करौली.भले ही आधुनिकता के इस दौर में अब मिट्टी के बर्तनों का स्थान धातु के बर्तनों ने ले लिया है मगर आज भी किसी न किसी रूप से मिट्टी निर्मित बर्तन अपनी पहचान बनाए हुए हैं. लेकिन इनकी मांग में दिनोंदिन कमी आ रही है. आधुनिक दौर में 40 डिग्री से ऊपर बढ़ते तापमान में ज्यादातर लोग फ्रिज के पानी को ही पसंद करते है. हालांकि ग्रामीण इलाकों में जरूर मटकों की डिमांड है.
घटती मांग और बढ़ती महंगाई के कारण मटका व्यवसाय बुरे दौर में - karauli news
मटकों के व्यवसाय पर निर्भर परिवारों के सामने अब रोजी रोटी का संकट पैदा हो गया है. फ्रिज और वाटर कूलरों के बीच मटकों की मांग दिनोंदिन कम होती जा रही है.
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महंगाई की मार
मटके को गरीब का फ्रिज कहा जाता है, मगर यह भी महंगाई से अछूता नहीं है. हर वर्ष मटकों की कीमत बढ़ती जा रही है. इस सीजन की बात करें तो छोटा मटका बाजार में 60 से 100 रुपये में बिक रहा है. जबकि बड़ा मटका 150 से 300 रुपये तक की कीमत में बिक रहा है.
कुछ ही बनाते हैं मिट्टी के बर्तन.
शहर में मटकों का व्यापार करने वाले संजय प्रजापति ने बताया की पहले जिले में कई जगह मिट्टी के मटके जाते थे. मगर अब कुछ ही जगह पर बनाए जाते हैं. मटके बेचने और बनाने का पुश्तैनी काम चलता हुआ आ रहा है.. लेकिन समय की मार और मंहगाई के चलते. अब मिट्टी के बर्तन बनाने और दुकानों में बेचने की भी कमी आई है. दुकानदार संजय प्रजापत ने बताया सर्दी में बनने वाले मटकों की ज्यादा डिमांड है. क्योंकि सर्दी में बनने वाले मटको में नमी रहती है और राख नहीं रहती है. जबकि गर्मी में बनने वाले मटका में राख रह जाती है. जिससे मटका खराब होने का डर रहता है.