करौली.गर्मियों के सीजन में मिलने वाले अमरूद की मिठास से भला कौन अपरिचित है? सभी इसके मिठास से भली-भांति परिचित है. यह भारत देश का एक लोकप्रिय फल है, इसे गरीबों का सेब भी कहा जाता है. यह स्वास्थ्य के बेहद लाभदायक फल है, इसमें प्रचुर मात्रा में विटामिन-C (200-300 मिलीग्राम प्रति 100 ग्राम फल) भी मिलता है. ऐसे में बेहतर जलवायु के कारण विगत दो-तीन साल से घूल रही अमरूदों की मिठास अब फींकी पड़ने वाली है. दरअसल, इस बार राजस्थान में बेमौसम की बारिश ने किसानों के लिए आफत खड़ी कर दी है, इसके चलते अमरूद की मिठास पानी में घुलती नजर आ रही है.
बेमौसम बारिश ने फेरा अमरूद की मिठास पर पानी बात करें, फरवरी-मार्च महीने की तो करौली में विभिन्न स्थानों पर हुई बेमौसम की बारिश से पौधों पर फूल लहरा रहे हैं. अमरूदों के बगीचों में पौधों पर खिल रहे यह फूल दिखने में तो अच्छे लग रहे हैं. लेकिन यह फूल किसानों के लिए बेहद नुकसानदायक साबित हो सकते हैं, जिससे इस आगामी सीजन में होने वाली अमरूद की पैदावार कम हो सकती है. ऐसे में किसानों को इन फूलों को तोडकर इस नुकसान से बचना होगा.
अमरूद के पेड़ में साल में 3 बार आते हैं फूल...
उद्यान विभाग के सहायक निदेशक रामलाल जाट ने बताया कि अमरूद के पेड़ में एक साल में मुख्यतः तीन बार फूल आते हैं. इसमें पहली बार अम्बे बहार के अंतर्गत फरवरी-मार्च में फूल आते हैं, तो जुलाई-अगस्त में फल तैयारी होती है. दूसरी बार, मृग बहार के अंतर्गत जून-जुलाई में फूल आते हैं, तो नवम्बर-दिसम्बर में फल तैयार होते है. इसी प्रकार, तीसरी बार हस्त बहार के अंतर्गत अक्टूबर-नवम्बर मे फूल आते हैं, तो मार्च-अप्रैल में फल तैयार होती है.
उन्होंने बताया कि इस समय आए फूल अम्बे बहार के है, यदि अम्बे बहार के फूलों को नहीं तोड़ा गया तो मृग बहार की फसल अच्छी नहीं आएगी. इसलिए 4 साल से अधिक आयु वाले पौधों में यदि अम्बे बहार के फूल है तो उनको उचित विधियों से हटाये जैसे यदि संभव हो तो फूलों को हाथों से तोडकर हटाए अन्यथा 10-15 प्रतिशत यूरिया का घोल छिड़के, जिससे फूल और पत्ती दोनों झड़ जाएंगे. इसके अतिरिक्त फूल झाड़ने के लिए 200 पीपीएम एनएएजीए-3 प्लान्ट ग्रोथ रेगुलेटर का छिड़काव किया जा सकता है.
पढ़ें- करौलीः 'स्त्री स्वाभिमान अभियान' के तहत महिलाओं को बांटे गए सेनेटरी पैड
उन्होंने बताया कि सर्दी में फल उत्पादन के लिए वर्षा आने तक सिचांई को रोक दें, फिर 15 जून के बाद बगीचों की अच्छे से सफाई करके आवश्यकतानुसार उपयुक्त खाद दें, जिससे कि गुणवत्तायुक्त उत्पादन हो सके. वहीं, इस बार जिले में 755 हेक्टेयर में अमरूद के बगीचे है. किसानों का बागवानी की ओर लगातार रुझान बढ़ता ही जा रहा है. इससे जिले के विभिन्न गांवों-कस्बों में फलदार वृक्षों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है. यही वजह है कि जिले में फलदार वृक्षों का क्षेत्रफल बीते साल के मुकाबले अब ढाई गुणा से तीन गुना तक बढ़ गया है. वहीं, राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत उद्यानिकी विभाग से मिलने वाली अनुदान राशि और फलदार बगीचों में अधिक मुनाफा होने के कारण किसानों का बीते साल बागवानी की तरफ रूझान बढा.
अगर जिले में फलदार बगीचों के क्षेत्रफल पर नजर डाले तो इसके क्षेत्रफल का आंकड़ा सैकड़ों हेक्टेयर में बढ़ गया है. बात की जाए अमरूदों के बगीचे की तो उद्यानिकी विभाग के अधिकारियों के अनुसार साल 2018-19 में जहां 270 हेक्टेयर में अमरूद के बगीचे लगे थे. वहीं, महज एक साल में यानी साल 2019-20 में यह आंकड़ा 755 हेक्टेयर पर जा पहुंचा है. अमरूदों मे अच्छा मुनाफा होने की वजह से किसानों का अमरूद की बागवानी की ओर रुझान बढ़ा है. अमरूद के फलों को ताजा खाने के साथ-साथ व्यवसायिक रूप से प्रसंस्करित कर जैम, नेक्टर और स्वादिष्ट पेय पदार्थ बनाकर प्रयोग भी किया जाता है.
अमरूद की बागबानी करने वाले किसानों की राय
ईटीवी भारत ने जब अमरूद की पैदावार करने वाले अशोक बना, सुरज्ञान सिंह राजपूत, पप्पू लाल मीणा आदि किसानों से बात की तो उन्होंने बताया कि पिछले कुछ सालों से अमरूद की खेती करने से अच्छा मुनाफा मिला था, लेकिन इस बार तो देश में फैली हुई कोरोना महामारी का भयंकर संकट आया हुआ है, जिसके कारण पूरे देश भर में लॉकडाउन लगा हुआ है. वहीं, दूसरी ओर इस बार फरवरी-मार्च महीने में हुई बेमौसम बारिश के कारण भी अमरूद की पैदावार करने वाले किसानों पर बड़ी आफत आ गई है. ऐसे में बेमौसम बारिश होने के कारण लगे हुए फूल को तोड़ना होगा नहीं तो सीजन के अमरूद की पैदावार में मिठास के बजाय फीकापन देखने को मिलेगा.