कोटा.नगर विकास न्यास की ओर से 1400 करोड़ की लागत से चंबल हेरिटेज रिवर फ्रंट का निर्माण करवाया गया है. इसके तहत कुन्हाड़ी में एक घंटी घाट बनाया गया है, जहां विश्व के सबसे बड़े घंटे का निर्माण किया गया है. इसकी कास्टिंग के बाद आर्किटेक्ट और मेटलॉजिस्ट में विवाद हो गया था, जिसके चलते इस घंटे को सांचे से बाहर ही निकाला नहीं गया. अब घंटे के सांचे से बाहर आने उम्मीद जगी है. मेटलॉजिस्ट देवेंद्र आर्य साइट पर पहुंचे हैं और उन्होंने सांचे के ऊपर की तीन चार प्लेट को हटाया है. उन्होंने उम्मीद जताई है कि घंटा टूटा नहीं होगा. ऐसे में इसको निकाला जाएगा. हालांकि इस पूरी प्रक्रिया में 3 महीने का समय अभी और लगेगा. नगर विकास न्यास के सचिव मानसिंह मीणा का कहना है कि उन्होंने संवेदक के जरिए मटेलॉजिस्ट देवेंद्र आर्य को बुलाया है, जिन्होंने काम भी शुरू कर दिया है. सांचे से खुलवाकर घंटे को पेडलस्टेण्ड पर लटकाया जाएगा.
क्रेडिट लेने को लेकर हुआ था विवाद : विश्व के सबसे बड़े घंटे का वजन 78000 किलो है. यह करीब 25 करोड़ से ज्यादा की लागत में बनकर तैयार हुआ है. इसको बनाने वाले मेटलॉजिस्ट देवेंद्र आर्य और आर्किटेक्ट अनूप भरतरिया के बीच क्रेडिट लेने को लेकर भी विवाद था, जिसमें इस घंटे के निर्माण को लेकर बन रहा वर्ल्ड रिकॉर्ड भी शामिल है. घंटे की कास्टिंग 18 अगस्त को हुई थी, वहीं 19 अगस्त को देवेंद्र आर्य ने भरतरिया के श्रेय लेने का आरोप लगाया और आपत्ति जताई थी. साथ ही इस प्रोजेक्ट को छोड़ दिया था. ऐसे में यह घंटा खुल नहीं पाया था. करीब ढाई महीने गुजर जाने के बाद इसे सांचे से बाहर नहीं निकाला जा सका था. अब दोबारा नगर विकास न्यास ने देवेंद्र आर्य को बुलाया है और उन्हें सहमत किया है.
जबरन खुलवाना चाह रहे थे, इसलिए छोड़ा प्रोजेक्ट :देवेंद्र आर्य का कहना है कि अनूप भरतरिया और यूआईटी के अधिकारी चाहते थे कि कास्टिंग के तीन दिन में ही घंटे को खोलकर लटका दिया जाए. ऐसा संभव नहीं था, क्योंकि जिस समय यह घंटे को खुलवाने चाह रहे थे, तब उसका तापमान 80 डिग्री सेल्सियस के आसपास था. ऐसे में उसके ब्रेक होने का पूरा खतरा था. इस तरह के मेटलॉजिकल कार्यों में प्रक्रिया काफी लंबी होती है. इसके चलते ही उन्होंने प्रोजेक्ट छोड़ दिया था, क्योंकि घंटे को कास्ट करने के 15 से 20 दिन बाद ही खोलने का क्रम शुरू होता है. तब ही इसका तापमान सामान्य हो जाता है.