राजस्थान तकनीकी विश्वविद्यालय के हाल बेहाल कोटा.प्रदेश की सबसे बड़ी टेक्निकल यूनिवर्सिटी राजस्थान तकनीकी विश्वविद्यालय (RTU) में वर्तमान में एग्जाम से लेकर रिजल्ट और स्टूडेंट के माइग्रेशन से लेकर प्रोविजनल सर्टिफिकेट और ट्रांसक्रिप्ट जारी करने के काम ठप पड़े हुए हैं. विश्वविद्यालय प्रबंधन पूरी तरह से मूक दर्शक बना हुआ है. नई आउटसोर्सिंग फर्म ने कार्य शुरू नहीं किया है और पुरानी आउटसोर्सिंग फर्म ने काम बंद कर दिया है. यहां तक कि विश्वविद्यालय में एग्जाम व रिजल्ट जैसे महत्वपूर्ण कार्य भी ठप पड़े हुए हैं. विश्वविद्यालय प्रबंधन इस मामले पर कुछ भी कहने से इनकार कर रहा है. रजिस्ट्रार इसे प्रशासनिक नहीं अकादमिक कार्य बताकर पल्ला झाड़ रहे हैं.
नोटिस चस्पा कर इतिश्री : 20 फरवरी को विद्यार्थियों के लिए एक नोटिस चस्पा कर दिया गया था. इसमें बताया कि विश्वविद्यालय के परीक्षा विभाग की स्टूडेंट विंडो व ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से हो रहे ऑफलाइन और ऑनलाइन आवेदन दस्तावेजों की प्रिंटिंग नहीं हो पा रही है. ऐसे में विद्यार्थी ऑनलाइन आवेदन कर दें, इसके 15 दिन बाद प्रिंट उनके निवास या कॉलेज भेज दी जाएगी. हालांकि इस नोटिस को ही चस्पा हुए करीब 1 महीना हो गया है, लेकिन एक भी विद्यार्थी को उनके डॉक्यूमेंट नहीं उपलब्ध करवाए जा रहे हैं. जबकि पहले यह एक दिन में ही उपलब्ध कराए जाते थे.
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नौकरी व आगे की पढ़ाई में दिक्कत :डुप्लीकेट, मार्कशीट माइग्रेशन सर्टिफिकेट, प्रोविजनल सर्टिफिकेट, कंसोलिडेटेड मार्कशीट व ट्रांसक्रिप्ट विद्यार्थियों को नहीं मिल पा रही है. पूरे राजस्थान के करीब 350 विद्यार्थी ऐसे हैं, जिनको 2 महीने से परेशान होना पड़ रहा है. इन सभी विद्यार्थियों में अधिकांश की नौकरी लग चुकी है. उन्हें अपनी कंपनी में यह मार्कशीट या सर्टिफिकेट जमा कराने हैं. कुछ को आगे की पढ़ाई के लिए माइग्रेशन सर्टिफिकेट चाहिए. बिहार निवासी रिजवान ने जयपुर पीजी कॉलेज से इंजीनियरिंग की थी, इसके बाद वह मुंबई में सर्विस कर रहे हैं. उन्हें नौकरी के लिए यूरोप जाना है, लेकिन प्रोविजनल डिग्री नहीं मिल पा रही है. इसी तरह से बीकानेर के दीपक छाबा को भी उनकी प्रोविजनल डिग्री नहीं मिल पा रही है, उन्हें भी नौकरी में दिक्कत आ रही है.
डॉक्यूमेंट के लिए परेशान हो रहे छात्र फॉर्म फिलिंग, कॉपी तैयार करने और रिजल्ट का भी काम ठप :यूनिवर्सिटी के एग्जाम से जुड़े सभी काम आउटसोर्सिंग फर्म ही करती है. फर्म को यूनिवर्सिटी में एग्जाम के पहले और बाद के कई काम करने होते थे. इनमें एग्जाम के पहले फॉर्म फिलिंग, एडमिट कार्ड व अटेंडेंस शीट तैयार करनी होती थी. आंसर कॉपी को बारकोड के जरिए तैयार किया जाता था. इनके पैकेट तैयार करके एग्जाम करवाने के लिए यूनिवर्सिटी को सौंप दिए जाते थे. इसके बाद यूनिवर्सिटी खुद इन कॉलेजों या एग्जाम सेंटर पर कॉपियों को भेजती है, जिनमें परीक्षा होती है.
एग्जाम के बाद इन कॉपियों के बारकोड दोबारा बदल कर जांचने यानी इवेलुएशन के लिए भेजा जाता था. कॉपी जांच के बाद वापस आउटसोर्सिंग फर्म के पास आती है. थ्योरी, प्रैक्टिकल और इंटरनल मार्क्स को भरकर रिजल्ट तैयार करना होता है. इस रिजल्ट के आधार पर मार्कशीट व टेबुलेशन रजिस्टर बनाई जाती है. अब यह सभी कार्य भी काफी समय से अटके हुए हैं. एग्जाम से लेकर फॉर्म फिलिंग और परीक्षाओं का पूरा सिस्टम राजस्थान तकनीकी विश्वविद्यालय में ठप पड़ा हुआ है.
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कॉपियां चेक, लेकिन नहीं बन पा रहा रिजल्ट :यूनिवर्सिटी के बिगड़े ढर्रे का खामियाजा स्टूडेंट को भुगतना पड़ रहा है. इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि कई सेमेस्टर के एग्जाम शुरू नहीं हो पाएं हैं. राजस्थान में 90 इंजीनियरिंग कॉलेज इससे जुड़े हुए हैं, जिनके बीटेक, एमबीए, एमसीए व एमटेक के करीब 10 से 12 हजार स्टूडेंट्स का पहले सेमेस्टर का एग्जाम शुरू नहीं हुआ है. कुछ की फॉर्म फिलिंग ही शुरू नहीं हो पाई है. कई ऐसे विद्यार्थी भी हैं जिनका दूसरा सेमेस्टर शुरू हो गया, लेकिन पहले की परीक्षाएं नहीं हुई हैं.
दूसरी तरफ बीटेक, बीआर्क और एमबीए के तीसरे और पांचवें सेमेस्टर के स्टूडेंट्स की कॉपी तैयार नहीं हुई है. परीक्षकों से इन कॉपियों की जांच करवानी है. इन बच्चों ने दिसंबर व जनवरी में परीक्षा दे दी है, लेकिन इनका रिजल्ट तैयार नहीं हो पाया है. बीटेक सातवें व आठवें सेमेस्टर, बीआर्क के सातवें व नवें और एमटेक के तीसरे सेमेस्टर का एग्जाम हो गया है, लेकिन उनके थ्योरी इंटरनल और प्रैक्टिकल मार्क्स ऑनलाइन सिस्टम के जरिए नहीं जुड़ पाए हैं. ऐसे में उनका परिणाम जारी नहीं हो रहा है.
यूनिवर्सिटी के अधिकारी, कार्मिक भी फर्म के खिलाफ :यूनिवर्सिटी के अधिकारी और कर्मचारी भी इस पूरे नए सिस्टम के खिलाफ आ गए हैं. उन्होंने इस फर्म के साथ कई मीटिंग की है. साथ ही विश्वविद्यालय प्रबंधन को भी समस्याओं से अवगत करवा दिया है. इसमें नई कंपनी की ओर से काम शुरू नहीं करने की बात कही गई है. इसके अलावा फर्म को भी कई नोटिस दिए जा चुके हैं. विश्वविद्यालय के परीक्षा नियंत्रक प्रो. धीरेंद्र माथुर भी इस कंपनी को परीक्षा विभाग के कार्यों को तुरंत करवाने के लिए लेटर भेज चुके हैं. इसके पहले भी उन्होंने कई बार लेटर लिखे हैं, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई.
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कई गुना ज्यादा दाम पर किया गया है ठेका :पहले की ठेका फर्म माइक्रोनिक इन्फोटेक सर्विस प्राइवेट लिमिटेड को बीते साल 2022 में करीब 60 लाख से ज्यादा का भुगतान हुआ है. जबकि नए फर्म ब्रॉडकास्ट इंजीनियरिंग कंसल्टेंट्स इंडिया लिमिटेड (बेसिल) को यह कॉन्ट्रैक्ट कई गुने पैसा में मिला है. फर्म को कुछ सुविधाओं का विस्तार करना है. इसके पहले भी फर्म को सॉफ्टवेयर इंस्टॉल करने के लिए करीब 6 करोड़ 83 लाख रुपए का भुगतान की तैयारी है. कई कार्मिक और प्रोफेसर इस नए ठेका फर्म पर ही संदेह जता रहे हैं. इन्होंने दबी जुबान में उच्च अधिकारियों की मिलीभगत की बात भी स्वीकारी है.
एक दूसरे पर डाल रहे जिम्मेदारी :इस पूरे मामले में परीक्षा नियंत्रक प्रो. धीरेंद्र माथुर ने कुछ भी कहने से इनकार कर दिया है. रजिस्ट्रार वीरेंद्र कुमार वर्मा का कहना है कि उन्होंने मीटिंग लेकर सब कार्य सुचारू करने के लिए निर्देशित किया है. यह अकादमिक का काम है. वह केवल प्रशासनिक कार्य देखते हैं. वर्मा ने यह भी कहा कि पिछली कंपनी ने काम छोड़ दिया और उसने डेटा नहीं दिया है. जबकि यह कांट्रैक्ट पहले रजिस्ट्रार रहे प्रहलाद मीणा ने ही किया है. हालांकि पहले यूनिवर्सिटी में काम देख रही माइक्रोनिक इन्फोटेक सर्विस प्राइवेट लिमिटेड के राकेश जैन का कहना है कि उन्होंने काम छोड़ने के पहले पूरा डेटा यूनिवर्सिटी को उपलब्ध करा दिया है. यूनिवर्सिटी के पास पहले से भी डेटा रहता है.
लोगों से मांग रहे सर्टिफिकेट :विश्वविद्यालय के कंट्रोलर ऑफ एग्जामिनेशन प्रोफेसर माथुर खुद कंपनी को लिखते हैं कि जो प्रतिनिधि उनसे बेसिल कंपनी का हवाला देकर मिल रहे हैं, वह अपने साथ यह सर्टिफिकेट या आइडेंटिटी भी लेकर आएं. इससे पहले हुई मीटिंग में जो लोग पहुंचे थे, उन्होंने बैठक की कार्रवाई पर ही सिग्नेचर करने से इंकार कर दिया. साथ यह कह दिया कि वह इसके लिए अधिकृत नहीं हैं, जबकि इन्हीं बैठकों में महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए हैं.