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कोटा गर्ल कशिश के संघर्ष की कहानी : हालातों को चुनौती देकर अब बनेगी आईआईटियन

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Published : Jun 25, 2023, 7:18 AM IST

Updated : Jun 25, 2023, 8:10 AM IST

कहते हैं जहां चाह वहां राह, इस कहावत को कोटा की एक बच्ची कशिश ने देश की सबसे प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग एंट्रेंस एग्जाम में सफलता हासिल कर साबित किया है. कशिश का परिवार हालातों से संघर्ष कर रहा हैं, इसी जिद से कशिश ने मेहनत करके संघर्ष से सफलता को सिद्ध कर दिया है.

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कोटा गर्ल कशिश के संघर्ष की कहानी

कोटा.शहर के कंसुआ निवासी परिवार की आर्थिक हालत काफी कमजोर है, लेकिन उन्हीं के परिवार की एक बच्ची कशिश ने विश्व की कठिन और देश की सबसे प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग एंट्रेंस एग्जाम में सफलता हासिल की है. कशिश का परिवार हालातों से संघर्ष कर रहा हैं, इसी जिद से कशिश ने अच्छी पढ़ाई कर संघर्ष से सफलता को सिद्ध किया है. इसमें उसके परिवार के साथ-साथ रिश्तेदारों और कोटा के कोचिंग संस्थानों ने भी मदद की है. कशिश ने जेईई एडवांस्ड में कैटेगरी रैंक 1216 हासिल की. जिसके जरिए उन्हें टियर 2 या 3 आईआईटी में कम्प्यूटर साइंस ब्रांच मिल जाएगी. इसके बाद एलन स्टूडेंट कशिश अपने परिवार की पहली आईआईटीयन बनेगी.

कोटा गर्ल कशिश अपने पिता व दादी समेत परिवार के साथ

कशिश की जेईई मेन में एक लाख 20 हजार से ज्यादा रैंक आई थी. परंतु उनकी कैटेगरी में 5557 रैंक थी. हालांकि उन्होंने जेईई एडवांस्ड में काफी मेहनत की और उसकी की बदौलत कैटेगिरी में 1216 स्थान पर पहुंची. जिसके चलते उन्हें सेकंड टियर आईआईटी में कंप्यूटर साइंस मिल रहे हैं. कशिश का कहना है कि परिवार के हालातों को बदलने के लिए ही मैं पढ़ाई में जुटी थी. मैंने परिवार की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करने के लिए ही अच्छी पढ़ाई की और इसी की बदौलत मेरा चयन हुआ है. मैं पढ़ाई पूरी कर जब वापस लौटूंगी तब परिवार को संबल दूंगी और हालातों को बदल दूंगी.

कोटा की कशिश अपने परिजनों के साथ

पूरे परिवार ने की है कशिश की मदद : कशिश के पिता के ब्रेन हेमरेज है ऐसे में उनके दादा यशराज जोशी और अन्य परिवार के लालन-पालन का जिम्मा आ गया है. उनकी मां वंदना जोशी सिलाई बुनाई कर घर के लिए कुछ खर्च जुटाती है. उनकी बुआ शालू भी उनके साथ ही रहती है. वो भी ब्यूटी पार्लर चला कर घर खर्च में मदद करती है. इसके अलावा उनकी दो बड़ी बुआ भी है जिनकी शादी हो गई है, वो भी आर्थिक मदद परिवार की करती है. इसी के बूते कशिश और उसके भाई पढ़ पा रहे हैं. कशिश 4 बहिन व एक भाई है. उसकी छोटी बहिन भूमि 12वीं कक्षा में है और वो भी पढ़ाई में अच्छी है. साथ ही जेईई की तैयारी कर रही है, उससे छोटी दोनों बहनें स्कूल में पढ़ती हैं. घर आधा कच्चा-पक्का बना हुआ है.

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पिता ने दुकान बंद हुई तो ऑटो चलाया, ब्रेन हेमरेज ने जकड़ा :कशिश के पिता भूपेंद्र जोशी छावनी में मोबाइल रिचार्ज की शॉप थी, समय के साथ यह बिजनेस पूरी तरह से बंद हो गया. इसके बाद उन्होंने ऑटो लेकर अपने परिवार का लालन पालन शुरू किया. बीते साल 31 दिसंबर को ब्लड प्रेशर (बीपी) बढ़ने से उनको हेमरेज हो गया. इसके बाद उनकी स्थिति में तो सुधार आया है, लेकिन अभी भी बेड रेस्ट पर ही हैं. कशिश का कहना है कि उनके पिता को हाई बीपी था, लेकिन पैसों की तंगी और पारिवारिक जिम्मेदारियों के चलते दवा नहीं ले पाते थे. उनके उपचार में मेरी बुआ ने भी काफी पैसे खर्च की है.

गूगल सर्च कर पता किया पढ़ाई के ऑप्शन :कशिश का कहना है कि उन्होंने 10वीं में 95 फीसदी व 12वीं कक्षा 91 प्रतिशत अंकों से पास की है. हालांकि कॅरियर के ऑप्शन के बारे में पता नहीं था. इसलिए उन्होंने गूगल की मदद ली और बाद में उन्हें जेईई मेन, एडवांस्ड और आईआईटी एंट्रेंस का पता चला. फिर उन्होंने इस संबंध में तैयारी भी शुरू कर दी. मुझे कोचिंग संस्थान ने भी काफी मदद की और आधी फीस में ही मुझे पढ़ाया. फीस भी उधार में पैसा लेकर ही चुकाई हूं. कशिश ने बताया कि पिता ग्रेजुएट और मां पोस्ट ग्रेजुएट है. हमें शुरुआत में प्राइवेट स्कूल में ही माता-पिता ने पढ़ाया है. इसके लिए भी कर्जा लेकर फीस स्कूल में जमा करते थे और फिर उस कर्जें को पूरे साल चुकाते रहते थे. मेरी 12वीं की फीस भी अभी बकाया चल रही है.

घर के लालन-पालन में जुटा है पूरा परिवार :कशिश के परिवार के साथ उनकी बुआ का परिवार भी रहता है. ऐसे में दोनों परिवारों में 6 बच्चे वर्तमान में है. इन बच्चों के साथ करीब एक दर्जन सदस्य घर में रहते हैं. सभी का भरण पोषण के अलावा पढ़ाई लिखाई का खर्चा भी परिवार के ऊपर है. पिता के इलाज में भी उनका पैसा खर्च हुआ है. बीते 6 महीने से पिता बेड रेस्ट पर है और उनकी कमाई भी बंद है. कशिश का कहना है कि परिवार की मजबूरी के चलते ही 85 साल की उम्र में भी उनके दादा जसराज जोशी चौकीदार की नौकरी करते हैं. ऐसे में मां सिलाई बुनाई में बिजी रहती है, तो पिता की सेवा का जिम्मा भी दादी सजन देवी उठा रही हैं. दादाजी नौकरी से वापस आने के बाद वे संभालते हैं.

पहले प्रयास में मिली थी असफलता : कशिश का यह दूसरा चांस था. इससे पहले साल 2022 में भी उन्होंने जेईई मेन की परीक्षा दी थी, लेकिन काफी पीछे रैंक आई थी एडवांस्ड के लिए क्वालीफाई भी नहीं कर पाई थी. कशिश का कहना है कि उनके बुआ का बेटा साल 2022 चाय से झुलस गया था. इसलिए वे अस्पताल में रही थी. साथ ही 12वीं बोर्ड की परीक्षा भी साथ में ही थी. इसके चलते उनकी रैंक अच्छी नहीं आ पाई थी. इसके बाद ही उन्होंने आगे की तैयारी की और अच्छी रैंक की संघर्ष में जुट गई.

Last Updated : Jun 25, 2023, 8:10 AM IST

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