कोटा.पिछले साल नवंबर-दिसंबर में विधानसभा चुनाव का दौर जारी था और समूचा हाड़ौती अंचल यूरिया की किल्लत झेल रहा था. किसान लंबी कतारों में खड़े थे और उन्हें डिमांड के अनुरूप यूरिया व ड्राई अमोनियम फास्फेट (डीएपी) नहीं मिल रहा था. ऐसे में महिलाएं हो या बच्चे सभी यूरिया के लिए घंटों लंबी कतारों में खड़े रहते थे. यहां तक कि हाड़ौती में तो पुलिस कस्टडी में यूरिया का बेचान किया गया था.
पिछले साल की तरह इस बार यूरिया की किल्लत न हो, इससे बचने का दावा भी कृषि विभाग कर रहा है. विभाग की ओर से कहा जा रहा है कि हमने सरकार को पहले से ही इस संबंध में कार्रवाई करने के लिए कहा है. कृषि विभाग के अधिकारियों का कहना है कि उन्होंने सभी इंस्पेक्टर और फील्ड स्टाफ को निर्देश दिए है कि वे ज्यादा से ज्यादा खाद विक्रेताओं के गोदाम और दुकानों का निरीक्षण करें. साथ ही पोस मशीन के स्टॉक से गोदाम और दुकान के वास्तविक स्टॉक का मिलान भी करें. जिससे यूरिया की कालाबाजारी रुक सके. वहीं किसानों को समय पर खाद मिल जाए.
इस बार कम खपत का आंकलन
पिछली बार कोटा जिले में 74123 मेट्रिक टन यूरिया की खपत हुई थी. उसके अनुपात में इस बार कृषि विभाग निदेशालय ने कोटा जिले के लिए 66000 मैट्रिक टन यूरिया की खपत का आकलन किया है. हालांकि यह करीब 8000 मैट्रिक टन कम है. जबकि कृषि विभाग के अधिकारियों ने 74000 मैट्रिक टन की ही मांग जिले के लिए की थी. सिंगल सुपर फास्फेट (एसएसपी) की 22700, म्यूरेट ऑफ पोटाश (एमओपी) 430 व नाइट्रोजन फास्फोरस पोटाश (कॉम्प्लेक्स) 950 मेट्रिक टन खपत का आकलन कृषि विभाग ने किया है.
पढ़ें- कोटाः प्रदेश व्यापी हड़ताल के चलते 23 अक्टूबर को बंद रहेंगे हाड़ौती के 300 पेट्रोल पंप
पड़ोसी जिलों का भार, एडवांस स्टॉकिंग भी शुरू
कृषि विभाग के उप निदेशक रामनिवास पालीवाल का कहना है कि पिछले कई सालों के आंकड़ों को आधार मानकर ही वे खाद की मांग तैयार करते हैं. उसके अनुसार ही लक्ष्य बनाते है, हालांकि, जो भी किसान कृषि उपज मंडी कोटा में अपनी फसल का बेचान करने आते हैं, वह कोटा जिले से ही खाद लेकर जाते हैं. ऐसे में बारां, बूंदी और झालावाड़ के किसान भी कोटा की मांग पर ही निर्भर हैं. हालांकि, हमने एडवांस स्टॉकिंग करवाना शुरू कर दिया है. फिलहाल खाद की कोई कमी नहीं है. आने वाले समय में भी यूरिया की कमी नहीं आने दी जाएगी.