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SPECIAL: आसमान छूने लगे सब्जियों के दाम, रसोई तक पहुंची महंगाई की मार - Vegetable prices in Karauli

वैसे तो मानसून के आते ही सब्जियों के दाम आसमान छूने लगते हैं, लेकिन इस साल सब्जियों की कीमतों पर मानसून के साथ-साथ लॉकडाउन का भी असर साफ देखने को मिल रहा है. संक्रमण के डर से अन्य राज्यों से आने वाली सब्जियों की आवक भी कम हो गई है. दुकानें तो खुली हैं, सब्जियां भी पसरी हुई हैं, लेकिन बस ग्राहक कुछ ही नजर आ रहे हैं. पहले तो सिर्फ टमाटर के रेट ने लोगों की जेब हल्की की थी, लेकिन अब मिर्च भी तीखी हो गई है.

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आसमान छू रहे सब्जियों के दाम

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Published : Jul 23, 2020, 3:14 PM IST

करौली. कोरोना काल में पहले लॉकडाउन के दौरान लोगों की जेब काम धंधे बंद होने के कारण खाली हो गई है. अब महंगाई लोगों का दिवाला निकाल रही है. सब्जियों के दाम आसमान छू रहे हैं, जिसके चलते महंगाई की आग रसोई तक पहुंच गई है. टमाटर 50 से 100 रुपये प्रति किलो की दर से बिक रहा है. थोक से लेकर खुदरा दुकानदार, खानपान के ठेले, ढाबा, रेस्टोरेंट के खुलने के बाद सब्जियों की अधिक खपत और हाल में बढ़े पेट्रोल-डीजल के दामों को सब्जियों के बढ़े दाम का कारण बताया जा रहा है.

सबसे ज्यादा महंगा टमाटर

अनलॉक होने के बाद बीते दिनों में सबसे ज्यादा महंगा टमाटर हुआ है. जुलाई के 15 दिनों में यह 50 से 100 रुपये किलो जा पहुंचा है. जबकि लॉकडाउन के दौरान टमाटर 10-20 रुपये किलो तक बिके. वहीं अभी बाजार में सभी सब्जी विक्रेताओं के पास टमाटर भी नहीं है. चुनिंदा विक्रेताओं के पास ही टमाटर उपलब्ध रहता है.

रसोई तक पहुंची महंगाई की आग

टमाटर के बिना सब्जी अधूरी रहती है. ऐसे में टमाटर की बिक्री होती ही है, चाहे उसकी कीमत 100 रुपये किलो ही क्यों ना हो जाए. दाम बढ़ने पर लोग 1 किलो की जगह एक पाव खरीदने लग जाते हैं. फिलहाल जब तक स्थानीय बाड़ियों से टमाटर नहीं आएंगे तो ऐसे में दाम घटने वाले नहीं हैं. ऐसे में महंगे टमाटर ही खाने होंगे.

आवक घटी, दाम बढ़े

हरी सब्जियों के दाम आसमान छूने लगे हैं. ऐसी स्थिति लॉकडाउन में भी नहीं थी. लॉकडाउन में 20 रुपये किलो टमाटर अब 60 रुपये किलो तक बेचा जा रहा है. वहीं 10 रुपये किलो बिकने वाला आलू 30 रुपये किलो हो चुका है. इन दिनों सब्जी मंडी में हरी सब्जी की आवक एकदम से घट गई है. इसका सीधा असर भाव पर पड़ा है.

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बाजार में बैगन 20 से 30 रुपये किलो, हरी मिर्च 50-80 रुपये, प्याज 30 रुपये, परवल 60 रुपये, पत्तागोभी 40 और आलू 30 से 40 रुपये, किलो बिक रही है. वहीं लहसुन 160-180 रुपये तक बेचा जा रहा है. सबसे सस्ती सब्जी के रूप में फिलहाल भिंडी और लौकी है. जो 20-30 रुपये किलो है. कटहल और पालक 30 से 40 रुपये किलो है.

हरी सब्जियों के बढ़े भाव

सब्जी की महंगाई ने गरीबों का छीना स्वाद

बढ़ती सब्जी की महंगाई से हालात यह हो गए हैं कि जिस परिवार में प्रतिदिन 30 रुपये तक की सब्जी आती थी, उस परिवार में 50-100 रुपये की सब्जी आने लगी है. कई परिवार तो एक समय सब्जी बनाते हैं और उसी सब्जी को दोनों समय खा रहे हैं. दिन प्रतिदिन बढ़ती महंगाई ने आम आदमी की कमर तोड़ कर रख दी है. सब्जी के दामों में इतना उछाल आया है कि गरीब की थाली से तो सब्जी गायब हो गई है.

जहां दालें 100 के पार और सब्जियों के दामों में आग लगने से घर का बजट पूरी तरह से बिगड़ चुका है. बरसात में मौसम का मिजाज ठंडा होता है. वहीं कोरोना संकट काल में सब्जियों के तेवर गर्म हो गए हैं. आलू और टमाटर के दामों से लेकर दालों के भी दाम बढ़ने से महिलाएं अपनी रसोई का बजट बिगड़ने से बड़ी परेशान नजर आने लगी है.

आसमान छू रहा टमाटर

लोगों का यह है कहना

ईटीवी भारत की टीम ने जब लोगों से बात की तो उन्होंने बताया कि टमाटर और अन्य सब्जी की बढ़ती कीमत से रसोई का बजट बिगड़ गया है. जिसकी भरपाई के लिए अन्य राशन के सामान में कटौती करनी पड़ती है. स्थानीय प्रशासन को कोरोना संकट के इस मुश्किल दौर में सब्जियों की बढ़ती कीमतों को नियंत्रित करने के लिए आवश्यक कदम उठाने चाहिए.

गृहणी सीमा का बताती हैं 'रोजमर्रा में इस्तेमाल होने वाली सब्जियों में टमाटर के तड़के के बिना स्वाद नहीं आता, लेकिन मुश्किल यह है कि कोरोना महामारी के कारण लगे लॉकडाउन के दौरान जो टमाटर 15 रुपये किलो मिल रहा था अब उसकी कीमत 80 से 100 रुपये किलो तक हो गई है.'

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ईटीवी भारत की टीम ने जब सब्जी का व्यापार करने करने वाले लोगों से महंगाई का कारण पूछा तो उनका कहना है कि पिछले दिनों पेट्रोल डीजल के दामों में हुई वृद्धि और स्थानीय आवक कम होने के कारण सब्जियों महंगी हुई है.

दुकानें तो खुली लेकिन ग्राहक नदारद

सब्जी विक्रेताओं का कहना है कि डीजल के दामों में हुई वृद्धि से ट्रांसपोर्ट के किराए में भी वृद्धि हुई है. जिसका असर सब्जी पर भी पड़ा है. कोरोना महामारी के दौर में सब्जियों पर हुई महंगाई के कारण पहले की तुलना में बिक्री आधी से भी कम रह रही है. पहले एक परिवार के द्वारा एक से दो किलो सब्जी खरीदी जाती थी. आज उस परिवार के द्वारा आधा किलो सब्जी ही खरीदी जाती है. जिसके कारण सब्जी बेचने वालों के सामने भी अपने परिवार का भरण पोषण करने का संकट भी खड़ा हो गया है.

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