टॉपर ज्ञानेश ने नहीं चलाया इंटरनेट और एंड्रॉइड फोन कोटा.देश की सबसे बड़ी इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा जॉइंट एंट्रेंस एग्जाम के जनवरी सेशन के स्कोर कार्ड जारी किए गए हैं. इसमें बीते 5 सालों से कोटा में रहकर ही कोचिंग कर रहे महाराष्ट्र के चंद्रपुर निवासी ज्ञानेश हेमेंद्र शिंदे भी 100 परसेंटाइल लेकर टॉपर बने हैं. हैरानी की बात ये है कि gen Y जेनेरेशन के बच्चे ज्ञानेश ने बचपन से ही एंड्रॉयड फोन नहीं चलाया. वो एक पुराने फोन का ही इस्तेमाल करते हैं. इससे भी ज्यादा आश्चर्य की बात उनके पास किसी तरह का कोई इंटरनेट कनेक्शन भी नहीं था. आखिर क्यों किया ऐसा ज्ञानेश हिमेन्द्र ने?
IIT बॉम्बे रहा लक्ष्य-ज्ञानेश शिंदे ने बताया कि उन्होंने कक्षा 8 से ही तय कर लिया था कि वो आईआईटी बॉम्बे से कंप्यूटर साइंस ब्रांच से बीटेक करेंगे. इसी लक्ष्य को लेकर वह कोटा आकर पढ़ाई करने में जुट गए. डिस्ट्रैक्शन न हो इसलिए एंड्रॉयड और इंटरनेट से दूरी बनाए रखी. कहते हैं कोटा ने उनके सपनों को नई उड़ान दी.
कोटा लाजवाब-शिंदे कोटा की तारीफ करते हैं उन्हें यहां का माहौल रास आता है. तो आखिर वजह क्या है? कहते हैं इसे शिक्षा नगरी कहा जाता है. देश भर से बड़ी संख्या में बच्चे आते हैं और बड़े कोचिंग संस्थान भी हैं. अपने लक्ष्य में आगे बढ़ने का सबक कोटा देता है. इनका लक्ष्य आईआईटी बॉम्बे में दाखिला ले सॉफ्टवेयर इंजीनियर बनने का है लेकिन मानते हैं कि उन्हें अभी आगे आने वाले एडवांस के एग्जाम में अच्छा परफॉर्म भी करना होगा. सॉफ्टवेयर इंजीनियर बनने के बाद विदेश जाने की इच्छा रखते हैं या नहीं, इस सवाल के जवाब पर उन्होंने कहा कि कैसे अवसर मुझे मिलते हैं, उस पर भी निर्भर करेगा. अभी बाहर जाने का कोई लक्ष्य नहीं है. मैं देश में रहकर भी सेवाएं देना चाहता हूं.
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बताया सक्सेस मंत्र- ज्ञानेश कोटा के कोचिंग संस्थान को अपनी तैयारी का अहम हिस्सा मानते हैं. कहते हैं यहां की फैकल्टी ने सभी डाउट क्लियर किए. पढ़ाई का मटेरियल भी सटीक होता है. ऐसा कि घर जाकर उसे सारे कॉन्सेप्ट को क्लियर कर सकें. मेहनत को सफलता का मंत्र बताते हुए अपनी बात कुछ यूं बढ़ाते हैं- मैंने होमवर्क जितना भी था, वो सीरियसली पूरा किया. मैं मेहनत करता रहा, आज उसका रिजल्ट है. मुझे बचपन से ही पढ़ाई लिखाई का शौक भी था. मम्मी बचपन से ही मेरी टीचर थी और मुझे काफी कुछ सिखाया है. मेरा मानना है कि बेस व फाउंडेशन अच्छा रहता है, इससे कांसेप्ट क्लियर रहते हैं. जिससे आगे की पढ़ाई में काफी मदद मिलती है. बहुत अहम राय जाहिर करते हैं. कहते हैं- स्टूडेंट को 100 परसेंटाइल का लक्ष्य बना कर काम करना चाहिए. फिर जो भी रैंक आती है या रिजल्ट आता है, उसे एक्सेप्ट कर लेना चाहिए.
प्रेशर न लें सुधार पर करें काम-ज्ञानेश अपने साथियों को मार्के की बात बताते हैं. कहते हैं- क्लास में होने वाली पढ़ाई को अच्छे से रिवाइज करना चाहिए. मानते हैं कि कोटा के कोचिंग संस्थान अपना मटेरियल इस तरह से डिजाइन करते हैं कि बच्चों के सभी कांसेप्ट क्लियर हो जाएं. उनको क्वेश्चन बनाने की प्रैक्टिस भी करनी चाहिए. इससे नॉलेज बढ़ती है और स्पीड आ जाती है. प्रेशर ज्यादा नहीं लेना चाहिए. अपने अनुभव को साझा कर बताते हैं- कभी-कभी होता है कि आपका एग्जाम मिस हो जाता है या एग्जाम में रिजल्ट खराब हो जाता है. लेकिन तब आपको अपने इंप्रूवमेंट पर काम करना चाहिए, जिससे माइंड सेट अच्छा रहता है और अच्छे से परफॉर्म कर पाते हैं.
Topper की मां करती हैं मोटिवेशन की बात-ज्ञानेश की मां माधवी डिस्ट्रैक्शन, अचीवमेंट, मोटिवेशन और टेंशन फ्री रहने की वकालत करती हैं. कहती हैं- कभी-कभी होता है कि बच्चे का कोई रिजल्ट परसेंटाइल किसी एग्जाम में कम रह जाता है. इससे मार्क्स थोड़ा नीचे हो जाता है. जिससे बच्चा टेंशन में आ जाता है. मैं उन सबको कहना चाहती हूं कि एग्जाम आपकी प्रेक्टिस है, यह आप का फाइनल नहीं है. आप मेहनत करते जाओ और बाकी ईश्वर की मर्जी है. अपनी मेहनत का 100 फीसदी देना चाहिए, फिर जो रिजल्ट आए उससे खुश रहना चाहिए. ज्ञानेश की बात करूं तो बचपन से ही वो काफी शांत और पढ़ने वाला बच्चा रहा है. उसके कोई फ्रेंड सर्किल नहीं था. गिने चुने ही फ्रेंड थे, ये सभी पढ़ने वाले बच्चे रहे हैं. डिस्ट्रेक्शन महसूस हुआ या ज्यादा पढ़ाई से थक जाता, तो म्यूजिक सुनता था. उसने बचपन से ही गिटार और कीबोर्ड बजाने की प्रैक्टिस की थी. ऐसे में परेशानी होने पर वह गिटार बजाकर मोटिवेट होता था.
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ज्ञानेश के पिता हेमेंद्र शिंदे नॉर्दन कोलफील्ड्स लिमिटेड सिंगरौली मध्यप्रदेश में जनरल मैनेजर के पद पर कार्यरत हैं. उनकी मां माधवी हाउसवाइफ है. बड़ी बहन समृद्धि एमबीबीएस की पढ़ाई कर रही है. वे मूलतः चंद्रपुर महाराष्ट्र के रहने वाले हैं. शुरुआत की पढ़ाई ज्ञानेश ने चंद्रपुर से ही की है. माधवी का कहना है कि वह अपनी बेटी समृद्धि को लेकर कोटा 2018 में आए थे. उसी के साथ आठवीं में पढ़ने के दौरान ज्ञानेश पीकोटा आ गया और तब से ही मैं कोटा में रहकर पढ़ाई कर रहा है. साल 2019 में समृद्धि का नेट क्लियर करने के बाद गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज चंद्रपुर में एडमिशन हो गया, तब से वह एमबीबीएस कर रही है. अब ज्ञानेश ने भी सफलता अर्जित की है.
कोई सोशल मीडिया अकाउंट नहीं- माधवी का कहना है कि दोनों बच्चों को उन्होंने पुराना मोबाइल फोन दिया हुआ था, जो एंड्राइड नहीं है. फोन से बच्चे केवल बात ही करते हैं. कोचिंग संस्थान से आने वाले पढ़ाई के मटेरियल को भी खुद के मोबाइल पर ही मंगाती थी. दोनों बच्चों ने अब तक इंटरनेट और एंड्रॉइड फोन का उपयोग नहीं किया. जिस आईपैड से ज्ञानेश पढ़ाई करता था, उसमें भी किसी तरह की सिम नहीं है. आईपैड पर किसी तरह का कोई ऐप नहीं डाले हुए हैं. जरूरत होने पर इंटरनेट भी मां के मोबाइल से ही उसे उपलब्ध कराया जाता था. बचपन से किसी भी सोशल मीडिया नेटवर्क पर कोई अकाउंट नहीं है. ऐसा ही उनकी बेटी समृद्धि ने किया था.