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स्पेशल: कोटा स्टोन के खनन पर NGT ने लगाई रोक, करीब 50 हजार मजदूर होंगे बेरोजगार - कोटा स्टोन खनन पर एनजीटी की रोक

कोटा उपखण्ड की पहचान विश्व विख्यात कोटा स्टोन की बड़ी कंपनी पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल भोपाल ने मुकुन्दरा टाइगर हिल्स के 10 किलोमीटर की परिधि में स्थित एसोसिएट स्टोन इन्डस्ट्रीज में खनन पर रोक लगा दी है. इसका बड़ा असर ये है कि इससे जुड़े हजारों मजदूर बेरोजगार हो जाएंगे तो वहीं सरकार को भी राजस्व का खासा नुकसान होगा. वहीं कोटा स्टोन एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने आग्रह करते हुए कहा कि इस मामले में एनजीटी और सरकार को इस पर पुनर्विचार करना चाहिए.

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कोटा स्टोन के खनन पर एनजीटी ने लगाई रोक

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Published : Nov 28, 2019, 11:49 AM IST

रामगंजमण्डी (कोटा).रामगंजमण्डी उपखण्ड की पहचान विश्व विख्यात कोटा स्टोन की बड़ी कंपनी पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल भोपाल की बैंच ने मुकुन्दरा टाइगर हिल्स के 10 किलोमीटर की परिधि क्षेत्र में स्थित एसोसिएट स्टोन इंडस्ट्रीज में खनन पर रोक लगा दी है. वहीं इस फैसले के बाद क्षेत्र के कोटा स्टोन व्यापारियों में हड़कंप मच गया. क्षेत्र में कोटा स्टोन खदानों से तकरीबन 50 हजार से अधिक मजदूरों की मजदूरी भी जुड़ी हुई है.

कोटा स्टोन के खनन पर एनजीटी ने लगाई रोक

आपको बता दें कि जस्टिस आरएस राठौड़ की बैंच ने एसोसिएट स्टोन इंडस्ट्रीज की ओर से ही दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान सामने आए तथ्यों के बाद ये आदेश दिया है. एनजीटी ने राज्य प्रदूषण बोर्ड को आदेश की पालना कराने के निर्देश दिए है. सालाना 100 करोड़ से अधिक का कारोबार कर रही इस इण्डस्ट्रीज के लिए ये एक बड़ा झटका है.

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राज्य में कोटा स्टोन की सबसे बड़ी माइंस एसोसिएट स्टोन इंडस्ट्रीज कोटा में खनन पर एनजीटी ने रोक लगा दी है. नेशनल वाइल्ड लाइफ बोर्ड की ओर से माइंस को जारी की जाने वाली एनओसी नहीं होने के चलते एनजीटी ने ये आदेश दिए हैं. एसोसिएट स्टोन इंडस्ट्रीज को 2009 में पर्यावरण स्वीकृति जारी की गई थी. जिसके तहत उसे नेशनल वाइल्ड लाइफ बोर्ड से एनओसी लेनी थी. लेकिन एनओसी लेने की बजाय राजस्थान प्रदूषण बोर्ड से कंसर्न टू आपरेट का सर्टिफिकेट प्राप्त कर लिया.

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इस सर्टिफिकेट की मियाद मई 2019 में समाप्त हो चुकी थी. इस सर्टिफिकेट का नवीनीकरण करने के लिए राज्य प्रदूषण बोर्ड के समक्ष आवेदन किया गया. लेकिन प्रदूषण बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए कंसर्न जारी करने से इनकार कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने एक अन्य मामले में देश की सभी माइंस के लिए नेशनल वाइल्ड लाइफ बोर्ड से एनओसी लेना आवश्यक कर दिया है.

यहां फंसा मामला...

एसोसिएट स्टोन इण्डस्ट्रीज मुकुन्दरा टाइगर हिल्स के 10 किलोमीटर की परिधि में स्थित है. जिसके चलते इस इंडस्ट्री को नेशनल वाइल्ड लाइफ बोर्ड एनओसी जारी नहीं कर रहा. लेकिन इसका दूसरा पहलू ये भी था कि मुकुन्दरा टाइगर हिल्स को इकोनोमिक सेंसेटिव जोन घोषित करने पर 10 किलोमीटर का नियम लागू होने की बजाय ये 1 किलोमीटर तक ही सीमित रह जाता है. एसोसिएट स्टोन इंडस्ट्रीज ने एनजीटी में याचिका दायर कर मुकुन्दरा टाइगर हिल्स को इकोनोमिक सेंसेटिव जोन घोषित करने की गुहार लगाई.

सुनवाई के दौरान ही याचिकाकर्ता कंपनी के पास खनन के लिए एनओसी नहीं होने की जानकारी सामने आई. जिस पर एनजीटी ने सख्त रूख अपनाते हुए पर्यावरण बोर्ड द्वारा एनओसी जारी होने तक खनन पर रोक लगाने के आदेश दिए. सुनवाई के दौरान एसोसिएट स्टोन इंडस्ट्रीज की ओर से याचिका को विड्रॉ करने के लिए भी गुहार लगाई गई. लेकिन बैंच ने विड्रॉ करने से इनकार करते हुए ये सख्त आदेश जारी किए हैं.

क्या कहते हैं कोटा स्टोन एसोसिएशन के संरक्षक और वाइस प्रेसिडेंट...

रामगंजमण्डी कोटा स्टोन एसोसिएशन के संरक्षक यतीश अग्रवाल का कहना है एनजीटी की इस रोक के बाद यहां पर जितने मजदूर काम कर रहे हैं, वे बेरोजगार हो जाएंगे. इसलिए एनजीटी को इस पर पुनर्विचार करना चाहिए और मामले में संज्ञान लेना चाहिए. सरकार को टैक्स के रूप में मिलने वाले राजस्व का भी नुकसान होगा. इसलिए सरकार व एनजीटी को भौगोलिक परिस्थितियों पर कार्य करना चाहिए. इस मामले में पुनर्विचार करना चाहिए.

वहीं कोटा स्टोन के वॉइस प्रेसिडेंट व लघु उद्योग भारती के पूर्व अध्यक्ष गोपाल गर्ग का कहना है कि अभी क्षेत्र में माइंस एरिया के लिए एनजीटी के जो आदेश आए हैं, उनके संदर्भ में सरकार और एनजीटी को यह सोचना चाहिए कि हम कुछ नया करने के लिए व पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए लगे लगाए रोजगार को बिगाड़ना चाहते हैं. इससे हजारों लोग बेरोजगार हो जाएंगे. इस क्षेत्र के लाखों लोगों पर इसका असर पड़ेगा. इसलिए सरकार और एनजीटी से निवेदन है इस तरह के फैसले लेने से पहले क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति पर ध्यान दें. इस आदेश पर पुनर्विचार करना चाहिए.

सालान करीब 6 हजार करोड़ का है कारोबार...

कोटा स्टोन से रामगंजमंडी क्षेत्र में सालाना करीब 6 हजार करोड़ रुपए का कारोबार होता है. लगभग 8 महीने यहां खदान चलती है. यह इस क्षेत्र की लाइफ लाइन भी है. क्षेत्र का हर व्यक्ति प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इससे जुड़ा हुआ है.

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