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स्पेशल रिपोर्ट: इलेक्ट्रॉनिक चकाचौंध में मिट्टी के बर्तन खो रहे अपना अस्तित्व, घट रहा लोगों का रुझान - deepawali news

दीपावली पर्व पर कुंभकार परिवार कई दिनों पहले दीपक तैयार करने में लग जाते थे. लेकिन साल दर साल इन परिवारों की दीपावली फीकी होती जा रही है. बाजारों में इलेक्ट्रोनिक उत्पादों की भरमार के कारण कुंभकारों का ये पुश्तैनी व्यवसाय अब अपनी पहचान खोता जा रहा है. खास रिपोर्ट -

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Published : Oct 23, 2019, 1:44 PM IST

सांगोद(कोटा). दीपावली पर घरों पर रोशनी करने के लिए भले ही बाजारों में इलेक्ट्रोनिक उत्पादों की धूम हो, लेकिन दीपोत्सव का यह पर्व माटी के दीपक के बिना आज भी अधूरा सा लगता है. समय के साथ इनकी मांग में लगातार कमी आ रही है. दीपोत्सव पर मिट्टी से बने दीपक की मांग साल दर साल कम होती जा रही है.

इलेक्ट्रॉनिक चकाचौंध में मिट्टी के बर्तन खो रहे अपना अस्तित्व

हर वर्ष दीपावली पर्व पर कुंभकार परिवार कई दिनों पहले दीपक तैयार करने में लग जाते थे. लेकिन साल दर साल इन परिवारों की दीपावली फीकी होती जा रही है. क्योंकि जितने दीपक बनाए जाते है उसकी तुलना में बहुत कम दीपक बिकते है.

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कुम्भकारों का कहना है कि बाजारों में इलेक्ट्रोनिक उत्पादों की भरमार के कारण माटी के दीपक की बिक्री में कमी आई है. लेकिन फिर भी अच्छी खरीदारी की उम्मीद में कुम्भकार इन दिनों दीपक बनाने में जुटे हुए है. त्योहार की नजदीकियों से इन घरों में व्यस्तता बढ़ गई है. पूरा परिवार मिट्टी के दीपक और मटके बनाने में जुटा है. परम्परागत तौर पर दीपक के साथ मटकों की भी दीपावली पर खरीदारी होती है. इसके मद्देनजर कुंभकार इन्हें पकाकर बाजारों में बैचने की तैयारियों में जुटे है. पकने के बाद महिलाएं इन्हे आकर्षक बनाने के लिए रंग-रोगन में जुटी है.

कुंभकारों का कहना है कि दीपावली और गर्मी के सीजन में मिट्टी से बने बर्तनों की मांग बढ़ती तो है लेकिन हर वर्ष इस मांग में कमी देखने को मिल रही है. अब अनेक परिवार खासकर युवा अपने परम्परागत व्यवसाय से विमुख होते जा रहे है. दीपावली पर मिट्टी के दीपक और अन्य सामान तैयार करना, उनके लिए सीजनेबल व्यवसाय बनकर रह गया है. हालात यह है कि यदि वो दूसरा व्यवसाय नहीं करे तो दो जून की रोटी जुटा पाना भी कठिन हो जाएगा. साथ ही कुंभकारों का कहना है कि इस साल अत्यधिक बारिश होने के कारण मिट्टी नहीं मिल पा रही और जहां पर मिट्टी की खदानें हैं वहां तक पहुंचने का रास्ता नहीं है. बहुत से लोगों द्वारा मिट्टी की खदानों पर भी कब्जा जमा लिया गया है. जिसके चलते मिट्टी के बर्तन बनाने के लिए मिट्टी लाने के लिए भी बहुत परेशानी का सामना करना पड़ रहा है.

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सांगोद में कुंभकारो के लगभग 60 घर हैं लेकिन लोगों का मिट्टी के बर्तनों के प्रति रुझान कम होने के कारण अब मात्र 5 घरों में ही मिट्टी बर्तन बनाए जाते हैं. इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद और पानी के कैंपर बाजार में आने से मिट्टी के बर्तन अपना अस्तित्व खोते जा रहे हैं. ऐसे में इन परिवारो लालन-पालन भी नहीं हो पा रहा है. ऐसे में कुंभकार दूसरा व्यवसाय करने को मजबूर हो रहे हैं. जिसके चलते मिट्टी के सामान अब ओझल होने की कगार पर है.

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