कोटा.ऐसे तो देशभर में भगवान राम के रावण पर विजय के पर्व विजयादशमी (Vijayadashami festival of victory) को अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है. कोटा में एक अनूठी परंपरा मिट्टी के रावण बनाने की है. जिसे शहर के किशोरपुरा व नांता इलाके में रहने वाले जेठी समाज के लोग निभाते हैं. जेठी समाज के लोग दशहरे पर पैरों से रौंदकर रावण के अहंकार को तोड़ने का काम करते हैं.
यह परंपरा (Ravana is trampled on feet in Kota) करीब 300 सालों से यहां निभाई जा रही है. इसके पहले अखाड़े में स्थित लिंबजा माता की पूजा की जाती है. मंदिर में पूजा के समय से ही ढोल व नगाड़ों की आवाज के साथ ही रणभेरी भी बजाई जाती है, ताकि युद्ध सा माहौल बन जा जाए. साथ ही रावण की आवाज और उसके अहंकार की हंसी भी माइक के जरिए समाज के लोगों तक पहुंचाई जाती है और फिर रावण के अहंकार को लोग अपने पैरों से कुचलकर लिंबजा माता के जयकारे लगाते हैं. इसके बाद अखाड़ों में मल्लयुद्ध का आयोजन (Wrestling organized in Kota Akharas) होता है.
श्राद्ध पक्ष से शुरू होता है रावण बनाने का काम :जेठी समाज के लोग नांता और किशोरपुरा इलाके में दो से तीन जगह इस तरह की परंपरा का निर्वहन करते हैं. इसके लिए श्राद्ध पक्ष शुरू (Construction of Ravana idol) होते ही रावण बनाने का काम शुरू हो जाता है, जो कि अमावस्या तक पूरा भी हो जाता है. इसके बाद रावण के सिर और मुंह पर गेहूं के जवारे उगाए जाते हैं. वहीं, नवरात्र के 9 दिनों तक मंदिर के कपाट बंद रहते हैं, जिसे नवमी के दिन खोला जाता है. केवल मंदिर में पुजारी व अन्य एक-दो लोगों को ही दूसरे दरवाजे से प्रवेश की अनुमति होती है. खैर, इस दौरान पारंपरिक गरबे का आयोजन होता है, जिसमें केवल जेठी समाज के लोग ही हिस्सा लेते हैं. नांता मंदिर के सेवक सोहन जेठी ने बताया कि रावण को बनाने के लिए अखाड़े की मिट्टी का उपयोग किया जाता है. मिट्टी का रावण बनाने में दूध, दही, शक्कर और शहद का इस्तेमाल किया जाता है.