सांगोद(कोटा). कोटा जिले के सांगोद उपखंड मुख्यालय से करीब 13 किलोमीटर दूर भुलाहेड़ा माता मंदिर स्थित है. इसे चौथ माता मंदिर के नाम से भी जानते हैं. ऐसी मान्यता है, कि विक्रम संवत 1552 फाल्गुन शुक्ल पंचमी, मंगलवार रात 12 बजे सातों बहनें पिंड के रूप में वटवृक्ष फाड़कर यहां प्रकट हुईं.
लोग बताते हैं, कि प्रकट होने से पहले गांव के ही बोहरा नंदराम ब्राह्मण अपनी भैसों को ढूंढने जा रहे थे. लेकिन उसी समय आकाशवाणी हुई, कि भक्त तेरी भैसें घर पहुंच जाएगी. तुम गांव में ही मसानी बावड़ी पर बड़ के पेड़ के नीचे पहुंचो. जब ब्राह्मण वहां पहुंचा तो उसने देखा, कि एक 7-8 साल की कन्या थी, जिसने बताया, कि हम सात बहनें यहीं पर हैं.
यहां विराजती हैं सातों बहनें इस दौरान सातों बहनों ने ब्राह्मण को ज्योति दर्शन दिए. मंदिर के पुजारी चतुर्भुज नागर ने बताया, कि लोगों के बीच ऐसी मान्यता है, कि गांव के ही दामोदर धाकड़ ऐसे दूसरे व्यक्ति थे, जो वहां पर पहुंचे और माता से बात की. ऐसे में दिनभर कोटा में भक्तों का जमावड़ा लगा रहा. पुजारी बताते हैं, कि माता ने कन्या रूप में दर्शन देकर दरबार के सामने कनेर के पत्ते से दामोदर जी धाकड़ का सर धड़ से अलग कर दिया और 3 दिन तक कपड़े से ढक दिया.
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जिसके तीन दिन बाद फिर से माता ने कन्या रूप में दर्शन देकर दामोदर के सर को फिर से जोड़ दिया. ऐसी मान्यता है, कि भुलाहेड़ा माता मंदिर में खुद माता ने भक्तों को यह बताया, कि 364 दिन दामोदर पूजा करेगा और पंचमी के दिन बोहरा नंदराम 1 दिन की महाआरती करेगा और यह क्रम इसी तरह चलेगा. वहीं, जब पिंड प्रकट हुए तो उस समय भाला, शंख, डमरू, एक ताम्र पत्र के अलावा एक देव लिपि वटवृक्ष से निकली, जिसे चट्टी लाल ने हिंदी में अनुवाद करके लिखा.
वहीं, राजा प्रात सिंह हाड़ा ने माता की अखंड ज्योति जलाने के लिए 25 बीघा जमीन भेंट की. साथ ही दामोदर धाकड़ को मुंड कटवाने के लिए 5 बीघा जमीन दी. वहीं कोटा दरबार के हाड़ा किशोर सिंह ने 27 बीघा जमीन माता को सुबह-शाम भोग लगाने के लिए दान की.
बता दें, कि नवरात्रि में पंचमी के दिन रात में 12 बजे कनेर के पुष्पों से माता का श्रृंगार किया जाता है और इस दिन सब लोग महाआरती करते हैं. श्रद्धालुओं की ओर से अखाड़ा निकाल कर माता का जन्मदिन मनाया जाता है. साथ ही इस दिन तलवार की धार काम नहीं करती. कोई भी श्रद्धालु तलवार से खांड बांध ले सकता है और किसी को भी चोट नहीं आती.