुलाल महावर का टिकट काट दिया था. वर्तमान में वह सक्रिय राजनीति में भी नहीं हैं.

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यह नेता सरकारी नौकरी छोड़कर राजनीति में सक्रिय :सरकारी नौकरी छोड़कर राजनीति में सक्रिय लोगों की सूची में हाड़ौती से 3 नाम सामने आते हैं. इनमें पहला नाम पूर्व मंत्री बाबूलाल वर्मा का है. बाबूलाल वर्मा ने पहला चुनाव पंजाब नेशनल बैंक की नौकरी छोड़कर 1993 में डग विधानसभा क्षेत्र से लड़ा. यहां पर उन्होंने मदनलाल वर्मा को 1097 वोट से हराकर चुनाव जीता. इसके बाद 2003 और 2013 में केशोरायपाटन विधानसभा से वे विधायक चुने गए. साल 2008 में उन्हें केशोरायपाटन और 2018 में बारां जिले की अटरू-बारां विधानसभा सीट से हार का सामना करना पड़ा.

बैंक की नौकरी छोड़ी, बने विधायक : इसी सूची में दूसरा नाम केशोरायपाटन सीट से विधायक रहे सीएल प्रेमी का है. प्रेमी स्टेट बैंक ऑफ बीकानेर एंड जयपुर से नौकरी छोड़कर चुनावी मैदान में उतरे थे. साल 2008 में कांग्रेस ने उन्हें टिकट दिया और वह विधायक बन गए. पार्टी ने 2013 में भी उनपर भरोसा जताया, लेकिन पूर्व मंत्री बाबूलाल वर्मा ने उन्हें शिकस्त दे दी थी. इसके साथ ही वर्ष 2018 में उनका टिकट पार्टी ने काट दिया, लेकिन वह निर्दलीय ही चुनावी मैदान में उतर गए. साल 2023 में दोबारा पार्टी ने प्रेमी पर विश्वास जताकर टिकट दिया है. वे केशोरायपाटन से कांग्रेस के प्रत्याशी हैं.

बैंक की नौकरी छोड़कर उतरे सीएल प्रेमी, आगामी चुनाव में कांग्रेस से प्रत्याशी

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शिक्षा विभाग में अध्यापक की नौकरी छोड़ी : इसी तरह से तीसरा नाम बारां-अटरू सीट से चुनाव लड़ चुके रामपाल मेघवाल का है. वह साल 2013 में चुनावी मैदान में आए थे. इस सीट से पूर्व मंत्री और विधायक मदन दिलावर चुनाव लड़ते थे, लेकिन भाजपा ने उन्हें 2013 में टिकट नहीं दिया और उनकी जगह शिक्षा विभाग में अध्यापक की नौकरी छोड़कर राजनीति में उतरे रामपाल मेघवाल को मौका दिया. रामपाल मेघवाल चुनाव जीते, लेकिन 2018 में रामपाल मेघवाल का भी टिकट काट दिया था. इस बार में दोबारा 2023 के विधानसभा चुनाव में बारां-अटरू सीट से दावेदारी जता रहे हैं.

शिक्षा विभाग में अध्यापक की नौकरी छोड़कर राजनीति में उतरे थे रामपाल मेघवाल

इंजीनियर को शिकायत पर होना पड़ा निलंबित :दूसरी तरफ, बूंदी सीट से ही नगर विकास न्यास कोटा के कनिष्ठ अभियंता जोधराज मीणा भी टिकट मांग रहे हैं. वह स्थानीय निकाय विभाग में कनिष्ठ अभियंता हैं. जोधराज मीणा की नियुक्ति डायरेक्टेड लोकल बॉडीज में थी, जहां से नगर विकास न्यास में डेपुटेशन पर आए थे. बूंदी में सक्रिय रूप से चुनावी मैदान में उतरने की शिकायत हुई, जिस पर डीएलबी ने उनपर एक्शन लेकर निलंबित कर दिया है. इस आदेश के बाद ही नगर विकास न्यास कोटा ने भी उन्हें रिलीव कर दिया. जोधराज मीणा बूंदी से कांग्रेस पार्टी से दावेदारी जता रहे हैं. जोधराज अगस्त महीने से ही छुट्टी की एप्लीकेशन देकर चुनाव की तैयारी में बूंदी जिले में जुटे हुए थे.

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दो डॉक्टर भी चुनावी तैयारी में :चिकित्सकों की बात की जाए तो डॉ. दुर्गा शंकर सैनी अखिल राजस्थान सेवारत चिकित्सक संघ के सचिव रहे हैं. वह चिकित्सकों के आंदोलन में भी प्रदेश स्तर तक मांग उठा चुके हैं. सैनी भी भाजपा से लाडपुरा सीट से टिकट की मांग रहे हैं. सैनी समाज ने भी उनके टिकट की वकालत की है. इसी तरह से बारां-अटरू सीट से चिकित्सा विभाग में कार्यरत डॉ. जेपी यादव भी राजनीति में अब हाथ जमाने के लिए टिकट मांग रहे हैं. इस सीट से भी पार्टी ने टिकट की घोषणा नहीं की है.

हाड़ौती में एक सबसे बड़ा नाम पूर्व मंत्री बाबूलाल वर्मा, जिन्होंने पंजाब नेशनल बैंक की नौकरी छोड़ी थी

टिकट नहीं मिला, दोबारा ज्वाइन कर ली नौकरी :केशोरायपाटन सीट से टिकट मांगने वाले दावेदार में शामिल रहे डॉ. सीएल सुशील बीते चुनाव से ही राजनीतिक मैदान में उतरने की तैयारी में थे. हालांकि 2018 में उन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के लिए आवेदन किया था, लेकिन कांग्रेस पार्टी की ओर से टिकट नहीं देने पर उन्होंने वापस मेडिकल एजुकेशन डिपार्टमेंट में नौकरी ज्वाइन कर ली और मेडिकल कॉलेज के नए अस्पताल के अधीक्षक बने. अब सेवानिवृत होने के बाद उन्होंने सक्रिय राजनीति शुरू कर दी है और मैदान में भी उतरे हुए हैं. हालांकि, इस बार भी उन्हें कांग्रेस पार्टी ने टिकट नहीं दिया और उनकी जगह सीएल प्रेमी को मैदान में उतारा है.

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इंजीनियर से लेकर टीचर तक मांग रहे टिकट :दूसरी तरफ, एडिशनल चीफ इंजीनियर सार्वजनिक निर्माण विभाग के पद से सेवानिवृत हुए एसके बैरवा भी भारतीय जनता पार्टी से टिकट की दावेदारी कर रहे हैं. उन्होंने बूंदी जिले की केशोरायपाटन सीट से टिकट की मांग की है. बैरवा साल 2021 में पीडब्ल्यूडी के एडिशनल चीफ इंजीनियर के पद से सेवानिवृत हुए थे. इसके पहले वह हाड़ौती के जिलों में अधीक्षण, अधिशासी और सहायक अभियंता भी रहे हैं. उन्होंने टिकट की दावेदारी के लिए भारतीय जनता पार्टी के कई नेताओं से भी संपर्क साधा और लगातार क्षेत्र में सक्रिय रहे हैं.

डिप्टी रजिस्ट्रार भी तैयार : दूसरी तरफ सहकारिता विभाग कोटा में अतिरिक्त रजिस्ट्रार पद से सेवानिवृत होकर सत्यवीर सिंह भी पीपल्दा विधानसभा क्षेत्र से टिकट मांग रहे हैं. वह इसी इलाके के रहने वाले हैं. ऐसे में जनरल सीट होने से वे भी टिकट के प्रमुख दावेदारों में शामिल हैं. झालावाड़ जिले में प्रतिस्थापित रहे कोऑपरेटिव के डिप्टी रजिस्ट्रार सिंह मौजावत भी चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी में हैं. वह भी झालावाड़ से दावेदारी जता रहे हैं. इसी तरह से हाल ही में शिक्षा विभाग से सेवानिवृत्त हुए शिक्षक नेता ईश्वर सिंह इंशा भी टिकट की दावेदारी कर रहे हैं. उनकी पत्नी संध्या सिंह और वह खुद भी शिक्षा सहकारी के अध्यक्ष रहे हैं. वे लाडपुरा, सांगोद और पीपल्दा तीनों ही सीटों से टिकट मांग रहे हैं.

Last Updated : Oct 31, 2023, 10:23 AM IST

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