कोटा.जिले में स्थितमेडिकल कॉलेज के अस्पताल में मरीज लंबी कतारों से जूझ रहे हैं. पिछले दो साल में यहां आउट डोर में इलाज कराने पहुंचे तीन मरीजों की मौत हो चुकी है. 17 जुलाई 2018 में जिले के श्रीपुरा में रहने वाले सुनील पांचाल की मौत भी को इसी तरह हुई थी. सब्जी मंडी गुमानपुरा निवासी लालाजी माली की मौत यहां पर्ची कटवाने के दौरान 2019 में दिसंबर महीने में हुई थी.
OPD में उपचार के लिए पहुंचे मरीजों की लाइन में हो रही मौत यहां अस्पताल प्रबंधन ने कई दावे करता है लेकिन हालत डराने वाले हैं. यहां मरीज और तीमारदारों को इलाज की पर्ची कटवाने से लेकर दवा मिलने तक 6 जगह कतार लगानी पड़ती है. इसमें 2 घंटे से ज्यादा का समय उन्हें उपचार में लग जाता है. ऐसे में इमरजेंसी के मरीजों के लिए तो यह परामर्श पर्ची और लंबी कतारें जानलेवा साबित होती है. जहां कोविड-19 में सोशल डिस्टेंसिंग की पालना करवानी है और एक व्यक्ति को दूसरे से 6 फीट की दूरी पर खड़ा करना है लेकिन यहां ऐसा संभव नहीं हो पा रहा है. अस्पतालों में बड़ी संख्या में मरीज आते हैं भीड़ होती है और सोशल डिस्टेंसिंग की पालना दूर-दूर तक नजर नहीं आती है.
दवा देने के लिए लगानी पड़ती है घंटों लाइन...
उपचार के लिए यहां वाले मरीज और उनके तीमारदारों को छह जगह पर ओपीडी में इलाज लेने के लिए चक्कर लगाने पड़ते हैं. अस्पताल आते ही सबसे पहले परामर्श पर्ची लेनी होती है. एक लाइन में अक्सर 20 से 25 लोग खड़े होते हैं. कंप्यूटर सर्विस बाधित या सर्वर डाउन होने पर मरीजों का यह मर्ज भी बढ़ जाता है और उन्हें घंटों तक पर्ची नहीं मिलती है. दूसरी लंबी कतार पर्ची के बाद डॉक्टर के परामर्श के लिए मरीजों को लगानी पड़ती है. मेडिसिन, सर्जरी, नेत्र और न्यूरोलॉजी के मरीजों को तो हमेशा आधे घंटे से ज्यादा इन कतारों में इंतजार करना पड़ता है.
जांच कराने के लिए काउंटर के सामने लंबी कतार में खड़े लोग इतना इंतजार प्लास्टर करवाने के लिए भी करना पड़ता है. तीसरी कतार परामर्श में डॉक्टर जांच लिखते है तो जांच रसीद के लिए लाइन होती है. चौथी जांच करवाने या सैंपल देने के लिए भी लाइन लगती है. पांचवीं बार डॉक्टर को दोबारा जांच दिखाने के लिए फिर कतार में लगना पड़ता है और फिर छठीं कतार दवा लेने के लिए लगाना पड़ता है.
ओपीडी के लिए सुबह पांच बजे से लोग लगाते हैं लाइन...
संभाग के सबसे बड़े अस्पताल एमबीएस और नए अस्पताल में ऐसे हालात रहते हैं कि बाहर से इलाज कराने आने वाले लोग ओपीडी समय के कई घंटों पहले आकर परिसर में बैठ जाते हैं. लेकिन जब स्टाफ आता है और उसके बाद ही उन्हें परामर्श की पर्ची मिलती है इसके पहले ही लंबी कतार काउंटरों के बाहर लग जाती है. अभी सर्दी के समय में ओपीडी सुबह 9 बजे से चालू होती है लेकिन अस्पताल में 8 बजे के पहले ही काउंटर्स के बाहर लोगों का जमावड़ा लग जाता है.
बुजुर्ग और दिव्यागों के लिए अलग से कोई सुविधा नहीं...
अस्पतालों में ना बुजुर्गों के लिए किसी तरह की कोई रियायत दी जाती है और ना ही दिव्यांगों के लिए किसी तरह की कोई व्यवस्था है. कई बुजुर्ग तो ऐसे हैं जो अस्पताल में पर्ची या रसीद कटवाने के लिए लाइनों में लगे होते हैं और घंटों इंतजार करने के बाद वह थक हार कर नीचे ही बैठ जाते हैं. लाइन में भी सरक कर ही आगे बढ़ते हैं. यह बैठे हुए लोग यहां पर मौजूद गार्डों और अस्पताल के कार्मिकों को भी नजर आते हैं लेकिन हर कोई नजरअंदाज कर रहा है.
दवा लेने के लिए काउंटर के सामने लंबी कतार में खड़े लोग लाइन रहित के दावे साबित हो रहे खोखले... अस्पतालों में क्यू लेस सिस्टम बनाने के लिए कई बार दावे किए हैं लेकिन यह संभव नहीं हो पा रहा हैं. मेडिकल कॉलेज प्राचार्य डॉ. विजय सरदाना का कहना है कि जब तक अस्पताल में पर्याप्त लोगों के बैठने के व्यवस्था नहीं होगी उनको टोकन देकर नंबर आने पर वह डॉक्टर को दिखा सकेंगे और परामर्श ले सकेंगे. लेकिन मरीजों को एक जगह ही समस्या का सामना नहीं करना पड़ता उन्हें पर्ची कटवाने के लिए भी घंटों परेशान होना पड़ता है. यहां तक कि केवल 10 परामर्श पर्ची के काउंटर हैं. ऐसे में अस्पताल आने वाले 3 हजार 500 से ज्यादा मरीजों को यहीं से पर्ची लेनी पड़ती है.
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वहीं आए दिन सर्वर डाउन की समस्या आ जाती है जिसकी वजह से काम ठप हो जाता है. जहां पर कंप्यूटराइज्ड पर्चों को बनने में 20 सेकंड लगते हैं वहीं स्टाफ को मैनुअली काम करना पड़ता है। जिसमें 1 मिनट में एक पर्ची बनती है.
दवा के लिए एक से दूसरे काउंटर भटकना मजबूरी...
मेडिकल कॉलेज के अस्पतालों में मुख्यमंत्री नि:शुल्क दवा योजना के तहत दवा वितरण काउंटर (डीडीसी) 15 से ज्यादा चालू है लेकिन वहां भी ओपीडी में मरीज आते हैं. वह 3 हजार 500 से ज्यादा है ऐसे में लंबी कतार यहां लगती हैं. इसके साथ ही यहां एक दवा काउंटर पर पूरी दवा नहीं मिलने की वजह से मरीज के परिजन को फोटो कॉपी कराके दूसरे दवा काउंटर पर देनी होती है फिर उन्हें दवा मिलती है.
एमबीएस अस्पताल के अधीक्षक डॉ. नवीन सक्सेना का कहना है कि जब से कोरोना वायरस की वजह से नए अस्पताल के मरीज एमबीएस में ही आ रहे हैं. ऐसे में यहां मरीजों की तादाद बढ़ गई है साथ ही सभी मरीज जो आ रहे हैं अभी उन में मौसम के बदलाव के चलते सर्दी जुखाम, और स्किन से जुड़ी बीमारियों के हैं. उन्होंने कहा कि अभी कुछ दिन पहले ही मीटिंग करके आकलन किया था कि 25 से 30 सुरक्षा गार्ड बढ़ा दिया जाए. इसके अलावा रजिस्ट्रेशन काउंटर और दवा पर्ची काउंटर बढ़ाएं जाएंगे जिससे इस समस्या से निजात मिल सकेगा.